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जाने क्यों कादरचौक ब्लॉक के गांव सकरी कासिमपुर में 50 वर्षों से नही जली होली

बदायूं

कादरचौक ब्लॉक के गांव सकरी कासिमपुर की आबादी लगभग सात हजार है। होली की शुरुआत जहां हर जगह होलिका दहन से होती है, वहीं यहां पिछले करीब 50 वर्षों से यह परंपरा बंद है।

बदायूं के कादरचौक के गांव सकरी कासिमपुर में दशकों से होलिका दहन की प्रथा बंद है। गांव के बुजुर्गों के अनुसार करीब 50 साल से उन्होंने गांव में होलिका दहन होते नहीं देखा। लोग अपने घरों में होली जलाकर उसमें आखत डालते हैं, लेकिन रंग जमकर खेलते हैं।

कादरचौक ब्लॉक के गांव सकरी कासिमपुर की आबादी लगभग सात हजार है। होली की शुरुआत जहां हर जगह होलिका दहन से होती है, वहीं यहां पिछले करीब 50 वर्षों से यह परंपरा बंद है। गांव के लोग बताते हैं कि कई वर्षों पहले गांव की एक बुजुर्ग महिला, जिन्हें लोग अइया नाम से पुकारते थे, उन्हीं की जगह में होली रखी जाती थी। एक बार उन्होंने एक समाज से जुड़े लोगों को होली पर आखत नहीं डालने दी। इस बात पर उस समय झगड़ा भी हो गया था। 

अइया ने नहीं रखने दी होली 

इसके बाद अइया ने अपनी जगह में होली नहीं रखने दी। कुछ साल तक जब होली नहीं जली और किसी ने इसकी पहल भी नहीं की तो धीरे धीरे यह प्रथा बंद होती चली गई। बुजुर्गों ने भी कोई समझौता करने का प्रयास नहीं किया। अब तो होलिका दहन वाले स्थान पर मकान तक बन गए हैं। हालांकि, अब गांव के लोग चाहते हैं कि इस परंपरा को जीवित किया जाए।

गांव के लाहौरी प्रसाद ने कहा कि गांव में हमने कभी होलिका दहन नहीं देखा है। इसका किसी ने समाधान भी नहीं निकाला। परपंराओं को तो कायम रहना चाहिए, इसके लिए संयुक्त प्रयास होने चाहिए। बेचेलाल ने कहा कि नई पीढ़ी को इस पर ध्यान देना चाहिए। होली दहन न होना हमारे गांव के लिए अच्छा नहीं है। इससे न सिर्फ त्योहार का आनंद कम हो जाता है, बल्कि एक परंपरा भी टूटी है।

‘होलिका दहन शुरू कराना चाहिए’

लालसिंह ने कहा कि हिंदू मान्यता के त्योहार को पौराणिक परंपरा से न मनाना हम लोगों के लिए सही नहीं है। संभ्रांत नागरिकों को पुन: होलिका दहन शुरू कराना चाहिए। वेदराम ने बताया कि उस समय लोग अशिक्षित थे, दो जातियों के टकराव से त्योहार बंद करा दिया। उस समय ही लोग बैठकर ही बात करते तो समस्या का समाधान निकल जाता। मामूल बात पर परंपराओं को तोड़ना नहीं चाहिए।

पूर्व प्रधान बदन सिंह ने कहा कि गांव में होली के समय विवाद होने के कारण जब से यह परंपरा बंद हुई तब से इसे शुरू कराने का किसी ने कोई प्रयास नहीं किया। अब तो होली वाली जगह पर मकान बन गये हैं। होली रखने का स्थान भी नहीं बचा है।

प्रधान कुंवर पाल ने बताया कि पूरे गांव में सहमति बनाने का प्रयास नहीं हुआ। अब तो वर्षों से यह नहीं हो रहा है। नई परंपरा के लिये अनुमति लेनी पड़ेगी वहीं स्थान चयन भी सामूहिक सहमति से करना पड़ेगा। हम प्रयास करेंगे कि अगले वर्ष तक इसमें सफलता मिल जाए और गांव में होलिका दहन शुरू हो जाए।