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क्या भाजपा और संघ योगी आदित्यनाथ को नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर देख रहे हैं?

हिमांशु शेखर

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अब तक के कार्यकाल में कुछ बातों के लिए उनकी तारीफ होती है तो कुछ बातों के लिए उन्हें अपने ही राज्य में आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. जिस वक्त वे मुख्यमंत्री बने थे, उस वक्त यह कहा जा रहा था कि जिस तरह के जनाधार वाले नेता वे हैं, उसे देखते हुए उनमें असीमित राजनीतिक संभावनाएं हैं. लेकिन बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अब तक के कार्यकाल में उनके विरोधी उन्हें विकास से जुड़े मूल मुद्दों के उलट आक्रामक हिंदुत्व, राम मंदिर, फर्जी मुठभेड़ और जातिवाद के प्रति अधिक प्रतिबद्ध मुख्यमंत्री बताते हैं.

जिस गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ लंबे समय तक सांसद थे, वहीं के एक अस्पताल में पिछले साल 60 से ज्यादा बच्चों की मौत और उसके बाद जिस तरह से इस मामले को सरकार ने देखा, उससे भी उनकी काफी आलोचनाएं हुईं. कई बार योगी आदित्यनाथ अपने विवादित बयानों की वजह से भी चर्चा में रहते हैं. भगवान हनुमान को दलित और वेदों के ज्यादातर मंत्र दलित संतों द्वारा लिखे बताने जैसे उनके हालिया बयानों ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं.

इन वजहों से कई राजनीतिक जानकारों को यह लगता है कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक तौर पर जितनी मजबूत स्थिति में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद थे, उतनी मजबूत हालत में वे आज नहीं हैं. उनकी सरकार के अब तक के कामकाज से भी प्रदेश का हर वर्ग बहुत संतुष्ट नहीं है. भारतीय जनता पार्टी के विधायकों को भी मुख्यमंत्री से बहुत शिकायतें हैं. ये लोग अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं कि मुख्यमंत्री उनकी बातें नहीं सुनते और इससे जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी बढ़ रही है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच संभावित गठबंधन से योगी आदित्यनाथ और भाजपा की मुश्किलें किस हद तक बढ़ सकती हैं इसका उदाहरण इसी साल योगी आदित्यनाथ की संसदीय सीट रही गोरखपुर में हुए उपचुनाव में मिला. यहां भाजपा उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा.

लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर होने के बावजूद दूसरे प्रदेशों में उनकी लोकप्रियता बढ़ती हुई दिख रही है. मुख्यमंत्री बनने से पहले भी योगी आदित्यनाथ की पहचान कट्टर हिंदुत्व वाले नेता की रही है. उत्तर प्रदेश के बाहर भी दूसरे राज्यों में लोग उन्हें जानते थे. उत्तर प्रदेश से सटे बिहार में तो वे खासे लोकप्रिय उस वक्त भी थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी यह छवि और मजबूती से दूसरे राज्यों में भी स्थापित हुई.

इसके दो संकेत खुद भाजपा के अंदर से मिलते हैं. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिन राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हुए, उन सभी राज्यों से भाजपा इकाइयों ने योगी आदित्यनाथ की सभाओं की मांग की. वह चाहे हिमाचल प्रदेश हो या गुजरात. यहां तक की पूर्वोत्तर के त्रिपुरा में भी योगी आदित्यनाथ की सभाएं हुईं और इन सभाओं में काफी भीड़ उमड़ी. हाल में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी योगी आदित्यनाथ की बड़ी चुनावी सभाएं हुईं. छत्तीसगढ़ में तो मुख्यमंत्री रमन सिंह जिस दिन नामांकन दाखिल करने जा रहे थे, उस दिन उन्होंने विशेष आग्रह करके योगी आदित्यनाथ को साथ रहने के लिए बुलाया था. उस मौके पर लंबे समय से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के तौर पर काम कर रहे रमन सिंह ने योगी आदित्यनाथ के पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया. यह अलग बात है कि राज्य में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया.

राजस्थान में भी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अगुवाई में चुनाव लड़ रही भाजपा ने योगी आदित्यनाथ की सभाएं कराईं. दक्षिण भारत के तेलंगाना में भाजपा को बहुत उम्मीदें नहीं थीं. फिर भी यहां योगी आदित्यनाथ की चुनावी सभाएं आयोजित कराई गईं. इन सभाओं में बड़ी संख्या में लोग भी आए. तेलंगाना में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का अंदाज इस बात से भी लगाया जाता है कि जिस स्वामी परिपूर्णानंद को भाजपा हाल में पार्टी में लेकर आई है, उन्हें प्रदेश में यह करके स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि ये दक्षिण भारत के योगी आदित्यनाथ हैं.

भाजपा की विभिन्न प्रदेश इकाइयों द्वारा नेताओं की सभाओं की मांग की जानकारी रखने वाले पार्टी के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी बताते हैं, ‘हर राज्य से योगी आदित्यनाथ की अधिक से अधिक सभाओं की मांग आती है. चुनाव के दौरान राष्ट्रीय कार्यालय को चुनावी सभाओं के जो अनुरोध प्रदेशों से मिल रहे हैं, उनमें सबसे अधिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं की मांग होती है. इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी सभाओं की मांग प्रदेश इकाइयों द्वारा की जा रही है. तीसरे नंबर पर योगी आदित्यनाथ हैं. पूरे देश में पार्टी के कई मुख्यमंत्री हैं लेकिन अगर किसी मुख्यमंत्री की सभाओं की मांग सबसे अधिक होती है तो वे योगी आदित्यनाथ हैं. यह कुछ वैसा ही है जैसे जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उस वक्त होता था.’

इन पदाधिकारी के मुताबिक योगी आदित्यनाथ की एक राष्ट्रीय पहचान है. वे कहते हैं कि हर प्रदेश में योगी की लोकप्रियता को देखते हुए पार्टी में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो नरेंद्र मोदी के बाद पार्टी के मुख्य चेहरे के तौर पर जिन नेताओं को देखता है, उनमें योगी आदित्यनाथ प्रमुख हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या नरेंद्र मोदी के प्रतिस्पर्धी तो नहीं लेकिन, उत्तराधिकारी के तौर पर पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ योगी आदित्यनाथ को देख रहे हैं, वे कहते हैं, ‘अभी से ऐसा कहना तो जल्दबाजी होगी. लेकिन इतना मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं कि जो लोग भविष्य की भाजपा का नेतृत्व करते दिखेंगे, उसमें अगर कोई बड़ी दिक्कत योगी आदित्यनाथ के साथ नहीं आई तो वे भी रहेंगे.’