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अपने खेत में सब कुछ उपजाएं, अन्न भी, फसल भी, सब्जी भी और बांस भी

अब आज के वर्तमान समय में भले ही यह प्रचलन सा हो गया है कि धान बोओ और काटो, फिर गेहूं बोओ और काटो। लेकिन, आज हम जिस प्राकृतिक विधि से समेकित कृषि की बात करेंगे उसमें धान और गेहूं की प्रधानता का जिक्र भी नहीं आयेगा। यदि परिवार को खाने के लिए धान और गेहूं की आवश्यकता की पूर्ति होती है तो उससे और अधिक कुछ भी नहीं, धान-गेहूं पर ध्यान नहीं देना है । क्योंकि, आज के दिन तो ये सबसे सस्ते अनाज हो गए हैं I बाजरा और मडुआ से भी सस्तेI तो फिर हम तेलहन-दलहन और पारम्परिक अनाज क्यों न उगायें जो ज्यादा पौष्टिक भी हैं और मंहगे भी I

अब चलिए बात करते हैं प्राकृतिक और पारम्परिक समेकित कृषि की। सामान्यतः हम एक एकड़ से अधिक के किसी भी प्लाट की चर्चा करेंगे। वह चाहे दो एकड़ का हो, पांच एकड़ का हो या दस एकड़ का हो। हालाँकि, मुझे यह पता है कि आज के दिन जमीनों के इतने टुकड़े हो गये हैं और चकबंदी ठीक से हो नहीं पायी है, जिसके कारण प्रायः सभी किसानों के पास बड़े-बड़े प्लाटों का अभाव है। फिर भी हम कोशिश करेंगे कि एक ही प्लाट में विभिन्न प्रकार की फसलें कैसे लें, इसकी चर्चा करेंगे। लेकिन, दुर्भाग्य यह है कि जब तक चकबंदी नहीं हो जाती है, छोटे छोटे किसानों के लिए समेकित कृषि की बात करना भी बेमानी होगा। क्योंकि, उन्हें समेकित खेती हेतु कोई सलाह दे नहीं पायेगा। फिर भी चलिए हम इस विषय पर चर्चा करते हैं।

सबसे पहले प्लाट की घेराबंदी करना आवश्यक होगा I लेकिन, घेराबंदी के लिए तार का बाड़ या चाहरदिवारी की जगह मैं कांटेदार बांस की चर्चा करूँगा। यह बहुत ही सौभाग्य का विषय है कि किसानों के हित में मोदी सरकार ने बांसों को वन उत्पाद की श्रेणी से हटाकर घासों की श्रेणी में डाल दिया है, जिससे कि किसान अपने खेतों में बांस उगा सकते हैं और व्यवसायी उत्पादों की तरह जब पैसे की कमी हो तो उसे बेचकर कुछ धन राशि भी प्राप्त कर सकते हैं। तो चलिये, प्लाट के चारों तरह दो-दो फीट की दूरी पर कांटेदार बांस लगा लें और जब ये बड़े हो जाये तो आठ या दस फीट की ऊँचाई पर इसे ऊपर से ही काट लें ताकि ये और ऊपर न बढ़े। किनारे से भी झाड़ी काटने वाली कैंची से महीने दो महीने में एक बार काटते रहे ताकि वह एक से डेढ फीट चौड़ी दीवार की शक्ल ले लें। इस कांटेदार बांस में इतने तीखे और सख्त कांटे होते हैं कि मनुष्य तो क्या, छोटे-छोटे जानवर भी इसमें प्रवेश नहीं कर पाते हैं। हवा, आंधी तूफान से भी खेत की रक्षा हो जायेगी और आपके खेत का तापमान भी न अधिक गर्म रहेगा और न अधिक ठंढ़ा। इस तरह खेत के तापमान का संतुलन बना रहेगा। अब यदि प्लाट में कांटेदार बांस की कतार के बाद दो फुट की जगह छोड़कर एक कतार व्यावसायिक बांस लगायें जिसका व्यास तीन वर्षों में लगभग तीन से चार इंच का हो जायेगा और ऊँचाई साठ से सत्तर फीट हो जायेगी। इस तरह की बांसों की प्रजातियां आपको अपने आसपास में जिला कृषि पदाधिकारी के कार्यालय से या बांस परियोजना के पदाधिकारियों से मुफ्त प्राप्त हो जायेगी। मुफ्त प्राप्त बांसों के पौधों की सुरक्षा और देखभाल के लिये तीन वर्षों तक अनुदान भी मिलेगा जिससे की आप इसकी सही ढंग से देखभाल कर सकें।

