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शहीदी दिवस पर खास रिपोर्ट: भगत सिंह की फांसी, नेताजी की नाराजगी और गांधी.इरविन समझौता

23 मार्च 1931 की तारीख, लाहौर की सेंट्रल जेल में काफी गहमा-गहमी थी। जेल के सभी कैदी अपनी कोठरियों के अंदर रोज की तरह व्यस्त थे। लेकिन तभी अचानक जेल वॉर्डन की तरफ से ये जानकारी मिलती है कि आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जानी है। ये बात सुनते ही सारे कैदियों का चेहरा उतर सा गया। इसके बाद तीनों कैदियों को फांसी की तैयारियों के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। इसके बाद इन तीनों को फांसी के लिए ले जाया गया। भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह ने अपनी मां को एक वचन दिया था। उसे पहले पूरा करना चाहते थे। भगत सिंह ने फांसी के तख्त से जोर-जोर से इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया। जब भगत सिंह के नारों की आवाज जेल की कोठरियों तक गूंजती है तो जेल के बाकी कैदी भी भगत सिंह के नारे के साथ अपनी आवाज भी बुलंद करते हैं। कुछ ही देर के बाद तीनों कैदियों के गले में फांसी का फंदा डाल दिया जाता है। जल्लाद ने एक-एक करके तीनों क्रांतिकारियों की रस्सी खींच ली।

जब कभी भी भगत सिंह की शहादत की बात होती है तो महात्मा गांधी की चर्चा जरूर आ जाती है, खासकर उनकी भूमिका को लेकर। भगत सिंह के फांसी से दुखी कई लोगों ने महात्मा गांधी को जिम्मेदार ठहराया। इसके साथ ही यह दलील दी गई कि गांधी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रूक सकती थी।

गांधी इरविन पैक्ट

17 फरवरी 1931 को गांधी और इरविन के बीच बातचीत हुई। इसके बाद 5 मार्च, 1931 को दोनों के बीच समझौता हुआ। इस समझौते में अहिंसक तरीके से संघर्ष करने के दौरान पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने की बात तय हुई। मगर, राजकीय हत्या के मामले में फांसी की सज़ा पाने वाले भगत सिंह को माफ़ी नहीं मिल पाई। भगत सिंह के समर्थक चाहते थे कि गांधी इस समझौते की शर्तों में भगत सिंह की फांसी रोकना शामिल करें। लेकिन गांधी जी ने ऐसा नहीं किया। इसके पीछे की वजह यंग इंडिया अखबार में लिखे लेख में बताई गई। उन्होंने लिखा, “कांग्रेस वर्किंग कमिटी भी मुझसे सहमत थी। हम समझौते के लिए इस बात की शर्त नहीं रख सकते थे कि अंग्रेजी हुकूमत भगत, राजगुरु और सुखदेव की सजा कम करे। मैं वायसराय के साथ अलग से इस पर बात कर सकता था। गांधी ने वायसराय से 18 फरवरी को अलग से भगत सिंह और उनकी साथियों की फांसी के बारे में बात की। इसके बारे में उन्होंने लिखा, ”मैंने इरविन से कहा कि इस मुद्दे का हमारी बातचीत से संबंध नहीं है। मेरे द्वारा इसका जिक्र किया जाना शायद अनुचित भी लगे। लेकिन अगर आप मौजूदा माहौल को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो आपको भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा खत्म कर देनी चाहिए।

नेताजी से बढ़ा विवाद

1928 में कांग्रेस के गोवाहाटी अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस और गांधी के बीच मतभेद के बीज पड़ गए। सुभाष चंद्र पूर्ण स्वराज से कम किसी भी चीज पर मानने को तैयार नहीं थे। कांग्रेस के अंदर सुभाष चंद्र बोस समेत कई लोगों ने भी गांधी जी और इरविन के समझौते का विरोध किया। 23 मार्च 1931 को जब भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दी गई तो महात्मा गांधी से उनके मतभेद और बढ़ गए। नेताजी को ये लगा कि अगर गांधी जी चाहते तो उनकी फांसी रूक जाती।

गांधी के प्रयासों पर उठते सवाल

भगत सिंह की फांसी की सजा माफ कराने को लेकर गांधी जी के प्रयासों पर उठते सवाल और उसके बचाव में कुछ दिए गए तर्कों से इतर इस विषय पर मौजूद रिसर्च के आधार पर ये कहा जा सकता है कि फांसी के दिन से पहले गांधी और वायसराय के बीच जो चर्चा हुई, उसमें भगत सिंह की फांसी के मुद्दे को गांधी जी ने गैरज़रूरी माना। लेकिन इसके साथ ही गांधी जी ने वायसराय को अपनी पूरी शक्ति लगाकर समझाने का दबाव बनाया हो, इस तरह के सबूतों को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं।