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राहुल जी! न तो आप ट्रंप हैं और न ही ये देश अमेरिका है, बंद कीजिए सफेद झूठ की राजनीति

अजय सिंह

गैसलाइटिंग छल-कपट का ऐसा तरीका है, जिसमें राजनेता धोखेबाजी से आम लोगों और खास-तौर से वोटरों की सोच-समझ पर असर डालने की कोशिश करते हैं. खुद को खुदा समझने वाले दुनिया के तमाम तानाशाहों के बारे में कहा जाता है, उन्होंने छल-प्रपंच की इस सियासी चाल में महारत हासिल कर ली थी.

अमेरिकी लेखिका अमांडा कारपेंटर ने अपनी हालिया किताब ‘गैसलाइटिंग अमेरिका’ में लिखा है कि किस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गैसलाइटिंग से अमरीकी जनता को अपने प्रपंच के जाल में फंसाया. राहुल गांधी के हालिया बर्ताव को देखें, तो, ऐसा लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष भी इस सियासी तकनीक में हुनरमंद होने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

इसकी मिसाल शनिवार को बी एस येदियुरप्पा के कर्नाटक के सीएम पद से इस्तीफे के बाद राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में देखने को मिली. येदियुरप्पा कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सबसे बड़ी पार्टी की अगुवाई कर रहे थे. उनकी पार्टी को बहुमत से सिर्फ सात सीटें कम मिली थीं. येदियुरप्पा का कर्नाटक में सरकार बनाने की कोशिश करना पूरी तरह से संवैधानिक था. हां, जो गड़बड़ थी वो उनके बहुमत जुटाने के तरीके में थी, जिसमें वो बुरी तरह नाकाम रहे.

राहुल गांधी के पीएम मोदी और शाह पर आरोप सफेद झूठ 

इसमें कुछ भी गलत नहीं था कि राहुल गांधी, कर्नाटक में सरकार बनाने की नाकाम कोशिश को लेकर बीजेपी पर हमले कर रहे थे. लेकिन, उन्होंने ऐसा करने के चक्कर में हद पार कर दी. राहुल ने कहा कि, ‘प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार हैं’. यही नहीं, राहुल गांधी ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को कत्ल का आरोपी बताया. एक सार्वजनिक मंच से कही गई राहुल गांधी की ये दोनों ही बातें सफेद झूठ हैं. शायद राहुल गांधी को ऐसा लगा कि उन्हें कुछ भी कह कर बच निकलने का हक हासिल है.

Congress launches "Save the Constitution" campaign

 

ये सफेद झूठ भारत की सबसे पुरानी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने बोला था. उनका ये दावा कि वो सच बोल रहे हैं, बिल्कुल झूठ है. ‘प्रधानमंत्री भ्रष्ट हैं’, ये आरोप ऐसा है जो यूं ही नहीं लगा दिया जा सकता. कर्नाटक में बहुमत जुटाने के लिए भले ही बीजेपी ने तमाम हथकंडे अपनाए हों, मगर ये सियासी हुनर भी बीजेपी ने कांग्रेस से ही सीखा है.

क्या हम ये मान सकते हैं कि कांग्रेस और जेडी (एस) ने बीजेपी की चालों का मुकाबला सिर्फ नैतिकता वाली राजनीति से किया? ये मानना कमोबेश नामुमकिन है कि जब अमित शाह कर्नाटक के विधायकों को 100-100 करोड़ देने का वादा कर रहे थे, तो राहुल गांधी उन्हें सिर्फ नैतिकता का सबक याद करा रहे थे.ये बात तो काबिल-ए-यकीन है ही नहीं कि राहुल गांधी के नैतिकता के भाषण में इतनी ताकत थी कि उसने कर्नाटक के विधायकों पर जादुई असर दिखाया.

हां, ये दावे राहुल गांधी को झूठ बोलने में मदद करते हैं. उन्हें ये दिखावा करने में आसानी हो जाती है कि वो अपनी ही पार्टी में डीके शिवकुमार नाम के नेता के होने से अनजान हैं. कांग्रेस विधायक डीके शिवकुमार वो भलेमानस हैं, जो विधायको को अपनी पार्टी में बने रहने के लिए राजी कर लेते हैं, भले ही उन्हें कोई भी प्रलोभन दिया जाए. इसके लिए वो विधायकों को सिर्फ अपने ईगलटन रिजॉर्ट में कभी भी आकर ठहरने का मौका देते हैं. राहुल की किताब में अगर ‘मोदी भ्रष्टाचार हैं’, तो डीके शिवकुमार यकीनन देवदूत होंगे.

‘कैश फॉर वोट’ का दौर भूल गए हैं राहुल गांधी

rahul gandhi manmohan singh

ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने ‘कैश फॉर वोट’ के बारे में भी नहीं सुना होगा. जिसमें सांसदों को उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खरीदा था. इतना ही नहींमनमोहन सिंह को उस वक्त की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का पूरा समर्थन हासिल था. वो यूपीए-1 का दौर था, जब शायद राहुल गांधी उनींदे होकर राजनीति कर रहे थे.