इसकी देखभाल आपको दो से तीन साल तक ही करनी होगी । इसके बाद तो आपका लगाया हुआ बांस आपकी और आपके तीन पीढ़ियों की देखभाल करता है। यानि लगभग सत्तर से नब्बे वर्षों तक। कुछ प्रजतियां तो सौ वर्षों से भी ज्यादा। बांसों के जड़ों में जल संचय के लिए ग्रंथियां बनी होती है और तीन साल की उम्र का एक बांस अपने जड़ों में बीस हजार लीटर से पचास हजार लीटर तक पानी सुरक्षित रखने की क्षमता रखता है। अतः व्यवसायिक बांसों का उत्पादन किसानो के लिए बैंक में फिक्स डिपोजिट डालने जैसा है। जिसे आप तीन साल के बाद जब चाहे भुना सकते हैं I अपने लगाये बांस को कभी भी काट कर बेच सकते हैं और एक मुश्त धन राशि प्राप्त कर सकते हैं। यदि चौथे वर्ष आपको पैसे की आवश्यकता नहीं है तो आप उसे मत काटें। पांच से छह वर्ष पुराना बांस भी काट सकते हैं। जितना पुराना बांस होगा उतना अच्छा स्वस्थ, सुडौल और मजबूत होगा। लेकिन, परिपक्व बांसों को प्रति वर्ष काट लेना ही फायदेमंद इसलिए होता है क्योंकि, जब आप एक बांस काटेंगे तो उसी की जड़ से कम से कम दो नये बांस निकल जायेगें जो फिर तीन वर्ष में तैयार हो जायेगा। इस प्रकार से यह प्रक्रिया चलती रहेगी। लेकिन, यदि बांस काटेंगें नहीं तो नये बांस निकलेंगे नहीं I

मैंने अभी तक आपको कंटीले बांसों से घेराबंदी और व्यवसायिक बांसों के रोपण और कटाव की चर्चा की । कंटीले बांसों से घेराबंदी में लगभग दो फीट और व्यवसायिक बांसों की एक कतार में लगभग तीन से चार फीट यानि कुल मिलाकर पांच से छः फीट आपके प्लाट का किनारा निकल गया। अब उसके बाद पूरे प्लाट की किनारे के अंदर ही अन्दर एक तीन फीट चौड़ा और तीन से चार फीट गहरा गड्ढा यानि कि ट्रेंच खोदना है। इसे आप जे0सी0बी0 की मदद से बहुत ही आसानी से खोद सकते हैं। इस गडढ़ा की मिट्टी को आप लोहे की जाली से चालकर इकट्ठा कर लें और आपके खेत में जहां भी उबड खाबड हो वहां इसे डाल कर खेत को बराबर कर लें। यह गड्ढा खोदना तीन कारणों से जरूरी है। पहला यह कि ज्यादा वर्षा होने पर बाहर के खेतों का पानी आपके खेत में नहीं जायेगा । यह इसलिये जरूरी है क्योंकि, मानकर चलिये कि आपने खेत के चारों ओर रासायनिक खेती हो रही है I दूसरा यह कि आपके खेत के अन्दर का सारा अतिरिक्त पानी आपके खेत के अन्दर के गडढे में ही जमा हो जायेगा और फसलों को पानी के अनावश्यक जमाव से नुकसान नहीं होगा। तीसरा यह कि बांस के पत्ते जितने गिरेंगे वह इसी गडढे में जमा होंगे। बांस के पत्ते में भारी मात्रा में सेल्युलोज होता है जो कि एक बहुत ही शक्तिशाली ग्रोथ प्रोमोटर होता है। उसका खाद भी स्वतः तैयार हो जायेगा, जिसे आप यदि फाल्गुन के महीने में गडढे की सफाई करके जायद की फसलों में बिखेर देंगे तो आपके खेत की उर्वरा शक्ति में प्रचुर वृद्धि हो जायेगी और खेत की आर्गेनिक कार्बन का प्रतिशत भी कुछ बढ़ जायेगा।

लेकिन, इतना कार्य करने में आपकी भूमि का लगभग आठ से दस फीट चरों तरफ निकल जायेगा। अब यदि आपका भूभाग बड़ा है तो आप बांस की एक की बजाय दो कतार भी ले सकते हैं। जिसमें लगभग तीन से पांच फीट और जगह निकल जायेगा और गडढे की जगह को छोड़कर आप आम, लीची, अमरूद, अनार, नासपाती, संतरा, मौसमी, नीबू आदि फलदार वृक्षों के पौधे भी लगा सकते हैं। कुछ केले की पैदावार भी ले सकते हैं। यह आपको स्वयं आपके भूमि के आकार के हिसाब से तय करना है।

अब हम बची हुई भूमि की बात करते हैं। भूमि को सबसे पहले दो से तीन चास जुताई करके पाटा चलवा लें। फिर कम्प्यूटराईज लेभलिंग करवा लें जो आजकल टैक्टर में लगा हुआ छोटा सा उपकरण आता है जिसके लिए आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, आपके आसपास इसे घंटे के हिसाब से करने वाले मिल जायेगें । लेवल ऐसा करवायें कि खेत के हर भाग का हल्का सा ढलान आपके निकटस्थ गड्ढे के पास हो ताकि उस भाग का पानी आसानी से ट्रेंच में चला जाये। अब कम्प्यूटराईज लेभलिंग कराने के बाद आप जो जगह उबड़-खाबड़ मिले या जहाँ गडढा हो या जहां की मिट्टी अच्छी नहीं हो वहां ट्रेंच की खुदाई से निकली हुई मिट्टी डाल दीजिए। यह काम करने के बाद फिर एक बार कम्प्यूटराईज लेभलिंग करवा लीजिए ताकि आप संतुष्ट हो लें कि आपकी भूमि में किसी तरह से अतिरिक्त जल निकास की समस्या अब नहीं रह गयी है।

अब करते हैं बेड का निर्माण

अब पूरी भूमि को कई क्यारियों या बेड़ों में बांट लें। बेड का आकार होगा चार या छह फीट चौड़ा और जमीन की सतह से डेढ फीट ऊँचा। लम्बाई कितनी भी हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बेड से सटा हुआ आपको एक नाली खोदना है जो दो फीट चौड़ा और दो से तीन फीट गहरा होगा। इस नाली का उपयोग आप और आपके कृषि सहायक दोनों तरफ के बेड़ों में उर्वरक, कीटनाशक या ग्रोथ प्रोमोटर का छिड़काव करने के लिये कर सकें। निडाई गुडाई भी कर सकें और दोनों तरफ के बेड से दो से तीन फीट की दूरी तक के फलों को तोड़ने के लिए उपयोग कर सकेंगे। इस नाली का एक फायदा यह भी है कि जब कभी भी आप स्प्रींकलर से सिंचाई करना चाहें तो स्प्रींकलर का स्टैंड भी नाली में जहाँ चाहें खड़ा कर सकते हैं। जिस प्रकार जल की कमी होती जा रही है, मैं जल प्रलय/जल प्रवाह या फ्लड इरीगेशन विधि से जल की सिंचाई की अनुशंसा बिलकुल नहीं करूंगा, चाहे आपके पास कितना भी शक्तिशाली बोरिंग हो। आप बरसात के पानी का संचय अवश्य करें, वह आगे काम देगा। भूमि का कटाव भी नहीं होगा। पानी का संरक्षण करने से आपके भूमि का जलस्तर भी ठीक बना रहेगा और बेहतर होता रहेगा ।

फसलों का चुनाव

अब आपके भूमि में बेड तैयार हो गये हैं । दो बेडो के बीच में नालियां भी बन गई है। अब फसलों का चुनाव करना है। मुख्य रूप् से हम साल भर में तीन फसलें लेते हैं: रबी, खरीफ और जायद।

