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चीफ जस्टिस का सरकार को जवाब, किसी भी कानून को रद्द कर सकती है न्यायपालिका

cji-thakurनई दिल्ली। जजों की नियुक्ति के मामले पर केंद्र सरकार की ओर से न्यायपालिका को लक्ष्मण रेखा की याद दिलाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने भी कड़ा जवाब दिया है। जस्टिस ठाकुर ने कहा कि सरकार के किसी भी अंग को ‘लक्ष्मण रेखा’ पार नहीं करनी चाहिए और न्यायपालिका के पास यह निगरानी करने का अधिकार है कि कोई भी संस्था सीमा को पार न करे। संविधान दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट के लॉन में आयोजित कार्यक्रम में बोलते मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘न्यायपालिका के पास संसद की ओर से पारित किए गए किसी भी कानून को रद्द करने का अधिकार है, यदि वह संविधान के विपरीत हो या फिर संविधान की ओर से तय की गई सीमाओं का उल्लंघन करता हो।’

इससे पहले अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एक अन्य कार्यक्रम में जजों की नियुक्ति के मामले में चीफ जस्टिस की ओर से सरकार पर सवाल खड़े किए जाने के बाद न्यायपालिका को ‘लक्ष्मण रेखा’ की याद दिलाई थी। इस पर टीएस ठाकुर ने कहा, ‘संविधान हमें बताता है कि सरकार को क्या काम करने चाहिए। संविधान ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के कर्तव्यों और जिम्मोदारियों को निर्धारित किया है। संविधान ने ही इनकी सीमाएं और लक्ष्मण रेखा भी तय की हैं।’
सरकार की ओर से न्यायपालिक को ‘लक्ष्मण रेखा’ की याद दिलाए जाने पर अप्रत्यक्ष तौर पर जवाब देते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, ‘न्यायपालिक को यह निगरानी करने की जिम्मेदारी मिली है कि कोई भी सीमा को पार न करे। यदि संसद के पास कानून बनाने की ताकत है तो इसे संविधान की ओर से तय की गई सीमाओं के तहत ही इस्तेमाल करना चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘यदि संसद कोई ऐसा कानून पारित करती है, जो संविधान की सीमाओं का उल्लंघन करता है तो न्यायपालिका के पास अधिकार है कि वह उसे गलत ठहरा सके।’ चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने जोर देकर कहा, ‘कानून का शासन स्थापित करने के लिए संविधान के विपरीत किसी भी आदेश को न्यायपालिका रद्द कर सकती है।’

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पूरी दुनिया में भारतीय संविधान का बहुत ऊंचा स्थान है, जो अमीर, गरीब, बड़े और छोटे में भेद नहीं करता है। प्रसाद ने कहा, ‘लोगों को यह भरोसा है कि वह किसी भी राजनीतिक नेतृत्व को हटा सकते हैं। वह किसी भी राजनीतिक दल को हटा सकते हैं।’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आपातकाल के दौर में उच्च न्यायालयों ने बड़ा साहस और संकल्प दिखाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट असफल साबित हुआ था।