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नए जिम्मेदारी, नए तेवर में दिखेंगे जे.पी. नड्डा शीर्ष नेताओं की भूमिका में हो सकता है बदलाव

भाजपा अध्यक्ष के तौर पर मिले कार्यकाल विस्तार के बाद जेपी नड्डा नए तेवर में दिखाई पड़ेंगे। उनके सामने इस साल होने वाले नौ विधानसभा राज्यों और लोकसभा चुनावों में पार्टी को जीत दिलाने की कड़ी चुनौती है। इसके लिए कुछ राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों और प्रभारियों के कार्यभार में जल्द ही बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने अपने राजस्थान दौरे के समय ही स्पष्ट कर दिया था कि पूर्वोत्तर के छोटे चुनावी राज्यों में बदलाव के लिए समय नहीं बचा है, लिहाजा अब उनमें बदलाव करना संभव नहीं है। लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के कुछ शीर्ष नेताओं की भूमिका में बदलाव देखने को मिल सकता है।

राजस्थान और तेलंगाना अव्वल

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सभी राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों ने अपने-अपने राज्यों में पार्टी के कार्यों की जानकारी दी थी। इसमें राजस्थान और तेलंगाना का काम सबसे बेहतर पाया गया था और प्रधानमंत्री ने इन राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों सतीश पूनिया और बंडी संजय कुमार की काफी प्रशंसा भी की थी। इसलिए माना जा रहा है कि इन राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों को भी नड्डा की तरह कार्यकाल में विस्तार मिल सकता है।

ओबीसी जाट समुदाय के सतीश पूनिया राज्य की 52 फीसदी पिछड़ी आबादी को चुनावी समय में सहेजने में काफी सहायक साबित हो सकते हैं, जिसके कारण उन्हें भी कार्यकाल में विस्तार मिल सकता है, वहीं बंडी संजय कुमार ने गैर-भाजपा शासित राज्य तेलंगाना में पार्टी को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। उन्हें भी उनकी मेहनत का इनाम मिल सकता है।

कार्यकारिणी की बैठक में छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पार्टी का कार्य अपेक्षा के अनुरूप नहीं पाया गया है। यहां सफलता पाने के लिए संगठन और मुद्दों के मामले में ज्यादा काम करने की जरूरत महसूस की गई है। यही कारण है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा कार्यकाल विस्तार के बाद सबसे पहले पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं। वे यहां पार्टी संगठन के कील-कांटे दुरुस्त करने का प्रयास करेंगे। पार्टी कुछ ही समय बाद होने वाले पंचायत चुनावों में अपनी पकड़ मजबूत बनाकर लोकसभा में अपना दबदबा बनाने की कोशिश में है।

छत्तीसगढ़ में फंसा पेंच

भाजपा अध्यक्ष की बड़ी चिंता मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर है। मध्यप्रदेश में लंबे समय से शासन कर रही भाजपा की कमजोरियां पिछले विधानसभा चुनाव में ही उजागर हो गई थीं। पार्टी नेतृत्व के सामने संगठन के आंतरिक तनाव से उबरते हुए जीत हासिल करना है। इस लय को लोकसभा चुनावों तक बरकरार भी रखना है, क्योंकि मध्यप्रदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा सफलता दिलाने वाले राज्यों में शामिल रहा है।

छत्तीसगढ़ में भाजपा रमन सिंह के प्रभाव से उबर नहीं पाई है, जबकि राज्य के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल का दबदबा आदिवासी-किसान वोटरों पर मजबूत हुआ है। यदि भाजपा की पकड़ विधानसभा चुनावों में कमजोर हुई, तो उसे इसका खामियाजा लोकसभा चुनाव में भी उठाना पड़ सकता है। यही कारण है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए ज्यादा सचेत है। माना जा रहा है कि इन नई चुनौतियों के मद्देनजर इन राज्यों के संगठन में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।