आगरा आगरा में रसूख के आगे होटल व हॉस्पिटल में नियम बौने हो गए हैं। बेसमेंट में आईसीयू, ऑपरेशन थियेटर व वार्ड चल रहे हैं। होटलों के नक्शे पास नहीं हैं। आग लगने पर बचने के इंतजाम नहीं हैं। प्रशासन की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार शहर में 500 से अधिक अवैध होटल व हॉस्पिटल हैं, कार्रवाई न होने से इनकी संख्या बढ़ी ही है।
कार्रवाई के लिए दौड़े अफसर
लखनऊ के लेवाना होटल अग्निकांड में 4 लोगों की मौत के बाद भी आगरा विकास प्राधिकरण, अग्निशमन विभाग, पर्यटन विभाग और पुलिस-प्रशासन ने सबक नहीं लिया। बुधवार को खेरिया मोड़ स्थित आर मधुराज हॉस्पिटल इसका नतीजा है। यहां अग्निकांड में 3 लोगों की मौत हो गई। हादसे की गूंज मुख्यमंत्री तक पहुंची, तब बृहस्पतिवार को स्वास्थ्य विभाग के अफसर कार्रवाई के लिए दौड़े।
ऐसे में विकास प्राधिकरण और स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार सवालों के कठघरे में खड़े हैं। अवैध हॉस्पिटल कैसे लंबे समय तक खुले रहते हैं। हॉस्पिटल की नियमित जांच क्यों नहीं होती। बेसमेंट में आईसीयू कैसे खुल जाते हैं। हादसे के लिए जिम्मेदार कौन। क्या बिना एनओसी पंजीकरण हुए। क्या घर बैठे एनओसी जारी की गईं।
बीते सप्ताह एडीए व अग्निशमन विभाग ने 18 होटल व हॉस्पिटल चिह्नित किए। इन्हें अग्निकांड की दृष्टि से संवेदनशील माना गया। कमिश्नर अमित गुप्ता ने इन भवनों को सील करने के निर्देश एडीए उपाध्यक्ष चर्चित गौड़ व सीएफओ अक्षय रंजन शर्मा को दिए, लेकिन 18 में केवल 2 बिल्डिंग सील कर दोनों विभागों ने इतिश्री कर ली। बाकी पर कार्रवाई नहीं की।
हॉस्पिटल ही नहीं शहर में 100 से 150 गज के मकानों में अवैध होटल, गेस्ट हाउस खुल गए हैं। इनमें आसामाजिक गतिविधियों की शिकायत होने की भी है। इनमें रुकने वाले कौन हैं, कितने कमरे हैं, संचालक का नाम-पता, ऐसी कोई जानकारी जिला प्रशासन के पास नहीं है।
झोलाछाप व अवैध हॉस्पिटल संचालकों ने कोरोना की आपदा में अवसर तलाशा। 2018-19 में सीएमओ कार्यालय ने शहरभर में 70 से अधिक अवैध अस्पताल पकड़े। इनमें कोई एमबीबीएस चिकित्सक नहीं था। बिना रजिस्ट्रेशन हॉस्पिटल संचालित हो रहे थे। मरीजों के ऑपरेशन हो रहे थे। इन्हें सील कर दिया गया, लेकिन 2020 में कोरोना के बाद दो साल तक स्वास्थ्य विभाग ने दोबारा इनका सत्यापन नहीं किया। नाम और पता बदलकर सील हो चुके हॉस्पिटल फिर खुल गए हैं।