मुंबई। महाराष्ट्र सरकार ने गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को जानकारी दी कि साल 2015 में सिर्फ महाराष्ट्र प्रांत के 1000 किसानों ने आत्महत्या कर ली। कोर्ट ने किसानों की मौत के मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है। यह संज्ञान एक जनहित याचिका के रूप में लिया गया है। कोर्ट ने इसके तहत सुझाया कि सरकार इस समस्या से निपटने के लिए कॉरपोरेट जगत के लोगों को बीच में डालने पर विचार कर रही है।
जस्टिस नरेश पाटिल और गिरीश कुलकर्णी की बेंच ने कहा, ‘इस तरह से अगर व्यापारिक घराने किसानों की मदद के लिए अपनी कॉरपोरट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी के तहत आगे आएंगे, तो आत्महत्याएं कम करने में मदद मिलेगी।’
कुछ जिलों के सरकारी अधिकारी उस वक्त कोर्ट में मौजूद थे क्योंकि कोर्ट ने उन्हें ताकीद किया था। उन्होंने कहा कि सरकार ने कुछ स्कीम्स पेश की हैं, जिसके बाद कोर्ट ने यह पूछा कि आत्महत्याओं की संख्या बढ़ी है या घटी है। इसी सवाल के जवाब में सरकार की तरफ से यह आंकड़ा सामने आया। अधिकारियों ने माना कि संख्या बढ़ी ही है।
इसके बाद न्यायाधीशों ने सरकार से इसके कारण ढूंढने के लिए कहा। कोर्ट ने इस मुद्दे को उन मीडिया रिपोर्ट्स के चलते उठाया था जिनमें कहा गया था कि महाराष्ट्र में 2015 में 600 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान दे दी थी। लेकिन सरकारी अधिकारी अभिनंदन वाज्ञानी ने आज बताया कि यह संख्या दरअसल 600 नहीं 1000 है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार सामूहिक खेती को एक उपाय के रूप में पेश कर सकती है। इससे छोटी जमीनों वाले किसानों को मदद मिलेगी जो अपनी जमीनों से खेती की लागत भी नहीं निकाल पाते हैं।
सरकार को किसानों के लिए लाभकारी योजनाएं लाने का फरमान देते हुए जजों ने कहा कि सरकार सुनिश्चित करे कि योजनाएं सिर्फ कागज पर न रह जाएं, बल्कि उन्हें ठीक से लागू भी किया जाए।