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मणि शंकर अय्यर कांग्रेस के दोस्त या दुश्मन?

सुरेन्द्र किशोर

मणिशंकर अय्यर ने ही मंडल आयोग की रपट पर राजीव गांधी को सलाह दी थी। उस सलाह का नतीजा यह हुआ कि व्यापक जनाधार वाली कांग्रेस की छवि आरक्षण विरोधी दल के रूप में बन गई। नतीजतन बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़ा बहुल राज्य में 1990 के बाद कांग्रेस का कोई मुख्य मंत्री नहीं बन सका। उसके बाद लोक सभा में कभी कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका।

30 सितंबर 1990 के इंडिया टूडे के अनुसार,‘कांग्रेस कार्य समिति व राजनैतिक मामलों की समिति की साझी बैठक में पेश करने के लिए मणिशंकर अय्यर ने प्रस्ताव तैयार किया था। ऐसा करने के लिए उन्हें राजीव ने कहा था। उसी प्रस्ताव को राजीव गांधी ने बैठक में पेश किया जिसमें मंडल आयोग की रपट को पूरी तरह ठुकरा देने की बात कही गई थी।

पर, प्रस्ताव पर बैठक में हंगामा हो गया। सीताराम केसरी,बी.शंकरानंद तथा पिछड़े वर्ग के अन्य सदस्यों के विरोध के बाद मजबूरन राजीव को बीच का रास्ता अपनाना पड़ा। पर, राजीव गाधी ने संसद में इस मुद्दे पर अपने 3 घंटे के भाषण में मंडल रपट को खारिज करने की कोशिश की।

मंडल आरक्षण पर आयोजित सर्वदलीय बैठक में भी राजीव गांधी कह चुके थे कि ‘मंडल आयोग की रपट गीता और कुरान नहीं है।’ समाज व राजनीति को नहीं समझने वाले सलाहकारों के कारण किसी दल का जो हाल हो सकता है, वही कांग्रेस का हुआ है। अय्यर ने 2014 के चुनाव से पहले कहा था कि तमिलनाडु में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी। पर एक सीट मिल गई। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी 21 वीं सदी में प्रधान मंत्री नहीं बनेंगे। बन गए। फिर जब नीच कहा तो उसका भाजपा ने चुनावी लाभ उठा लिया। पिछले दिनों अय्यर ने पाकिस्तान जाकर वहां के लोगों से अपील की कि आप लोग मोदी को हराइए। पता नहीं उसका किस पक्ष पर कितना असर मौजूदा चुनाव में पड़ रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से)