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चार्जशीट कोई सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है इसलिए इसे पब्लिक डोमेन में नहीं रखा जा सकता: सुप्रीमकोर्ट

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि किसी मामले की चार्जशीट कोई सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है इसलिए इसे पब्लिक डोमेन में नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट को सार्वजनिक करने की मांग वाली पीआईएल को खारिज करते हुए कहा कि आपराधिक मामलों में जांच एजेंसियों द्वारा दर्ज चार्जशीट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अपने आदेश में चार्जशीट को ऑनलाइन पब्लिश करने पर रोक लगा दी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीती 9 जनवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अगर एफआईआर उन लोगों को दी गई, जिनका मामले से कोई संबंध नहीं है तो इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है। इस मामले में वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि हर पब्लिक अथॉरिटी की यह ड्यूटी है कि वह हर जानकारी को जनता के सामने रखें। प्रशांत भूषण ने कहा कि जनता को यह जानने का हक है कि कौन आरोपी है और क्या अपराध हुआ है। हालांकि कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया।

ता दें कि पत्रकार सौरव दास ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर पुलिस चार्जशीट को आम जनता के लिए पब्लिक डोमेन में डालने की मांग की गई थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि इस तरह, अभियुक्तों के साथ-साथ पीड़ित और जांच एजेंसी के अधिकारों का भी उल्लंघन हो सकता है। वेबसाइट पर एफआईआर डालने को चार्जशीट को सार्वजनिक करने के बराबर नहीं किया जा सकता है।