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कर्नाटक चुनाव: कांग्रेस करा रही मुस्लिम बेटियों की शादी तो देवेगौड़ा अगले जन्म में बनना चाहते हैं मुसलमान

नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुका है. 10 मई की शाम प्रचार थमने के साथ ही विभिन्न राजनीतिक पार्टियां गुणा-भाग लगाने में जुट जाएंगी कि आखिर 12 मई को उन्हें किस समाज के लोग वोट दे सकते हैं. यूं तो नेताओं से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का फोकस लिंगायत और वोक्कालिगा समाज के रुख पर है, लेकिन इन सबके बीच कर्नाटक के मुसलमानों वोटर का मन भांपना भी जरूरी है. यहां से 2019 का माहौल भी तो बनना है. बीजेपी कांग्रेस के एक मात्र बड़े गढ़ को जीतकर आम चुनाव में बुलंद इरादे के साथ उतरना चाह रही है. वहीं कांग्रेस इस चुनाव में बीजेपी को पटखनी देकर 2019 के रण में उतरने से पहले वोटरों के बीच पार्टी की स्वीकार्यता का संदेश देने की कोशिश में है.

कर्नाटक की 65 सीटों पर हार-जीत तय करते हैं मुसलमान
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों दलों के नेताओं के बीच प्रचार के दौरान मंदिरों और मठों का दौरा करने की होड़ दिखी. बीजेपी और कांग्रेस की ओर से नेता लगभग हर समाज के मठों और मंदिरों में पहुंचकर तस्वीरें क्लिक कराते दिखे. इसके उलट कम ही ऐसे मौके देखने को मिले जब किसी मुस्लिम समाज के कार्यक्रम में नेताओं के शामिल होने की तस्वीर अखबारों में छपी हो. मीडिया के जरिए कर्नाटक के बाहर से चुनाव को देखने वाले लोगों के जेहने ये भी सवाल उठे होंगे कि क्या इस राज्य में मुसलमान वोटरों को कोई महत्व नहीं है. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 65 पर मुस्लिम वोटर निर्णायक रोल में हैं. राज्य में इनकी करीब 13 फीसदी आबादी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक बीदर, कलबुर्गी और भटकल जैसे इलाके की विधानसभा सीटों पर 30-50 फीसद मुस्लिम वोटर हैं. वहीं बेंगलुरु की 20 विधानसभा सीटों पर इनकी जनसंख्या 10 से 50 फीसद तक है.

कांग्रेस और जेडीएस में मुसलमानों को रिझाने की होड़
कर्नाटक में मुख्य रूप से कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस तीन राजनीतिक दलों के बीच मुकाबला है. हालांकि मुस्लिम वोट पाने के लिए केवल कांग्रेस और जेडीएस कोशिश में दिख रही है. उधर, बीजेपी भले ही हिन्दुत्व से जुड़े मुद्दों को छेड़कर मुस्लिम वोटरों के प्रति अपनी उदासीनता को जाहिर कर रही है, लेकिन बूथ लेवल के प्रचार में ‘तीन तलाक’ के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं को अपने पाले में करने की कोशिश में भी जुटी है. चुनाव में जहां तक टिकट देने का सवाल है तो कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 17 मुसलमानों को टिकट दिया है, वहीं जेडीएस ने 8 मुस्लिमों को अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतारा है. बीजेपी ने किसी भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है.

मुस्लिम वोट की खातिर कांग्रेस की ये है रणनीति
1. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से लेकर कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी तक लगातार रैलियों में जेडीएस को बीजेपी की ‘बी’ टीम बता रहे हैं. कांग्रेसी ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो चुनाव बाद जेडीएस और बीजेपी मिलकर सरकार बना लेंगी, जो मुस्लिमों के लिए अच्छा नहीं होगा.

2. सीएम सिद्धारमैया की सरकार ने मुस्लिम लड़कियों के विवाह में 50,000 रुपये की आर्थिक मदद देने के लिए ‘शादी भाग्य’ योजना शुरू की थी. चुनाव में इसका जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है.

3. सिद्धारमैया गैर राजनीतिक संगठन ‘अहिंद’ चलाते हैं. इस संगठन का पहला अक्षर ‘अ’ अल्पसंख्यकों के लिए रखा गया है. सिद्धारमैया इसके जरिए संदेश देने की कोशिश करते हैं कि वे ही मुस्लिम हितैषी हैं.

4. आरएसएस और बीजेपी के भारी विरोध के बाद भी सिद्धारमैया सरकार ने साल 2015 में टीपू सुल्तान की जयंती मनाई थी. इसके अलावा मौजूदा सरकार ने हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के शासक रहे बहमनी सुल्तान की भी जयंती मनाई थी.

5. चुनाव से ठीक पहले सीएम सिद्धारमैया ने जेडीएस के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे जमीर अहमद खान एवं इकबाल अंसारी को कांग्रेस में शामिल कर लिया है. इन दोनों नेताओं से कांग्रेस मुस्लिम बहुल इलाकों में प्रचार करवा रही है. ये दोनों बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जेडीएस को वोट देने का मतलब है बीजेपी को मजबूत करना, क्योंकि चुनाव बाद ये दोनों मिलकर सरकार बनाने की कोशिश में हैं.

मुस्लिमों पर डोरे डालने के लिए जेडीएस का दांव
1. कांग्रेस लगातार आरोप लगा रही है कि जेडीएस चुनाव बाद बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लेगी. इस आरोप के बचाव में जेडीएस के सबसे बड़े चेहरे और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने कहा है कि अगर उनके बेटे एचडी कुमार स्वामी ऐसा करते हैं तो वे उन्हें पार्टी से निकाल देंगे.

2. एचडी देवेगौड़ा ने एक चुनावी सभा में कहा है कि अगर उन्हें दोबारा जन्म लेने का मौका मिला तो वे मुसलमान बनना चाहेंगे.

3. जेडीएस ने कर्नाटक से सटे आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समाज के बीच तेजी से चर्चित चेहरा बन रहे AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से अपने पक्ष में प्रचार करवा रहे हैं. ओवैसी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतारने की बात कही थी, लेकिन जेडीएस की सलाह पर उन्होंने ऐसा नहीं किया.