राहुल गांधी की याददाश्त को जगाने का कोई फायदा नहीं. उन्हें उनकी अपनी पार्टी की उस शर्मनाक करतूत के बारे में बताने का कोई फायदा नहीं कि किस तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देने के मामले में खुद प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव शामिल थे. इस वक्त इस बात का जिक्र करने का भी कोई फायदा नहीं कि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी किस तरह यशपाल कपूर जैसे लोगों से घिरी रहा करती थीं. इस सब का कोई फायदा नहीं क्योंकि राहुल गांधी के हिसाब से तो, ‘नरेंद्र मोदी ही भ्रष्ट हैं’.

इसी तरह राहुल गांदी का अमित शाह को ‘हत्या का आरोपी’ कहना भी गलत है. ये लोगों की सोच पर मनोवैज्ञानिक तरीके से असर डालने की कोशिश है. अमित शाह को गुजरात पुलिस की एक मुठभेड़ की एक घटना में उस वक्त आरोपी बनाया गया था, जब वो गुजरात के गृह मंत्री थे. ऐसा उस वक्त हुआ था, जब राहुल गांधी की पार्टी दिल्ली में सरकार चला रही थी और सीबीआई का इस्तेमाल उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए हो रहा था. अमित शाह उस वक्त मोदी को कुचलने के कांग्रेस के अतिउत्साह के शिकार हुए थे.

आक्रामक होकर अपनी हार छुपाने की कोशिश में राहुल

मुंबई की एक स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने अमित शाह को सारे आरोपों से बरी कर दिया था. इस वक्त अमित शाह देश के किसी भी पुलिस थाने में किसी भी आरोप में दर्ज मुल्जिम नहीं हैं, सिवा राहुल गांधी की कल्पना के. अमित शाह को ‘हत्या का आरोपी’ कहकर राहुल गांधी ने मानहानि की है. लेकिन राहुल गांधी को इसकी फिक्र नहीं है, क्योंकि अगर अमित शाह, राहुल गांधी पर मानहानि का केस करते हैं, तो राहुल इसे भी सियासी तौर पर भुनाने की कोशिश करेंगे. जब राहुल गांधी ने महात्मा गांधी की हत्या में आरएसएस का हाथ बताया था, तब भी तो ठीक यही किया गया था.

शायद राहुल गांधी को ये समझाया गया है कि आक्रामक तरीके से शेखी बघारना एक ऐसी शानदार सियासी रणनीति है, जिससे वो कर्नाटक में अपनी पार्टी की जबरदस्त पराजय को छुपा लेंगे. ये कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उनकी पहली बड़ी हार है. ऐसा लगता है कि राहुल गांधी तथ्यों से ज्यादा शब्दों की बाजीगरी पर भरोसा कर रहे हैं.

जब 15 मई को कर्नाटक के नतीजे आए थे और उनकी पार्टी के हाथ से आखिरी बड़े राज्य की सत्ता निकल गई थी, तब से राहुल गांधी मीडिया से ओझल थे. लेकिन जैसे ही येदियुरप्पा ने इस्तीफा दिया, तो राहुल गांधी इसे जीत ठहराते हुए इसका श्रेय लेने फौरन सामने आ गए. कर्नाटक में जिसे वो जीत बता रहे हैं, वो उतनी ही झूठ है, जितने राहुल गांधी के मोदी और अमित शाह पर लगाए गए आरोप हैं.

आप देखिए कि किस तरह से कर्नाटक में कांग्रेस ने अपनी सियासी जमीन एक छोटे से क्षेत्रीय दल जेडी (एस) के हवाले कर दी, जबकि विधानसभा में जेडी (एस) की ताकत कांग्रेस की आधी है. जिस राज्य को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है, वहां पार्टी, जेडी (एस) जैसे छोटे क्षेत्रीय दल की पिछलग्गू बन कर काम करेगी. गठबंधन सरकारों को लेकर कांग्रेस का इतिहास बताता है कि पार्टी ने यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल में अपनी सियासी जमीन क्षेत्रीय दलों के हाथों पूरी तरह गंवा दी.

राहुल के लिए ये बड़ी चिंता की बात होनी चाहिए कि गठबंधन की राजनीति का भविष्य क्या है और इससे उनकी पार्टी की हैसियत क्या रह जाएगी? मोदी और अमित शाह के बारे में बढ़-चढ़कर झूठ बोलकर वो जनता की राय नहीं बदल पाएंगे. जैसा कि अमांडा कारपेंटर ने अपनी किताब में लिखा है कि डोनल्ड ट्रंप अमेरिका में ऐसा करने में कामयाब हुए. लेकिन राहुल गांधी डोनल्ड ट्रंप नहीं हैं. न तो मोदी सियासत में नौसिखिए हैं और न ही भारत, अमेरिका है.