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योगी राज में आत्महत्या के दंश से जूझती यूपी पुलिस

राजेश श्रीवास्तव
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डीजीपी ओपी सिंह भले ही बेहतर पुलिसिंग का दावा करें लेकिन यूपी में जो तथ्य और आंकड़े मिले हैं वह तो कम से कम यही बानगी दिखा रहे हैं यूपी में आईपीएस अधिकारी बेहद दबाव और तनाव में हैं। उत्तर प्रदेश की पुलिस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कहीं आईपीएस खुद को गोली मार ले रहा है तो कहीं जहर खा ले रहा है। वहीं निचले स्तर पर अब तक दो महिला सिपाहियों के थाने में फांसी लगा लेने और एक दरोगा के खुद को गोली मार लेने से पुलिस प्रशासन दहला हुआ है। नौकरी का दबाव और पारिवारिक उलझनों से निपटने में पुलिस अफसर और कर्मी किस कदर खुद को कमजोर महसूस कर रहे हैं? ज्यादातर पूर्व डीजीपी यही कहते हैं कि इस सरकार में पहले की तुलना में दबाव ज्यादा है और काम करना मुश्किल।

पिछले 5 महीने में ही यूपी पुलिस ने अपने दो आईपीएस अफसरों को खो दिया। इनमें राजेश साहनी, जो भारतीय पुलिस सेवा में एक उच्च अधिकारी थे। वह एटीएस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे। उन्होंने इसी साल 29 मई को लखनऊ के गोमतीनगर स्थित अपने दफ्तर में खुद को गोली मार ली। शुरुआत में नौकरी के दबाव की बात सामने आई। बहरहाल मामले की जांच सीबीआई को दी गई। सितंबर में 2०14 बैच के आईपीएस अधिकारी सुरेंद्र कुमार दास ने अधिक मात्रा में सल्फास निगल लिया, जिसके बाद अस्तपाल में उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई। मौत के पीछे सुरेंद्र दास का सुसाइड नोट सामने आया।

ऐसा नहीं है कि आईपीएस ही इसकी चपेट में हैं, निचले स्तर के पुलिसकर्मी भी कम दबाव नहीं झेल रहे हैं। सितंबर में ही यूपी के बांदा जिले के कमासिन थाने में तैनात महिला कांस्टेबल नीतू शुक्ला का शव संदिग्ध परिस्थितियों में थाना परिसर के आवास में लटकता पाया गया। 2०16 पुलिस बैच की नीतू शुक्ला (25) मूल रूप से कौशाम्बी जिले की रहने वाली थी।

उसके पिता अनिल शुक्ला कहते हैं कि उनकी बेटी की हत्या की गई है। उसने उन्हें फोन किया था तो डरी सहमी सी बात कर रही थी। 3० सितंबर को बाराबंकी की हैदरगढ़ कोतवाली में हड़कंप मच गया। यहां एक महिला कॉन्स्टेबल मोनिका ने पंखे से झूलकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में कॉन्स्टेबल ने पुलिसकर्मियों पर मानसिक रूप से परेशान करने के गंभीर आरोप लगाए। हरदोई जिले की रहने वाली मोनिका भी 2०16 बैच की सिपाही थी। पुलिस ने मौके से महिला सिपाही के कमरे से एक सुसाइड नोट बरामद किया है, जिसमें उसने थानेदार और कुछ पुलिसकर्मियों पर मानसिक रूप से परेशान करने आरोप लगाए हैं। उधर फर्रुखाबाद में 2 अक्टूबर को केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ला की सुरक्षा ड्यूटी में तैनात दारोगा तार बाबू तरुण ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली। वह मूलरूप से फिरोजाबाद के थाना टूंडला के गांव नगला सोना के रहने वाले थे।

आईपीएस सुरेंद्र दास की मौत के बाद यूपी मे पुलिस महानिदेशक ओपी सिह ने भी माना कि पुलिस महकमा बेहद तनाव में है। अधिकारी लंबे समय से काम का ज्यादा दबाव होने, लगातार कई घंटों तक काम करने, बर्बाद व्यक्तिगत जीवन और मांग करने वाले मालिकों के बारे में निजी रूप से शिकायत करते आ रहे हैं। यूपी पुलिस कर्मचारी परिषद के महासचिव अविनाश पाठक कहते हैं कि साप्ताहिक अवकाश और सार्वजनिक अवकाश को मिला लें तो साल भर में पुलिसकर्मी के पास 1०6 छुट्टियां होती हैं। लेकिन उन्हें बमुश्किल 7० छुट्टियां ही मिल पाती हैं, इसमें ज्यादातर साप्ताहिक अवकाश ही हैं। इन छूटी छुट्टियों का लाभ भी उन्हें किसी तरह का नहीं मिलता है। वह कहते हैं कि अगर किसी के घर में कोई आकस्मिक समस्या आ जाए तो भी अधिकारी छुट्टी जल्दी मंजूर नहीं करते।

