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देवीदीन पाण्डेय नामक हिन्दू वीर ने 490 वर्ष पूर्व ही राम मंदिर की रक्षा हेतु 70,000 युवाओं की सेना बना कर खुद को राम चरणॊं में समर्पित किया था

राम मंदिर की रक्षा हेतु आज से नहीं अपितु पिछले पांच सौ साल से हिन्दुओं ने अपने रक्त बहाये हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इतिहास के पन्नों में लुप्त हुए इन राम भक्तों की शौर्य गाथा के बारे में स्वयं हिन्दुओं कॊ ही ज्ञात नहीं है। इस्लामी हठधर्मी बाबर ने अपने घिनौने प्रेम की निशानी के रूप में बबुरी के नाम पर राम मंदिर को तोड़ कर वहां महल बनाने का आदेश दे दिया था। जब यह बात राम भक्तों के कानों में पड़ी तो हर एक भक्त सैनिक बनकर राम मंदिर की रक्षा करने हेतु दीवार बनकर खड़ा हो गया। 1528 ई. में जब भीटी नरेश महताब सिंह को राम मंदिर को तोड़े जाने की खबर मिली तब वे मंदिर की रक्षा हेतु युद्ध सन्नद्द होते हैं। बाबर की सेना और महताब सिंह की सेना के बीच आठ दिनों तक घमासान युद्ध चलता है।

इसी महताब सिंह की सेना में सैनिक हुआ करता था देवीदीन पाण्डेय। सनेतू के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्मा देवीदीन बाल्य काल से ही सनातन संस्कारों को बहुत ही महत्व देता था। जैसे ही उसे राम जन्म भूमी की रक्षा हेतु महताब सिंह द्वारा किये जा रहे युद्ध का पता लगता है, वह स्वयं राम लला के रक्षा कार्य में जुट जाता है। देवीदीन पाण्डेय भारत के हर युवा के हृदय में राष्ट्र भक्ती भर देता है। बाबर के पिठ्ठू मीर बांकी से लोहा लेने हेतु करीब 70,000 युवाओं की सेना खड़ा  कर देता है। देश के युवाओं को राम मंदिर के रक्षा करने हेतु ललकारते हुए शेर की भांती रण भूमी में कूद कर सुअरों के झुंड को काट डालता है।

कहा जाता है कि देवीदीन पाण्डेय स्वंयं महाकाल का रूप बनकर मुगल सेना पर टूट पड़ता है और केवल एक दिन के भीतर वह अकेला 600 मुगल सैनिकों को काट देता है। देवीदीन की सेना इतनी आक्रामक रूप से युद्ध लड़ती है कि लाखों की मुगल सेना हज़ारों में आकर सिमट जाती है। धर्मांध मुगल सेना के सैनिक, राम भक्तों का मुकाबला नहीं कर पाते हैं। मुगल सैनिकों को राम भक्त चींटियों को कुचलने की भांती कुचल देते हैं। देवीदीन का रौद्र रूप देखकर मुगल सेना का नायक मीर बांकी की आत्मा तक कांप जाती है और वह अपनी जान बचाने हेतु छुप जाता है।

देवीदीन पाण्डेय के शौर्य का गुणगान करते हुए  इतिहासकार कहते हैं कि सर फूटने के बाद भी देवीदीन रणा भूमी से पीछे नहीं हटा। सर पे पगड़ी बांध कर वह मुगल सुवरों को काटता रहा। उसके प्रराक्रम के चर्चे खुद बाबर के कानों में पहुंच गये थे और उसने देवीदीन की शौर्य का बखान करते हुए लिखा ‘‘जन्मभूमि को शाही अख्तियारात से बाहर करने के लिए दो चार हमले हुए, उनमें से सबसे बड़ा हमलावर देवीदीन पाण्डे था। इस व्यक्ति ने एक दिन में केवल तीन घंटे में ही गोलियों की बौछार के रहते हुए भी शाही फौज के सात सौ व्यक्तियों का वध किया। एक सिपाही की ईंट से उसकी खोपड़ी घायल हो जाने के उपरांत भी वह अपनी पगड़ी के कपड़े से सिर को बांधकर इस कदर लड़ा कि किसी बारूद की थैली को जैसे पलीता लगा दिया गया हो!’’

खुद शत्रू ने देवीदीन के शौर्य की प्रशंसा की हो तो अनुमान लगाइये उस राम भक्त के पराक्रम का। संपूर्ण घायल अवस्ता में भी देवीदीन लड़ता रहा लेकिन दुर्भाग्य कि मीर बांकी ने छल से देवीदीन को मार गिराया। कहते हैं कि बाबर ने देवीदीन के मृत शरीर को तॊप के सामने बांध कर उड़ा दिया था। एक महान यॊद्धा जिसने राम जन्म भूमी की रक्षा हेतु अपनी प्राणॊं की बली चढ़ादी उस की शौर्य गाथा को राम भक्त ही जानते नहीं। सनेतू में देवीदीन पाण्डेय के वंशज आज भी राम जन्म भूमी में मंदिर बनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

देवीदीन पाण्डेय के मृत्यु के पश्चात राम जन्म भूमी की रक्षा का कार्य एक राष्ट्र व्यापी आंदॊलन का रूप ले लेता है। वीर यॊद्धा रण विजय सिंह राम जन्म भूमी की रक्षा का भार अपने कंधों पर ले लेता है। उसके मृत्यु  के पश्चात उसकी पत्नी रानी जया कुमारी और उसके गुरू महेश्वरानंद ने राम जन्म भूमी की रक्षा करते हुए प्राणॊं की आहुति दिया। बाबर से लेकर अब तक यह संघर्ष चलते हुए आया है। राम जन्म भूमी संघर्ष आज से नहीं अपितु पांच सौ सालों से चल रहा है। एक नहीं, दो नहीं, करोड़ों राम भक्तों ने राम जन्म भूमी की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया है। बाबरी मस्जिद पानी और पसीने से नहीं बना है अपितु हमारे हिन्दू वीर राम भक्तों के रक्त से बना है। उनके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगें। मंदिर वहीं बनेगा जहां राम का जन्म हुआ है और जहां राम भक्तॊं के रक्त का तर्पण चढ़ा है।