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शंकराचार्य की प्रार्थना से खुश होकर श्रीकृष्ण ने दिया था यह वरदान, जहां.जहां उनके पांव पड़ेंगे, नदी वहीं बहेगी

आदि शंकराचार्य का जन्म कालडि में बारह सौ वर्ष पहले शिवगुरु और आर्यम्बा के घर में हुआ था। कालडि में पेरियार नदी बहती है, जिसका पुराना नाम पूर्णा है। आदि शंकराचार्य ने आठ साल की उम्र में संन्यास ले लिया था। कालडि एक छोटा सा गांव था, जहां से अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर निकलकर आदि शंकराचार्य ने 32 वर्ष की अल्पायु में ही देश में चार मठ स्थापित किए और अद्वैतवाद का सिद्धांत दिया।

कालडि में पहुंचते ही सबसे पहले दर्शनार्थी को मंदिर के बोर्ड पर लिखा मिलता है—श्री आदि शंकराचार्य जन्मभूमिक्षेत्रम, पूर्णा नदी तटम्,कालटी। अंदर प्रवेश करते ही एक बहुत बड़ा शंख बना हुआ है। मंदिर के घिसे पत्थर इसकी प्राचीनता और महत्व बताते प्रतीत होते हैं। कमल के आकार का देवी शारदा का मंदिर, अन्य देवियां और जाली से झांकती, पूर्णा नदी इसे अनोखी आभा देते हैं।

कहते हैं कि शंकराचार्य की प्रार्थना से खुश होकर श्रीकृष्ण ने वरदान दिया कि जहां-जहां उनके पांव पड़ेंगे, नदी वहीं बहेगी। और पूर्णा शंकराचार्य के कदमों का पीछा करती, यहां तक चली आई। इसीलिए इस गांव का नाम कालडि (पांव के निशान) पड़ा। मंदिर परिसर के बाहर कृष्णजी का एक मंदिर भी है। उसी के पास ऋग्वेद पाठशाला, क्रोकोडाइल घाट और शंकराचार्य की माता की समाधि है। इसे यहां का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। सामने गणेश जी का मंदिर, उसके पीछे बहुत बड़ी यज्ञशाला है। यहां दीवारों पर शंकराचार्य के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्र बने हैं। मंदिर में वेदपाठी छात्र पूजा-पाठ करते हुए दिखाई देते हैं।

बताते हैं कि क्रोकोडाइल घाट पर स्नान करते वक्त एक मगरमच्छ ने शंकराचार्य का पांव पकड़ा था। तब उन्होंने अपनी मां से कहा था कि यदि वह उन्हें संन्यास लेने की आज्ञा देंगी, तो मगर उनका पैर छोड़ देगा। ऐसा ही हुआ था। हालांकि मां नहीं चाहती थीं कि उनका इकलौता पुत्र संन्यासी बने।

यहां शंकराचार्य मंडपम् भी एक महत्वपूर्ण स्थल है। इस मंडप में शंकराचार्य के जीवन की प्रमुख घटनाएं उकेरी गई हैं।केरल में शंकराचार्य का बहुत आदर है। हालांकि वह बचपन में ही यहां से उत्तर भारत की ओर संन्यासी बनकर चले गए थे। यहां हर साल अप्रैल में शंकराचार्य जन्मोत्सव मनाया जाता है। नवरात्रि उत्सव की भी धूम रहती है।

कैसे पहुंचें- एर्नाकुलम जिले में स्थित कालडि पहुंचने के लिए कोच्चि से तमाम साधन हैं। एर्नाकुलम से कोच्चि हवाई अड्डे की दूरी लगभग 27 किलोमीटर है। कोच्चि से कालडि की दूरी लगभग 52 किलोमीटर है, जहां से राज्य परिवहन निगम की बसें मिल जाती हैं। कोच्चि हवाई मार्ग से भी देश के लगभग तमाम हवाई अड्डे से जुड़ा है और ट्रेन से भी। टैक्सी भी ले सकते हैं।