अपना हवाला देते हुए कहते हैं कि मेरी ही शादी थी मेरे पास 5 से 6 महीने की छुट्टी बाकी थी। मैंने अर्जी 1 महीने की छुट्टी के लिए दी लेकिन छुट्टी मिली सिर्फ एक दिन की। मेरी पोस्टिंग उन दिनों झांसी में थी और बारात मिर्ज़ापुर जानी थी। आप बताइए क्या यह व्यवहारिक है। 5 महीने में यूपी पुलिस के 2 पुलिस अधिकारियों ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने वालों में से एक एटीएस के थे, तो दूसरे कानपुर के एसपी सिटी थे। पुलिस अधिकारियों के इस कदम से यूपी पुलिस परेशान है।

सवाल उठाता है, जैसा कि यह देश भर में अन्य असैन्य बलों के लिए सवाल खड़े करता है कि क्या खाकी वर्दीधारी राजनीतिक व सत्ताधारी आकाओं के नापाक, अवास्तविक लक्ष्यों व मंसूबों को पूरा करने के चक्कर में अत्यधिक तनाव से गुजर रहे हैं और अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ हैं। पुलिस पर बढ़ते दबाव से ऐसा मालूम पड़ता है जैसे अचानक इसके चलते आम जनता को हाशिए पर धकेल दिया गया है। राज्य सरकार पुलिस बल के लिए लक्ष्य निर्धारित कर रही है, जिससे कि वह खुद को एक अलग सरकार के रूप में दिखा सके, जो अपराधियों की धर-पकड़ करवाती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया, काम पहले से कहीं ज्यादा कठिन है।

आत्महत्याएं इसी दबाव का परिणाम हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक और एसएसपी स्तर के अधिकारी का कहना है, राजनीतिक वर्ग, पिछला और मौजूदा, जमीनी हालात को समझने और जिन मुश्किलों का हम सामना कर रहे हैं, उसे समझने में नाकाम रहा है। परिणामों के बाद यह एक तरह से पागल कर देने वाला है। एक सहकर्मी ने कहा कि निराशा चाहे वह निजी हो या पेशेवर, इससे निकलने के लिए..इसका मतलब मरना ही क्यों न हो..इसका इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दास ने मौत के तरीके गूगल पर ढूंढ़े। पूर्व डीजीपी विक्रम सिह, जिन्होंने ‘सख्त व रौब जमाने वाली मायावती’ सरकार में तीन साल तक सेवा दी थी, उन्होंने भी यह स्वीकार किया कि उच्च राजनीतिक दबाव पुलिसकर्मियों को तनाव में जाने पर मजबूर कर देते हैं। उन्होंने कहा, किसी भी मामले में पुलिस बहुत अधिक काम कर रही है और अपराधों के बढ़ने व इसे अंजाम देने के बदलते तरीके इसके लिए और मुसीबत बढ़ाते हैं। उन्होंने इस पर अफसोस जाहिर किया कि बिना छुट्टी के काम करने, नींद की कमी, असफल होने की भावना, पुलिसकर्मियों की निदा, राजनीतिक आकाओं की उदासीनता और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लगभग कोई संबंध नहीं होने के कारण सहनशक्ति के स्तर में काफी कमी आई है।

विक्रम सिह ने कहा, युवा अधिकारी के तौर पर, हमने प्रसिद्ध आईपीएस अधिकारी बी.एस. बेदी के साथ काम किया था। वे सभी अपने अधीनस्थ अधिकारियों के भले की चिता करते थे.. दुख की बात है कि पुलिस का संयुक्त परिवार टूट गया है। पूर्व डीजीपी के.एल. गुप्ता ने कहा कि पुलिस एक ‘द्रौपदी’ बन गई है, जो राजनेताओं, जनता, आरटीआई प्रश्नों, अदालतों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रति जवाबदेह है। उन्होंने बताया, निश्चित रूप से ऐसी चीजें हैं, जो किसी के आत्म-सम्मान को कम करती हैं और पारिवारिक विवाद इस तरह के कदमों का एक कारण हैं। पूर्व डीजीपी और वर्तमान में उत्तर प्रदेश एससी/एसटी आयोग के अध्यक्ष बृज लाल ने कहा कि वह 1981 से ऐसे कई मामलों के बारे में जानते हैं, जब पुलिस अधिकारियों ने वैवाहिक विवाद के कारण बड़े कदम उठा लिए।

हालांकि, उन्होंने कहा कि पुलिस बल पर निश्चित रूप से अधिक काम का दबाव है और इसका तुरंत समाधान किए जाने की जरूरत है। पूर्व डीजीपी श्रीराम अरुण ने कहा कि पुलिस सेवा में खींचतान और दबाव आजकल पहले से कहीं अधिक है। उन्होंने कहा, सभी तरफ से राजनीतिक दबाव है, अधिकारियों का एक झटके में तबादला कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इन चीजों से निपटने के लिए पुलिसकर्मियों को गलतियों के खिलाफ खड़े होने और अपने निजी और पेशेवर जीवन को संतुलित करने की जरूरत है, जबकि राजनीतिक महकमे को यह समझने की जरूरत है कि बेहतर पुलिस व्यवस्था केवल पुलिस और उसके अधिकारियों के साथ बेहतर और सौहार्द्रपूणã संबंधों के माध्यम से हासिल की जा सकती है।