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बसपा सोशल इंजीनियरिंग के सहारे उतरेगी नगर निकाय चुनाव के मैदान में, पुराने फार्मूले से नए चुनाव जीतने की आस

लखनऊ बहुजन समाज पार्टी पुराने फार्मूले से नए चुनाव जीतने की आस में है। पार्टी मुस्लिम-दलित के साथ स्थानीय जातिगत गठजोड़ को आधार बनाएगी। बसपा सोशल इंजीनियरिंग के सहारे ही नगर निकाय चुनाव में उतरेगी।

बसपा पुराने फार्मूले के सहारे नये चुनाव जीतने की आस में है। वह निकाय चुनाव में अपनी सोशल इंजीनियरिंग का भरपूर प्रयोग कर लोकसभा चुनाव की राह आसान करना चाहती है। इसी फार्मूले को हिट करने के लिए वह फिर दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर फोकस कर रही है।

दरअसल, थिंक टैंक का मानना है कि किसी भी तरह से मुस्लिमों को पार्टी में पुन: लाया जाए। दलित-मुस्लिम समीकरण बनेगा तो पार्टी मजबूत होगी। क्षेत्रीय वर्चस्व वाली जातियों को टिकट दिया जाए। इसी सोशल इंजीनियरिंग के सहारे पार्टी प्रदेश में चार बार सरकार बना चुकी है।

पिछले निकाय चुनाव में भी इसी समीकरण के सहारे मेरठ में सुनीता वर्मा ने महापौर पद भाजपा से छीन लिया था। वहीं, दलित-मुस्लिम समीकरण बनने से अलीगढ़ में बसपा के फुरकान विजयी रहे। अन्य दो सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी।

महापुरुषों की चिंता
पार्टी को यह भी चिंता है कि दूसरे दल उन महापुरुषों की जयंती मना रहे हैं जिन पर बसपा अपना दावा करती रही है। जैसे सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से रायबरेली में पार्टी संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा की स्थापना में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव शामिल हुए।

इसी तरह से महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती भी विभिन्न दलों ने मनाई। इस पर पार्टी सुप्रीमो मायावती ने तंज भी कसा कि अब ऐसे लोगों को यह महापुरुष याद आ रहे हैं जो इनका विरोध करते थे। पार्टी को यह भी चिंता है कि दूसरे दल उनके कोर वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। खास तौर से दलितों में सेंध लगने से बसपा को बड़ा नुकसान हुआ है। विधानसभा चुनाव 2022 में काफी दलित पार्टी से छिटक गए। अब इन्हें किसी तरह पार्टी में वापस लाना है।
आगे का रास्ता
विधानसभा चुनाव में बसपा की सोशल इंजीनियरिंग पूरी तरह से फेल होने से उसे मात्र एक सीट मिली थी। बावजूद इसके पार्टी इसी फार्मूले को हिट मान रही है। इसीलिए वह इस प्रयोग को दोहराना चाहती है। रणनीतिकारों का मानना है कि सपा से मुस्लिमों का भरोसा टूटा है। विधानसभा चुनाव में सपा सरकार न बनने से हो सकता है कि इस बार फिर से मुस्लिम बसपा की ओर लौट आएं। यदि परिणाम अच्छे आए तो लोकसभा चुनाव 2024 में यही फार्मूला इस्तेमाल किया जाएगा।