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क्या सुप्रीम कोर्ट की बनाई समिति क्रिकेट को फायदे की बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचा रही है?

अभय शर्मा

टीवी शो ‘कॉफी विद करन’ में महिलाओं को लेकर विवादास्पद टिप्पणी के कारण हार्दिक पांड्या और केएल राहुल को भारतीय क्रिकेट टीम से निलंबित किया जा चुका है. बीसीसीआई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित प्रशासकों की दो सदस्यीय समिति (सीओए) की ओर से कहा गया है कि इस मामले की जांच पूरी होने तक दोनों खिलाड़ी निलंबित रहेंगे. लेकिन इस जांच को लेकर सीओए के अध्यक्ष विनोद राय और इसकी सदस्य डायना एडुल्जी में भारी मतभेद हैं. इसके चलते भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे और इन दोनों खिलाड़ियों और भारत की विश्व कप की तैयारियों पर भी बुरा असर पड़ सकता है.

विनोद राय इस मामले की जांच जल्द से जल्द और बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी से करवाना चाहते हैं. जबकि एडुल्जी का कहना है कि इससे गलत संदेश जाएगा क्योंकि जौहरी पर कुछ रोज पहले ही यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे. एडुल्जी ने बीसीसीआई के अन्य अधिकारियों से जांच कराने की सलाह दी है. एडुल्जी की इस सलाह पर राय का कहना है कि ऐसा करना बीसीसीआई के नए संविधान के खिलाफ है. संविधान के अनुच्छेद 41 में लिखा है कि ऐसे किसी भी मामले को केवल सीईओ को ही भेजा जाएगा.

इसके बाद एक समाचार पत्र से बातचीत में विनोद राय का कहना था, ‘कानून के जानकारों की सलाह है कि इस जांच के लिए अलग से एक एड-हॉक लोकपाल नियुक्त कर दिया जाए, लेकिन वे (एडुल्जी) इस पर भी तैयार नहीं हैं. वे बीसीसीआई के सचिव अमिताभ चौधरी के साथ मिलकर खुद इसकी जांच करना चाहती हैं, जबकि सीओए को इसकी अनुमति नहीं है.’ राय आगे कहते हैं, ‘एडुल्जी ऐसा करना चाहती हैं तो करें, लेकिन फिर मैं खुद को इस मामले से अलग कर लूंगा. समझ नहीं आता कि सीओए ही जांच करेगा तो रिपोर्ट किसे सौंपी जायेगी.’

विनोद राय के इस बयान के बाद डायना एडुल्जी ने उन पर भी कई गंभीर आरोप लगा दिए हैं. एडुल्जी ने उन्हें पक्षपाती बताते हुए कहा है, ‘सीओए को केवल कुछ मामलों में ही संविधान की याद क्यों आती है. सारे मामलों में ही संविधान के तहत काम करना चाहिए था.’ विनोद राय को भेजे अपने पत्र में उन्होंने यह भी लिखा है कि ‘आपने इससे पहले कई मामलों में संविधान के विपरीत काम किया है. आपने महिला टीम के कोच के चयन में भी संविधान के खिलाफ फैसला लिया था…सीओए एड-हॉक लोकपाल नियुक्त नहीं कर सकता है, यह काम कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए.’ सूत्रों की मानें तो अब 17 जनवरी को बीसीसीआई से संबंधित एक सुनवाई के दौरान यह मामला कोर्ट के सामने रखा जा सकता है.

इससे पहले भी कई बार तकरार हो चुकी है

एडुल्जी और विनोद राय के बीच यह तकरार पहली बार नहीं हुई है और न ही इन्होने पहली बार एक-दूसरे के खिलाफ खुलेआम बयान दिए हैं. बीते अक्टूबर में राहुल जौहरी पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद विनोद राय ने तीन सदस्यीय समिति गठित कर इसकी जांच करवाई थी, समिति ने जौहरी को क्लीन चिट दे दी थी. लेकिन इसके बाद भी डायना एडुल्जी ने जौहरी के इस्तीफे की मांग की थी. उनका कहना था कि जांच समिति ने 2-1 से फैसला दिया है. इसलिए खेल संस्था की प्रतिष्ठा की खातिर जौहरी को इस्तीफा दे देना चाहिए. एडुल्जी ने राय द्वारा जांच समिति गठित करने को भी एकतरफा और संविधान के विरुद्ध बताया था.

इसके बाद जब भारतीय महिला टीम का कोच चुनने के लिए कपिल देव के नेतृत्व में एड-हॉक समिति बनाई गई थी तब भी एडुल्जी ने विनोद राय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उनका कहना था, ‘एड-हॉक समिति बनाना गलत है क्योंकि कोच के चयन के लिए क्रिकेट सलाहकार समिति बनी हुई है जिसमें सचिन, लक्ष्मण और गांगुली शामिल हैं.’ एडुल्जी का यह भी कहना था कि सीओए को किसी भी मामले में एड-हॉक समिति बनाने की अनुमति नहीं है और इस बारे में उनसे कोई राय भी नहीं ली गई, इसलिए कोच चयन की पूरी प्रक्रिया ही संविधान के खिलाफ है. उस वक्त एडुल्जी ने यह दावा भी किया था कि एड-हॉक समिति के गठन का ड्रामा राहुल जौहरी (यौन उत्पीड़न) के मुद्दे को दबाने के लिए रचा गया है.

खेल पत्रकार आशीष मगोत्रा अपनी एक टिप्पणी में लिखते हैं कि इस समय बीसीसीआई में जो हो रहा है उसे देखते हुए लगता है कि ‘कोर्ट के दखल से पहले वाली बीसीसीआई’ ज्यादा सही थी. अब सीओए के सदस्य सार्वजनिक रूप से झगड़ रहे हैं, उस पर पक्षपाती होने के आरोप लग रहे हैं, उनके आपसी मेल लीक हो रहे हैं, इससे फायदा होने के बजाय क्रिकेट का नुकसान ज्यादा हो रहा है. कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि ये दोनों अब अपने मकसद से भटक चुके हैं. बीसीसीआई में इनकी नियुक्ति नए संविधान को लागू करवाकर बोर्ड का चुनाव करवाने के लिए की गई थी. अब जब संविधान लागू हो चुका है तो इन्हें चुनाव करवाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहिए. चुनाव कैसे हो इन्हें उस तरफ ध्यान देना चाहिए. लेकिन ये दोनों ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे इनकी बीसीसीआई से हटने की इच्छा ही न हो.