नई दिल्ली। पासपोर्ट की आसान उपलब्धता भारत में एक तरह की प्रशासनिक क्रांति है। एक समय पर लैंड लाइन फोन नंबर और पासपोर्ट को लोग स्टेटस सिंबल मानते थे। माना जाता था कि पासपोर्ट होने के बाद आपकी सामाजिक स्थिति कई पायदान ऊपर हो जाती है। इसकी एक वजह यह भी थी कि पासपोर्ट हासिल करना आम लोगों के लिए टेढ़ी खीर होता था। लेकिन बीते कुछ सालों से भारतीयों के लिए पासपोर्ट हासिल करना या उसे कंप्यूराइज्ड सेवा केंद्रों में रिन्यू करवाना आसान हो गया है।
हर दिन करीब 50,000 लोग सेवा केंद्रों पर पहुंचते हैं। आधार कार्ड की तरह ही पासपोर्ट की आसान उपलब्धता भी प्रशासनिक कार्यों में सुधार का एक उदाहरण है। साल 2015 के आखिर तक 6.33 करोड़ भारतीयों के पास पासपोर्ट थे, जबकि 2013 में यह संख्या में 5.19 करोड़ थी। इस सप्ताह विदेश मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश में भी सेवा केंद्र स्थापित कर इस दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। चीफ पासपोर्ट ऑफिसर मुक्तेश परदेशी ने कहा कि अब हम पूरे देश को कवर करेंगे।
मेक्सिको में राजदूत नियुक्त किए गए परदेशी पिछले पांच सालों से केंद्र सरकार के पासपोर्ट अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। परदेशी ने कहा कि हमने टीसीएस जैसी कंपनी से करार किया है और तकनीक के मामले में सुधार हुआ है। लेकिन पुलिस वेरिफिकेशन आज भी कमजोर पहलू बना हुआ है। मुक्तेश परदेशी ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि किस तरह से अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार का गठजोड़ बना हुआ है। पिछले साल ही विदेश मंत्रालय और राज्य सरकार ने इसे लेकर ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन का आयोजन किया था। हालांकि बीते कुछ महीनों में एजेंसियों को ऑनलाइन पासपोर्ट सिस्टम से देश के 731 में से 683 पुलिस जिलों को जोड़ने में सफलता मिली है।
इसका अर्थ यह हुआ है कि पासपोर्ट दफ्तर से पुलिस वेरिफिकेशन के दस्तावेज थाने तक ऑनलाइन ही पहुंचेंगे और उसी प्रक्रिया के तहत वापस आएंगे। अब पुलिस थाने की ओर से यह नहीं कहा जा सकेगा कि ‘डॉक्युमेंट खो गए’ या दस्तावेजों को लेने के लिए कोई व्यक्ति नहीं है। अब ई-ट्रेल के जरिए पता लग सकेगा कि दस्तावेजों के वेरिफिकेशन में पुलिस ने कितनी देर लगाई। इससे हालात पहले की तुलना में खासे बदल गए हैं, जब पुलिस आवेदकों को प्रभावित करने की कोशिश करती थी या फिर ‘चाय-पानी की व्यवस्था’ जैसी मांग रखी जाती थी।
राज्यों के डीजीपी को इलेक्ट्रॉनिक डैशबोर्ड मुहैया कराए गए हैं, जिससे वह किसी आवेदन की स्थिति का पता लगा सकें और जिम्मेदार अधिकारियों को तलब कर सकें। 2015 में पासपोर्ट के एक आवेदन को जारी करने में 34 दिन का समय लगा, जबकि 2015 में 49 दिन का समय लगता था। यह स्थिति तब रही, जबकि पासपोर्ट के आवेदनों में भी 40 पर्सेंट का इजाफा हुआ है। उम्मीद की जा रही है कि इस साल से लोगों को 8 दिनों के भीतर ही पासपोर्ट हासिल हो सकेगा। परदेशी ने कहा कि हम जल्दी ही नागालैंड और जम्मू-कश्मीर के पुलिस जिलों को भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बनाने वाले हैं।
पासपोर्ट जारी करने के मामले में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रगति देखने को मिली है। बीते दो सालों में यूपी में पासपोर्ट जारी किए जाने की संख्या 6.5 लाख से बढ़कर 13 लाख से अधिक हो गई। साल 2015 में यूपी, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों ने 10 लाख से अधिक लोगों को पासपोर्ट मुहैया कराए। वहीं गुजरात, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, गुजरात, कर्नाटक और पंजाब ने पांच लाख से अधिक लोगों को पासपोर्ट मुहैया कराए। हालांकि पासपोर्ट जारी करने के मामले में सबसे अधिक ग्रोथ असम, मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा में हुई है।