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पीएम बतायें, क्या 12०० कानून खत्म करने से स्थिति सुलझेगी

राजेश श्रीवास्तव

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के डेढ़ सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में कोई साल भर से चल रहे समारोह के समापन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कानून को सहज व स्वाभाविक बनाने की दिशा में आगे बढक़र 12०० पुराने कानून खत्म कर दिये हैं। इससे उत्पन्न नयी स्थिति में वकीलों को ज्यादा अधिकार मिले हैं और अब सरकार चाहती है कि जेलों को कोर्टो से जोड़ दिया जाये और आपराधिक विवादों का निपटारा कैदियों को जेल से अदालत लाये बगैर वीडियो कान्फ्रेंसिग के माध्यम से संभव हो जाये।

सरकार जो भी चाहती हो लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि अदालतों में आने वाले विवादों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। यहां तक कि उनकी सुनवाई के लिए की गई न्यायिक व्यवस्था अपर्याप्त सिद्ध हो रही है। अभी कुछ ऐसे विवाद भी निर्णीत नहीं हो पाये हैं, जो देश की स्वतंत्रता से पहले अदालतों में ले जाये गये थे। हालत यह है कि जिन मामलों को देश या समाज से जुड़ा बताया जाता है वे भी 6०-6० वर्षों तक निर्णीत नहीं हो पाते। नीचे की अदालतों को कौन कहे, सर्वोच्च न्यायालय में भी अपीलों की सुनवाई का अवसर उन्हें दायर किये जाने के लगभग 19 साल बाद आता है।
इस सिलसिले में देश के सर्वाधिक प्रचारित रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद का, त्वरित सुनवाई के माध्यम से जिसे शीघ्रतापूर्वक निपटाने का प्रार्थना पत्र भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्बारा दिया गया था और जिसे उनके पक्षकार न होने के आधार पर नकार दिया गया, वह भी कब सुना जायेगा, तब तक कौन-सी निर्वाचित सरकार होगी और उसकी दिशा व कार्यक्रम क्या होंगे, अभी तक की रीति-नीति के मद्देनजर इस बाबत कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हम जानते हैं कि न्याय में विलम्ब वास्तव में न्याय से इन्कार करना है। लेकिन अब तो यह सहज स्वाभाविक रूप से प्रचलित है।
जहां तक प्रधानमंत्री की न्याय दिलाने में समाज के पिछड़े वर्ग को प्रमुखता देने की घोषणा का सवाल है, वे तो अशिक्षित, गरीब, आदिवासी व दलित ही हैं, जो अपनी असमर्थताओं के कारण न्यायपालिका के दरवाजों तक पहुंच कर भी न्याय नहीं पाते। स्थिति तो ऐसी है कि वे ऐसे मामलों में, जो कानून की दृष्टि में मामूली बताये जाते हैं, गिरफ्तार होने के बाद भी विचाराधीन कैदी के रूप में अपनी जिन्दगी जेलों में खपाने को अभिशप्त होते हैं क्योंकि उनके मामले समय रहते अन्तिम निर्णय तक नहीं पहुंच पाते। देशद्रोह, आतंकवाद तथा अन्य सार्वजनिक हितों से जुड़े देश के कई चर्चित मामलों में जो लोग गिरफ्तार किये गये, उन्हें 8-1० वर्षों तक बिना जमानत जेलों में रहना पड़ा, लेकिन अभियोजन पक्ष कोई ऐसा साक्ष्य नहीं प्रस्तुत कर पाया, जिससे उनका अपराध सिद्ध हो, जबकि अपराध सिद्ध भी हो जाता तो भी कानून में वर्णित अधिकतम जितनी अवधि की सजा उन्हें मिलती, उसे भोगकर वे बहुत पहले छूट गये होते। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने ठीक कहा कि गांधी जी भी कहते थे कि सरकार का लक्ष्य कतार के सबसे अंतिम व्यक्ति के आंसू पोंछना होना चाहिए, जो उसके साथ लगातार होते आ रहे अन्याय का खात्मा करके ही संभव है। सवाल है कि उसे ऐसी बनाने के अब तक कितने प्रय‘ किये गये? प्रधानमंत्री यह बताते हैं कि 12०० पुराने कानून अनावश्यक मानकर रद्द कर दिये गये, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि उनके स्थान पर कितने नये कानूनों का सृजन हुआ?