मुंबई। बीते सप्ताह ही पीएम नरेंद्र मोदी ने स्टार्टअप इंडिया अभियान को लॉन्च किया था। लेकिन बीते 24 महीनों से भारत में शुरू होने वाले स्टार्टअप्स में अरबों डॉलर का निवेश कर चुके विदेशी निवेशकों में अब पहले जैसा उत्साह नहीं देखा जा रहा है। इंटरनेट बेस्ड स्टार्टअप्स में बड़े पैमाने पर इन्वेस्ट करने के बाद अब निवेशक इसमें कटौती करते दिख रहे हैं। इसकी बड़ी वजह वैल्यूएशन में कमी और प्रॉफिट मिलने में देरी की संभावना है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को स्टार्टअप इंडिया अभियान की शुरुआत करते हुए कहा था कि सरकार चार साल के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का फंड तय करेगी। इस फंड को स्टार्टअप्स शुरू करने में खर्च किया जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि उसके इस अभियान से नई नौकरियां सृजित हो सकेंगी। लेकिन पीएम मोदी का यह ऐलान आंत्रप्रन्योर्स के डर के चलते कमजोर साबित हो सकता है। चीन की इकॉनमी में स्लोडाउन के माहौल को देखते हुए वेंचर कैपिटलिस्ट्स ने पहले ही अपनी ओर से पैसों को रोकना शुरू कर दिया है।
नॉर्वेस्ट वेंचर पार्टनर्स के इंडिया हेड नीरेन शाह ने कहा, ‘पहले चरण में निवेशकों ने बड़े पैमाने पर निवेश किया था। लेकिन अब निवेशक देखा चाहते हैं कि आंत्रप्रन्योर्स अपने कारोबार को कैसे मैनेज करते हैं और प्रतिस्पर्धी माहौल में खड़ा करते हैं।’ पीएम मोदी ने स्टार्टअप इंडिया अभियान की शुरुआत करते हुए ऐलान किया था कि नए शुरू होने वाले स्टार्टअप्स को तीन साल तक टैक्स में छूट दी जाएगी। इसके अलावा निवेशकों पर भी यह छूट लागू होगी, साथ ही स्टार्टअप्स को बंद करना भी आसान होगा।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के ज्यादातर टेक बेस्ड स्टार्टअप्स घाटे में ही चल रहे हैं। इन्होंने डिस्काउंड आधारित बिजनस मॉडल को अपनाया है। देश के दो सबसे बड़े ई-कॉमर्स रिटेलर फ्लिपकार्ट और स्नैपडील ने ऐस्सेल पार्टनर्स, टेमासेक होल्डिंग्स और जापान के सॉफ्ट बैंक जैसी संस्थाओं को निवेश के लिए जोड़ा है। हालांकि अब तक इन दोनों कंपनियों को नुकसान ही उठाना पड़ा है। दोनों कंपनियां बड़े डिस्काउंट्स के जरिए ही अपनी सेल बढ़ाने में जुटी हैं।