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निकाय चुनाव में दलित मुस्लिम मिलकर ही भाजपा की राह रोक सकते हैं: मायावती

लखनऊ

प्रदेश में कुल 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद और 544 नगर पंचायतों में चुनाव हो रहा है। इसके लिए बसपा ने फिर से मुस्लिमों को जोड़ने की आस लगाई है। कोआर्डिनेटरों से कहा गया है कि मुस्लिमों को यह समझाया जाए कि दलित मुस्लिम मिलकर ही भाजपा की राह रोक सकते हैं।

शहरी निकाय चुनाव में बसपा दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की कोशिश में लगी है। पर, यह उसके लिए आसान नजर नहीं आ रहा है। गांव चलो अभियान में बसपा ने इसी समीकरण पर मुख्य फोकस किया था, पर इसका ऐसा सार्थक परिणाम नहीं निकल पाया जिसकी बसपा सुप्रीमो मायावती को उम्मीद थी। हालांकि इससे गांवों में बसपा ने अपना आधार मजबूत करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी और इसमें कुछ लोगों को जोड़ा भी गया। ऐसे में सभी कोऑर्डिनेटरों से कहा गया है कि जिन सीटों पर दलित और मुस्लिम मिलकर जीत हासिल कर सकते हों, वहां दोनों को ही बसपा से जोड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया जाए। इसी समीकरण के साधने वाले उम्मीदवार चुने जाएं।

दरअसल बसपा के लिए विधानसभा चुनाव 2022 बेहद खराब रहा। इस चुनाव में बसपा से मुस्लिम वोटर तो कटे ही, दलित भी छिटके। यह स्थिति तब थी जब इस चुनाव में बसपा ने 60 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी रण में उतारा था। इनमें से एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया। इसका मुख्य कारण मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा हिस्सा सपा की ओर जाना माना गया। पूरे प्रदेश में ही बसपा को एकमात्र सीट मिली। अब भी मुसलमानों का झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ ज्यादा नजर आ रहा है। अब शहरी निकाय चुनाव में बसपा खास तैयारी कर रही है।

प्रदेश में कुल 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद और 544 नगर पंचायतों में चुनाव हो रहा है। इसके लिए बसपा ने फिर से मुस्लिमों को जोड़ने की आस लगाई है। कोआर्डिनेटरों से कहा गया है कि मुस्लिमों को यह समझाया जाए कि दलित मुस्लिम मिलकर ही भाजपा की राह रोक सकते हैं। इसके लिए गांव चलो अभियान शुरू किया गया था, जिसमें मुस्लिमों को जोड़ने के लिए कैडर कैंप लगाए गए। लगातार कैंप लगे, पर उसका बड़ा लाभ बसपा को मिल जाएगा, इसे लेकर अभी बसपा थिंक टैंक ही मुतमइन नहीं हैं। यदि पिछले चुनाव को देखें तो बसपा ने दो नगर निगम की सीटें मेरठ और अलीगढ़ जीत ली थीं। साथ ही 29 नगर पालिका अध्यक्ष और 45 नगर पंचायत अध्यक्ष पदों पर बसपा के उम्मीदवार जीत गए थे। बसपा चाह रही है कि इस बार यह ग्राफ बढ़ाया जाए। हालांकि इसे बचाकर रखना ही बसपा के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है।

मुस्लिम नेताओं को जोड़ने की मशक्कत
मायावती ने हाल ही में मुस्लिम समाज के कई नेताओं को बसपा से जोड़ा है। इनमें पश्चिमी उप्र से इमरान मसूद को समाजवादी पार्टी से बसपा में शामिल कराया गया है। साथ ही उन्हें पश्चिमी उप्र में मुस्लिमों को जोड़ने की जिम्मेदारी दी गई है। एआईएमआईएम से भी कुछ लोगों को जोड़ा गया है। माफिया अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता भी बसपा में हैं। हालांकि वह उमेशपाल हत्याकांड में नामजद होने के कारण फरार हैं। इन्हें प्रयागराज से बसपा ने महापौर पद का उम्मीदवार घोषित किया था। अब परिस्थितियां सही न होने के कारण माना जा रहा है कि उन्हें चुनाव नहीं लड़ाया जाएगा पर बसपा अभी खुलकर यह घोषणा ही नहीं कर पा रही है। कारण यही है कि मुस्लिमों में कहीं इसका गलत संदेश न चला जाए।

फिर दांव खेल सकती बसपा
बसपा विभिन्न सीटों पर फिर से मुस्लिम कार्ड खेल सकती है। जिन सीटों पर दलित और मुस्लिम ज्यादा हैं वहां इसकी मशक्कत की जा रही है। पिछले चुनाव में महापौर की दो सीटें बसपा जीती तो दो सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। चूंकि अलीगढ़ में तो उनका मुस्लिम प्रत्याशी उतारने का फार्मूला सफल भी रहा था। इसी तरह से आगरा और झांसी में बसपा ने तगड़ा मुकाबला किया था। अब इसी तरह से नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत की विभिन्न सीटों पर बसपा यही कार्ड खेलने की तैयारी कर रही है।