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आखिर क्यों आजकल रात में ठीक से नींद नहीं ले पा रहे हैं अखिलेश

लखनऊ। आजकल अखिलेश की आंखों से नींद उड़ी हुई है। जो अखिलेश समय से सोना और समय से जागना पसंद करते थे, आजकल देर रात तक जागते हैं। इस बार चिंता का सबब पारिवारिक या निजी समस्या नहीं है, बल्कि शुद्ध सियासी मसला है। जो अखिलेश की आंखों से नींद गायब किए हुए है।

करीबियों की मानें तो अखिलेश के जेहन में कई बातें चल रहीं हैं। या तो वह मुलायम, रामगोपाल और नरेश अग्रवाल जिस धारा में बह रहे हैं, उस धारा में बहें या फिर उस धारा के विपरीत चलकर मोदी को वो चुनौती दें, जिसकी हिम्मत नीतीश कुमार भी नहीं जुटा पाए। सियासी जानकार कहते हैं कि अगर अखिलेश टूटे नहीं तो एक झटके में उनका कद मुलायम और नीतीश से भी बड़ा हो जाएगा।

मोदी और अमित शाह जिस तेजी से हर सूबे की सत्ता हथियाते जा रहे हैं। चाहे वह मिशन बिहार हो, मिशन अहमद पटेल हो, आपरेशन विधान परिषद हो या फिर आपरेशन गोवा और मणिपुर। उससे सबसे ज्यादा विचलित न तो राहुल गांधी हैं और न ही लगातार चुनाव हारने पर सड़क पर आईं मायावती। सबसे ज्यादा अगर किसी की दिक्कतें बढ़ रहीं हैं। और परेशानियां गहरा रहीं हैं तो वह है सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की।

अखिलेश यादव के साथ जो बेचैनी है, वह बेचैनी उस शिवपाल से नहीं है, जिनसे अखिलेश ने सरकार में रहते दो-दो किया। अबकी अखिलेश की दिक्कत उस चाचा रामगोपाल से है, जिनके हाथों में भरोसा करके उन्होंने अपने गर्दन दे दी थी। आज वही रामगोपाल अपने बेटे अक्षय को सीबीआई से बचाने के लिए मोदी की गोद में  सरकते जा रहे हैं। करीबियों का कहना है कि जिस रामगोपाल के लिए अखिलेश ने पिता मुलायम से भी  बगावत कर ली, वही रामगपोल जब मोदी की गोंद में बैठे नजर आ रहे  तो वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे।

इससे बड़ी चौंकाने वाली बात क्या होगी। रामगोपाल यादव ने राजनीति के 25 साल के जश्न की पार्टी में मुख्य अतिथि अपनी पार्टी के मुखिया अखिलेश को नहीं  बल्कि वैचारिक विरोधी पार्टी के नरेंद्र मोदी को बनाया। ऐसे में किस मुंह से सपा नरेंद्र मोदी से  वैचारिक लड़ाई लड़ने की बात कहती है। सियासी गलियारे में यह बात चर्चा-ए-खास रही कि जिस महफिल को मोदी और अरुण जेटली ने सजाया, वहां अखिलेश का एक भी सिपहसालार नजर नहीं आया।

और इन दो चाचाओं में जहां शिवपाल अलग हुए, वहीं रामगोपाल अलग होने की कगार पर हैं। पिता मुलायम पहले से ही मोदी के सिंहासन के पहले खड़े हो चुके हैं।

अब अखिलेश दोराहे पर खड़े हैं। अगर वो नीतीश बनकर मोदी का दामन थामते हैं तो सारा परिवार एकजुट हो सकता है। लेकिन यूपी में जिन करोडों मुसलमानों की राजनीति सपा करती आई है, वो मुसलमान हाथ से ऐसा निकलेंगे कि फिर कभी नहीं लौटेंगे। उर्दू पत्रकार नसीम कुरैशी कहते हैं कि मुलायम और शिवपाल मुस्लिम हितों के मुद्दे पर बहुत डायलूट हुए। सबने विश्वासघात किया। सब मोदी की गोदी में खेलते जा रहे हैं। मगर अखिलेश अब भी अपने स्टैंड पर कायम हैं।  जिस ढंग से रामगोपाल की पार्टी में मोदी शामिल हुए, उससे यूपी के मु्स्लिमों के मन में सपा नेताओं को लेकर संदेह गहराता जा रहा है। अगर अखिलेश मोदी की गोदी में नहीं गए तो यकीनन मुस्लिमों का हिलता भरोसा वह जीतने में सफल होंगे।

अखिलेश दोराहे पर खड़े हैं। मुसलमानों के साथ जाएं या मोदी के साथ। उनके सामने बड़ा संकट है। अगर अखिलेश ज्यादा समय तक दोराहे पर खड़े रहते हैं तो गिद्ध दृष्टि लगाए शिवपाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की शह पर सपा को तोड़कर अलग कर देंगे। मधुकर जेटली, बुक्कल नवाब ही नहीं, ऐसे कई विधायक जिन्होंने जनता की गाढ़ी कमाई लूटी है, वो इनकम टैक्स और सीबीआई के डर से शाह की एक घुड़की पर बीजेपी में ऐसे घुसेंगे जैसे मुर्गे दड़बे में घुसते हैं।