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BJP सरकार में आदिवासी स्टूडेंट्स के बुरे दिन

fadanavisमुंबई। बीजेपी सरकार के शासन में पहली बार आदिवासी स्कूलों में पढ़ने वाले दो लाख छात्रों को पठन-पाठन की सामग्री नहीं मिली है। शैक्षणिक वर्ष 2015-16 खत्म होने को है। सरकार गलती स्वीकार करने के साथ ही वादा भी कर रही है कि इस साल की गलती से उसने सबक लिया है। दूसरी ओर, विपक्ष ने सरकार की खिंचाई करते हुए आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में ऐसा पहली बार हो रहा है जब आदिवासी आश्रम स्कूलों के बच्चों को सरकार की ओर से दी जाने वाली सामग्री नहीं मिली। समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार आदिवासी आश्रम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मुफ्त में शिक्षा सामग्री देती है। बुक, नोट बुक, स्कूल यूनिफॉर्म, जूते-मोजे, स्कूल बैग सहित सभी स्टेशनरी सहित खाद्य पदार्थ, ठंड से बचने के लिए छात्रों को स्वेटर तक मुफ्त में देती है।

नहीं मिल रहे पसंदीदा ठेकेदार
स्टेशनरी देने के लिए सरकार ने दो साल का टेंडर मंगाया था। एक साल बीतने वाले है। देरी होने के कारण आलोचना के डर से विभाग ने प्रत्येक हेडमास्टर को 5,000 रुपये तक की स्टेशनरी खरीदने की अनुमति दी। भ्रष्टाचार के आरोपों के डर से कई हेड मास्टर्स ने स्टेशनरी खरीदी ही नहीं। इस कारण छात्रों को स्टेशनरी मिली ही नहीं। अब मांग की जा रही है कि दो साल का ठेका रद्द किया जाए, क्योंकि बच्चों को एक साल की स्टेशनरी मिली ही नहीं।

विपक्ष ने की जांच की मांग
इसके अलावा, खरीदी की प्रक्रिया की नियमावली भी इस तरह से बनाया गया है, जिसमें चुनिंदा ठेकेदार ही प्रवेश करते हैं। विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता धनंजय मुंडे ने स्टेशनरी खरीदी को घोटाला बताते हुए एसीबी से जांच की मांग की है। मुंडे का कहना है कि पिछले पांच साल में एक ही ठेकेदार को स्टेशनरी का ठेका मिल रहा है। भला यह कैसे संभव है?

जूते-मोजों के टेंडर 6 बार रद्द
दो लाख बच्चों को जूते भी नहीं मिले, जिससे बच्चों को नंगे पैर स्कूल जाना पड़ रहा है। अधिकारियों और मंत्रियो को अपनी पसंद का ठेकेदार चाहिए। बच्चों को जूता देने के लिए छह बार टेंडर मंगाया गया और छहों बार टेंडर रद्द करना पड़ा। अभी तक जूता नहीं मिला। स्कूल यूनिफॉर्म का मामला भी ऐसे ही लटका है। देरी के कारण आनन फानन में विभाग स्कूल यूनिफॉर्म का कपड़ा देने जा रहा है। कपड़े की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।