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क्या बीजेपी का साथ छोड़ दोबारा महागठबंधन में शामिल होंगे नीतीश?

पटना। इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह और फिर एक मज़ाक की तरह. कार्ल मार्क्स की कही यह बात आज बिहार की बदलती राजनीति पर बखूबी जमती है. पहले तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आरजेडी में शामिल हो जाना, फिर यकायक अपने पद से इस्तीफा दे देना, अगले ही दिन वापस बीजेपी में शामिल होकर बिहार के मुख्यमंत्री पद की छठी बार शपथ ग्रहण करना. अब कयास फिर से लगने शुरू हो गए हैं कि नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं.

बीजेपी-जेडीयू में सबकुछ ठीक नहीं

ऐसे में कांग्रेस की तरफ से आए इस बयान ने लोगों को बात करने का एक नया मौका दे दिया है. कांग्रेस ने कहा कि अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ने का फैसला करते हैं तो उन्हें महागठबंधन में वापस लेने के लिए वह सहयोगी दलों के साथ विचार करेगी.

कांग्रेस का यह बयान उस वक्त आया है जब हाल के दिनों में 2019 लोकसभा चुनाव में सीटों के तालमेल को लेकर जेडीयू और बीजेपी के बीच कुछ विरोधाभासी बयान आए. इसके बाद बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चलने के कयास लगाए जाने लगे. वहीं कुछ दिनों पहले नीतीश कुमार विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर दोबारा मुखर होते दिख रहे थे. रविवार को भी  नीति आयोग की बैठक में उन्होंने इस मांग को उठाया. इसके अलावा उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी लागू करने पर भी सवाल उठाए थे.

जेडीयू और बीजेपी का साथ बेमेल है

नीतीश कुमार का यह रवैया सभी को साफ दिख रहा है. कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने नीतीश कुमार पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि अभी वह फासीवादी बीजेपी के साथ हैं. उन्हें नहीं पता कि उनकी क्या मजबूरी है कि बीजेपी के साथ चले गए. दोनों का साथ बेमेल है. यह पूछे जाने पर कि अगर नीतीश कुमार फिर से महागठबंधन में वापसी का मन बनाते हैं तो कांग्रेस का क्या रुख होगा. इस पर गोहिल ने कहा, ‘अगर ऐसी कोई संभावना बनती है तो हम अपने सहयोगी दलों के साथ बैठकर इस पर जरूर चर्चा करेंगे.’

कुछ महीने पहले बिहार में सांप्रदायिक हिंसा का हवाला देते हुए तेजस्वी ने हाल में कहा था कि अब नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन के दरवाजे बंद हो चुके हैं.

मोदी सरकार ‘पिछड़े और अतिपिछड़ों के खिलाफ’ है

रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा का जिक्र करते हुए गोहिल ने यह दावा  किया कि बिहार में यह आम राय बन चुकी है कि नरेंद्र मोदी सरकार ‘पिछड़े और अतिपिछड़े वर्गों के खिलाफ’ है. ऐसे में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की राजनीति करने वालों के पास बीजेपी का साथ छोड़ने के सिवाय कोई दूसरा चारा नहीं है. बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाले गठबंधन का नेतृत्व स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के पास होगा और अगले लोकसभा चुनाव में देश की जनता ‘राहुल गांधी के नेतृत्व में’ नरेंद्र मोदी को हराएगी.