नई दिल्ली। शत्रु संपत्ति विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार संसद का संयुक्त सत्र बुलाने पर विचार कर रही है. यह बिल लंबे समय से राज्यसभा में अटका हुआ है. इस वजह से इसके लिए कई बार अध्यादेश जारी किया जा चुका है. बार-बार अध्यादेश लाए जाने पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नाराजगी भी जताई थी. चीन और पाकिस्तान के नागरिकों की भारत में संपत्ति शत्रु संपत्ति कहलाती है. सुप्रीम कोर्ट ने राजा महमूदाबाद की संपत्ति लौटाने का आदेश दिया था, जिसके बाद अध्यादेश जारी हुआ था.
केंद्र सरकार ने 1962, 1965 और 1971 के युद्धों के बाद पाकिस्तान और चीन को शत्रु देश घोषित किया और उनके नागरिकों की भारत में संपत्ति को शत्रु संपत्ति का दर्जा देकर अपनी कस्टडी में ले ली. 1968 में इस बारे में कानून बनाया गया था. इसके बाद देश भर में ऐसी जितनी भी संपत्तियां थीं, उन्हें केंद्र सरकार की कस्टडी में ले लिया गया.
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के 2005 के आदेश के मद्देनजर यूपीए सरकार भी 2010 में एक अध्यादेश लाई थी. बाद में मोदी सरकार ने भी इस बारे में एक बिल लोक सभा में पेश किया जिसे 9 मार्च 2016 को पारित किया गया. लेकिन राज्य सभा में इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग हुई. सेलेक्ट कमेटी भी अपनी रिपोर्ट दे चुकी है मगर उसमें कांग्रेस, लेफ्ट और जेडीयू के सांसदों ने असंतोष जताया. तब से ये बिल राज्य सभा में लटका हुआ है और इसीलिए सरकार को कई बार अध्यादेश जारी करना पड़ा है.
मंगलवार को संसदीय दल की बैठक में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उन तीन अध्यादेशों के बारे में पार्टी सांसदों को विस्तार से बताया जिन्हें मोदी सरकार अब विधेयक की शक्ल में ला रही है. इनमें से एक अध्यादेश शत्रु संपत्ति के बारे में है. वित्त मंत्री ने सांसदों को जानकारी दी कि सरकार को बार-बार ये अध्यादेश क्यों लाना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद राजा महमूदाबाद को लखनऊ और आसपास की संपत्ति सरकार को उन्हें वापस करने को कहा गया और इसकी वजह से पैदा हुई विसंगति को दूर करने के लिए सरकार ने अध्यादेश लाने का फैसला किया.