रबी और खरीफ तो प्रचलित मौसमी फसलें हैं I लेकिन, जायद की फसल रबी के काटने के बाद और खरीफ से पहले यानि सामान्यतः गर्मी के मौसम में ली जाती है। हम कम पानी में भी इन तीनों फसलों को ले सकते हैं । क्योंकि हमने अपनी भूमि के चारो तरफ बांस के पौधे लगाकर वातावरण को सुरक्षित कर लिया हैं और तापमान को संतुलित बना लिया है। अब जितने भी बेड हमारे पास हैं, हम कोशिश यह करेंगे कि ज्यादा से ज्यादा फसलें लगायें। फसलों में अन्न भी हो सकता है, सब्जियां भी हो सकती है और यदि आप पशुपालन कर रहे हैं तो पशुओं के लिए हरा चारा भी हो सकता है। लेकिन, जिस बेड में आपने एक फसल लगाई है, रबी में उसी बेड में दूसरा फसल जायद में तीसरा । खरीफ में लगेगा I यह आवश्यक है कि भिन्न प्रकार की फसलें भूमि से अलग-अलग प्रकार के पोषक तत्वों का शोषण करती है। अतः भिन्न प्रकार की फसलों को लेने से जमीन में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है।

अलग-अलग बेडो पर अलग-अलग फसल क्यों ?

कई लोग यह पूछते हैं और पूछना स्वाभाविक भी है कि अलग-अलग बेडो पर अलग-अलग तरह के फसल क्यों लगानी चाहिए। कहने का मतलब यह है कि अलग-बगल के दो बेडो पर एक ही तरह के फसल लगाने से नुकसान क्या है? यह पूछना भी बाजिब है और इसका उत्तर जानना भी आवश्यक है। जब हम प्राकृतिक कृषि की बात करते हैं तो हमें यह जानकर चलना पड़ता है कि खेत में उपज किसान नहीं पैदा कर रहा है बल्कि वह मात्र एक सुविधा प्रदाता का कार्य कर रहा है। असली उपज तो जमीन में उपलब्ध हजारों प्रकार के असंख्य सूक्ष्म जीवाणु करते हैं I अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग तरह के सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। धान में काम करने वाले सूक्ष्म जीवाणु गेहूं में प्रभावी नहीं होंगे और गेहूं में काम करने वाले मक्का में प्रभावी नहीं होंगे। आलू में काम करने वाले सूक्ष्म जीवाणु बैगन में प्रभावी नहीं होगें और बैगन टमाटर में काम करने वाले जीवाणु अदरक, हल्दी में किसी काम के नहीं होंगे। पहली बात तो यह है ।

दूसरी बात तो यह है कि एक प्रकार के फसल के सूक्ष्म जीवाणु दूसरे प्रकार के फसल के सूक्ष्म जीवाणु भोजन भी होते हैं। अतः जब हम अलग-अलग बेड में अलग-अलग प्रकार के फसल लेंगे तो निम्नलिखित प्रक्रियाएं आरंभ हो जायेगी:-

उस फसल के लिए उपयोगी सूक्ष्म जीवाणु उस बेड के आसपास इकट्ठे हो जायेंगे और उस फसल के लिए जितने भी प्रकार के पोषक तत्व उस फसल के लिए चाहिए, उसे भूमि से या फिर चाहे तो वायुमंडल से जरूरत के हिसाब से पोषक तत्व जहां भी उपलब्ध होंगे इकट्ठा करेंगे और पौधे तक पहुंचाएंगे। अब चूँकि इन जीवाणुओं को अपने लिये भी भोजन चाहिए, जो कि उन्हें उस बेड के आसपास उपलब्ध नहीं होगा तो वे अपने दायें- बाएं बेड की भूमि पर जाकर वहां के सूक्ष्म जीवाणुओं को मार कर खायेंगे और पुनः अपने बेड पर आकर काम करने लगेगें । यदि काफी दूर तक एक ही फसल लगी होगी तो उन्हें अपने भोजन के लिए काफी दूरी तय करनी होगी जिसमें समय लगेगा, जिससे उनके श्रम और समय की हानि होगी। हम प्राकृतिक कृषि में अलग-अलग बेडो पर अलग-अलग फसल और एक फसल काटने पर पुनः उसी फसल को उसी स्थान पर लगाने की सलाह इसीलिये नहीं देते हैं।

अब अगले अंक में नये विषय पर बात करेंगे।