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‘राजीव कुमार ऐसे कौन से महापुरुष हैं, जिनकी खातिर ममता-जैसी ‘अहंकारी’ नेता धरना देने बैठ जाए?’

डॉ. वेद प्रताप वैदिक

सर्वोच्च न्यायालय ने कोलकाता में चल रहे बड़े नाटक का पटाक्षेप कर दिया है। उसने केंद्र और प. बंगाल सरकार दोनों को ठंडा कर दिया है। उसने फैसला दिया है कि कलकत्ता के पुलिस आयुक्त को गिरफ्तार न किया जाए और वह सीबीआई के सामने पेश हो। अब भी यदि ममता बनर्जी अपना धरना जारी रखेंगी तो वे अपना मजाक खुद बनाएंगी।

इससे बड़ा राजनीतिक मजाक क्या हो सकता है कि कोई मुख्यमंत्री अपने एक पुलिस अफसर की खातिर धरना लगाकर बैठ जाए ? और ऐसे धरने को लगभग सभी प्रमुख विरोधी दल (मार्क्सवादी पार्टी के अलावा) अपना समर्थन दे दें। वह कांग्रेस भी दे दे, जिसकी प. बंगाल शाखा उसका तीखा विरोध कर रही है। पुलिस आयुक्त राजीव कुमार ऐसे कौन से महापुरुष हैं, जिनकी खातिर ममता-जैसी अहंकारी नेता धरना देने बैठ जाए ? इस अफसर के बारे में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को संदेह है कि इसने शारदा चिट फंड मामले में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को बचाने की कोशिश की है और उनके विरुद्ध मिले प्रमाणों को वह नष्ट करने पर आमादा है।

शारदा चिट फंड में 40,000 करोड़ रु. का घपला हुआ है। यह पैसा 17 लाख लोगों का है। पांच साल पहले जब इस फंड की धोखाधड़ी उजागर हुई तो मालूम पड़ा था कि इस चिट फंड को चलाने में ममता की तृणमूल कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं का हाथ है। वे सांसद भी हैं। कई फिल्मी सितारों, पत्रकारों और अफसरों ने भी गरीबों की इस गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ करने में ज़रा भी झिझक नहीं दिखाई है। दो-तीन तृणमूल नेता अपनी खाल बचाने के लिए भाजपा की शरण में भी चले गए हैं। दो साल पहले से सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशन में सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है लेकिन कई नोटिसों के बावजूद कलकत्ता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार जांच से बचने के लिए बहाने बनाते रहे।

अब जबकि सीबीआई के अफसर उनके घर पहुंचे तो ममता सरकार की पुलिस ने उन्हें पकड़कर थाने में बिठा लिया। वे खुद धरने पर बैठ गईं। संसद को ठप्प कर दिया। सारे विपक्ष ने मिलकर इस मामले का पूर्ण राजनीतिकरण कर दिया। इसमें शक नहीं कि अब इस चुनाव की वेला में मोदी सरकार पर एक जुनून सवार हो गया है। वह लगभग सभी विरोधी नेताओं और पूर्व मुख्यमंत्रियों को किसी न किसी मामले में फंसाती हुई लग रही है। यही काम वह चार साल पहले करती तो उसकी मन्शा पर कोई उंगली नहीं उठाता। पिछले साढ़े चार साल उसने भाषणबाजी और नौटंकियों में गुजार दिए। अब उसके सही काम पर भी उसको इसका श्रेय मिलना मुश्किल है। बल्कि डर यह है कि यदि अब उसने भूपेन्द्र हुड्डा या मायावती या अखिलेश या शीला दीक्षित या यहां तक कि राॅबर्ट वाड्रा को भी अंदर करवा दिया तो उसका उल्टा असर पड़ सकता है। चुनाव की वेला में उसने पं. बंगाल, कर्नाटक और विरोधी हिंदी राज्यों में यदि किसी सही कारण से भी उसकी सरकारें बर्खास्त कर दीं तो वह अपना ही नुकसान करेगी।