अब तो काम स्थल पर ही एक तरह के समझौते के तहत लिव इन रिलेशनशिप बढ़ती जा रही है.प्रतिस्पर्धा, कार्य का अत्यधिक दवाब, अधिक से अधिक प्राप्त करने की लालसा में जिन्दगी के मायने बदलते जा रहे हैं. अब एक झटके में अकेले रहने का फैसला हो जाता है. कार्य के बोझ वप्रतिस्पर्धा का दबाव इस कदर हाबी होने लगा है कि भागमभाग में दो मीठे बोल को भी सप्ताहांत तक के लिए तरस जाते हैं.
इसे तलाक के संदर्भ में भी देखा जाना आवश्यक हो जाता है. प्रगति के युग में न जाने कौन-सी विकृति मनुष्य के भीतर घुसती बढ़ती चली जा रही है, जिससे वह सूना-खोखला-एकाकी-डरावना वखोया-लुटा सा बन रहा है. न किसी के ज़िंदगी में आनन्द, न उल्लास, न संतोष, न शांति. यह विचारना होगा स्वल्प साधनों में जब करोड़ों सालों से शांति व संतोषपूर्वक किया जाता रहा है, तो इतने प्रचुर साधनों के रहते, इतना उद्वेग क्यों? इतने असंतोष व नैराश्य का कारण क्या है?
इससे बचने के लिए क्या कर सकती हैं आप?
शोधकर्ता जॉन कैसिओपो ने इसके लिए एक
काम योजना बनाई है, जिसका नाम है ‘ईज’
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यहां E यानी एक्सटेंड- सुरक्षित रूप से आप अपना विस्तार करें. अपने प्यार को पाने के लिए या फिर से नयी आरंभ करने के लिए एक साथ सारी ऊर्जा न लगाएं. धीरे-धीरे इसकी आरंभ करें. छोटी वसकारात्मक सामाजिक बातों से आरंभ करें.
A यानी एक्शन- एक काम योजना बनाएं. सब आपको पसंद करें, ऐसा आवश्यक नहीं, इसलिए इसे समझें व स्वीकार करें व यह आपके लिए महत्वपूर्ण भी नहीं है. लोगों से बात करें.
S यानी सीक- ऐसे लोगों से घुलें, जिनके विचार, रुचियां व गतिविधियां आपसे मिलती हों. इससे एक अच्छा तालमेल में आपके बीच बन सकता है.
E यानी एक्सपेक्ट- हर कोई परफेक्ट नहीं हो सकता. चाहे वह आपका सबसे अच्छा दोस्त हो या आपका पार्टनर. अगर कोई आपका दिल दुखाता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप अपने रिश्तों के लिए सारे दरवाजे बंद कर दें.