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आंग सान सू की पर है भष्टाचार के कई गंभीर आरोप, कई सालों से जेल में काट रही है सजा

वह महिला नेता जो, म्यांमार के लोगों के लिए काफी समय से संघर्ष कर रही हैं। हालांकि यह कई सालों से जेल में सजा काट रही हैं। बता दें कि म्यांमार के जुंटा सैन्य शासन ने महिला नेता को आजीवन जेल में रहने की व्यवस्था कर ली है। क्योंकि उन पर भष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे हैं। लेकिन आज से 32 साल पहले महिला नेता के संघर्ष के लिए उन्हें शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। हम बात कर रहे हैं म्यांमार की महिला नेता आंग सान सू की के बारे में। म्यांमार के लोकतंत्र के लिए वह करीब 19 सालों से संघर्ष कर रही हैं। आज यानी की 19 जून को वह अपना 78वां जन्मदिन मनाया जा रही हैं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर आंग सान सू की के जीवन के कुछ रोचक बातों के बारे में…

जन्म और शिक्षा

ब्रिटिश बर्मा के रंगून में 19 जून 1945 को आंग सान सू की का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम आंग सान था। उनके पिता ने आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में सान सी की के पिता ने द्वितीय विश्व युद्ध में जापानियों से हाथ मिलाया था। लेकिन साल 1947 में बर्मा की आजादी की बात करते हुए उनकी हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद आंग सान सू को उनकी मां द्वारा पाला गया था।

 

साल 1960 में सू की मां भारत और नेपाल में बर्मा की राजदूत थीं। इस दौरान साल 1964 में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड से दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थास्त्र की पढ़ाई पूरी की थी। फिर आंग सान सू ने न्यूयॉर्क में रहकर संयुक्त राष्ट्र में तीन साल तक काम भी किया। जिसके बाद उन्होंने साल 1972 में तिब्बती संस्कृति के विद्वान और भूटान में रहने वाले डॉ माइकल एरिस से शादी कर ली थी।

 

देश को समर्पित किया जीवन

साल 1985 में आंग सान सू ने लंदन यूनिवर्सिट के स्कूल ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में पीएचडी पूरी की। जिसके बाद वह अपनी बीमार मां की सेवा करने के लिए बर्मा वापस लौट आईं। इसके बाद उन्होंने अपनी काबिलियत के चलते लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथों में ले लिया। जिसके कारण उन पर विदेश जाने पर पाबंदी लगा दी गई। बता दें कि इस पाबंदी के चलते वह अपने बीमार पति से उनके आखिरी समय में भी नहीं मिल पाई थीं।

 

पुरस्कार और नजरबंदी

साल 1991 में लोकतंत्र के संघर्ष के लिए आंग सान सू की को शांति का नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। हालांकि उस दौरान वह नजरबंद थी। लेकिन उनकी रिहाई को लेकर उन्हें दुनियाभर से समर्थन प्राप्त हुआ। साल 2008 में वह अमेरिका का कांग्रेशनल गोल्ड मेडल पाने वाली पहली व्यक्ति बनीं। लेकिन इस दौरान भी वह जेल में थी। साथ ही कई देशों का म्यांमार पर काफी दबाव था।

 

कब मिली रिहाई

म्यांमार में आम चुनाव के छह दिन बाद साल 2010 में आंग सान सू की को नजरबंदी से रिहा कर दिया गया था। इसके बाद साल 1991 में यूरोपियन दौरे के दौरान नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साल 2010 में आंग सान सू की ने म्यांमार में चुनाव जीता और वह विरोधी दल की नेता बन गईं। साल 2015 में उन्होंने आम चुनाव में भी उनकी पार्टी ने भारी मतों से जीत हासिल की। हालांकि उनको संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति बनने से रोक दिया गया था। लेकिन फिर भी आंग सान सू की पार्टी ने सरकार बनाई और वह विदेश मंत्री भी रहीं।

 

आंग सान सू की ने सरकार में आने के बाद राखाइन राज्य के लिए एक आयोग बनाया। रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यों पर अत्याचार के लिए राखाइन राज्य बदनाम इलाका था। हालांकि आंग सान सू की पीर्टी शान और काचिन राज्य में विवाद को सुलझाने में नाकामबाय रही। जिसके चलते हजारों शरणार्थी चीन चले गए। वहीं साल 2017 में सरकारी बलों के रोहिंग्या अत्याचारों को नरसंहार का दर्जा मिला था। लेकिन सू की ने राज्य में नरसंहार की बात को खारिज कर दिया था। वहीं सू की ने रोहिंग्याओं को देश की नागरिकता देने से इंकार कर दिया। लेकिन उन्होंने परिचय पत्र जारी करने पर सहमति जरूर दी।

 

जिसके बाद आंग सान सू की के खिलाफ दुनियाभर में विरोध शुरू हो गया। इस दौरान उनको दिए गए कुछ सम्मानों को भी वापस कर लिया गय। वहीं उनसे नोबेल पुरस्कार वापस लेने की मांग होने लगी। साल 2020 में सू की के पार्टी ने चुनाव में वापसी की। लेकिन साल 2021 में सेना ने चुनाव को फर्जी घोषित करते हुए आंग सान सू की को फिर से गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान उन पर भ्रष्टाचार के केस लगाए गए। दिसंबर में सू की को 4 साल की सजा सुनाई गई। अलग-अलग मामलों में सू की को 32 साल की सजा सुनाई जा चुकी है।