लखनऊ। विधान भवन सचिवालय की लिफ्ट मंगलवार को फिर फंस गई। लिफ्ट में मौजूद रहे लिफ्टमैन को करीब 20 मिनट की मशक्कत के बाद बाहर निकाला जा सका। मंगलवार की इस घटना के बाद एक बार फिर लिफ्ट की मेंटिनेंस पर सवाल उठने लगे हैं। जो लिफ्ट फंसी, वह सीएम के लिए विशेष तौर पर आरक्षित लिफ्ट के ठीक सामने है।
मंगलवार दोपहर को विधान भवन रक्षक उमेश चंद्र सिंह और राम निधि वर्मा ने मुख्य भवन के आरआई कार्यालय और मुख्य सुरक्षा अधिकारी कार्यालय में सूचना दी कि मुख्य भवन की तीसरी लिफ्ट फंस गई है। अधिकारी वहां पहुंचे। लिफ्ट के बाहर से चिल्लाकर जानकारी ली गई तो पता चला कि लिफ्ट में केवल लिफ्टमैन ही था। तकनीकी स्टाफ और पीडब्ल्यूडी विभाग के इंजीनयर्स ने लिफ्ट खोलने की कोशिश की। फिर लिफ्ट रूम से लिफ्ट खोली जा सकी और लिफ्टमैन को बाहर निकाला जा सका।
फंस सकता था कोई भी माननीय
मंगलवार को विधान सभा का सत्र चल रहा था। जिस समय ये हादसा हुआख् उस समय सभी विधायक हाउस में ही थे। आम तौर पर बाहर निकलने के लिए विधायक और दूसरे वीआईपी लोग इस लिफ्ट का इस्तेमाल करते हैं।
जिस समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लिफ्ट में 25 मिनट तक फंसे थे, तब अधिकारियों ने तमाम तरह के दावे किए थे। कहा गया था कि लिफ्ट की मेंटिनेंस की मॉनिटरिंग की जाएगी। सदन चलने से पहले सभी लिफ्टों की मेंटिनेंस होगी। हालांकि ये सब दावे हवाई ही साबित हुए। अधिकारियों का दावा है कि सदन चलने से पहले लिफ्ट की मेंटिनेंस हुई थी। सभी कंपनियों से सर्टिफिकेट लिया गया था। इस सबके बीच सचिवालय संघ ने आरोप लगाया है कि लिफ्ट की मेंटिनेंस के नाम पर मोटी रकम डकारी जा रही है।