www.puriduniya.com नई दिल्ली। अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों के खिलाफ होने वाले उत्पीड़न के मामलों में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने मुआवजे की रकम बढ़ाने की अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना आंबेडकर जयंती के मौके पर 14 अप्रैल, 2016 को जारी की गई है। इसके साथ ही सरकार ने कहा है कि अधिसूचना तुरंत प्रभाव से लागू कर दी गई है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में संशोधन के लिए संसद का रास्ता चुनने की जगह सरकार ने अपने प्रशासनिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) रूल्स, 1995 में बड़े बदलाव किए हैं।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में संसद द्वारा 2016 में कुछ सुधार किए गए थे। इस संसोधन के द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ होने वाले अत्याचारों से उनकी सुरक्षा के लिए नियमों को और अधिक प्रभावी किया गया है।
संशोधित प्रावधानों के द्वारा उत्पीड़न से पीड़ित व्यक्ति को न्याय मिलने की प्रक्रिया में तेजी आएगी। साथ ही नए नियम महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामलों में भी काफी संवेदनशील हैं। अत्याचारों से पीड़ित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को राहत देने में तेजी लाई जाएगी।
कुछ प्रमुख संशोधन निम्न हैं:
1. 60 दिनों में जांच पूरी करके चार्जशीट फाइल करनी होगी।
2. बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के अपराधों के लिए राहत का प्रावधान (पहली बार यह प्रावधान आया है)।
3. यौन उत्पीड़न, महिलाओं के शील का अपमान करने के इरादे से इशारे या कृत्य या महिलाओं, निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग, छिप कर देखना अथवा पीछा करने जैसे गैर आक्रामक अपराध मामलों में मुआवजा प्राप्त करने के लिए मेडिकल जांच की आवश्यकता नहीं होगी।
4. गंभीर प्रकृति के अपराधों के लिए SC/ST महिलाओं को स्वीकार्य राहत राशि का प्रावधान ट्रायल के खत्म होने पर भले ही मामले में किसी को दोषी न ठहराया गया हो।
5. अपराध की प्रकृति के आधार पर राहत राशि को 75,000 से 7, 50,000 रुपए से बढ़ाकर 85,000 से 8,25,000 के बीच कर दिया गया है, वहीं औद्योगिक श्रमिकों के लिए जनवरी 2016 के लिए इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ा गया है।
6. कैश अथवा किसी भी प्रकार की राहत को अत्याचार से पीड़ित, उसके परिवार के सदस्यों और आश्रितों को सात दिनों में देने का प्रवधान।
7. अत्याचार के विभिन्न अपराधों के लिए पीड़ित को मुआवजे की राशि के भुगतान को तर्कसंगत बनाना।
8. प्रदेश, जिला और सब-डिविज़न स्तर पर संबंधित बैठकों में पीड़ितों और गवाहों को न्याय तथा उनके अधिकारों से संबन्धित योजनाओं की नियमित समीक्षा।