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‘ये आतंकवादी भारत के ही नहीं, इस्लाम और मुसलमानों के भी दुश्मन हैं’

डॉ. वेद प्रताप वैदिक

राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने कमाल का काम कर दिखाया है। उसने जिन 10 आतंकवादियों को पकड़ा है, अगर वह उन्हें नहीं पकड़ती तो नया साल भारत के लिए बहुत बुरा साबित होता। दिल्ली और बाहर की 17 जगह छापे माकर उसने जो विस्फोटक सामग्री बरामद की है, उससे सैकड़ों लोग मारे जा सकते थे। अभी तक की पूछताछ से जो बातें पता चली हैं, वह रोंगटे खड़े कर देनेवाली हैं।

इन षडयंत्रकारियों के निशाने पर केंद्र के कुछ प्रमुख नेता तो थे ही, नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यालय भी था। जरा सोचिए कि ये लोग नए साल या गणतंत्र दिवस के दिन अपने इरादों को अंजाम दे देते तो क्या होता ? देश में तूफान मच जाता। लोगों को ऐसे भयानक दृश्य देखने पड़ते, जो भारत-विभाजन के समय देखने पड़े थे। नफरत के कुएं खुद जाते और खून की नदियां बह जातीं। दर्जन भर आतंकवादी अपनी मनमानी जरुर कर लेते लेकिन वे लाखों लोगों को मौत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर देते। वे जिन लोगों के पक्ष में काम करने का दम भर रहे हैं, उन करोड़ों बेकसूर लोगों की जिंदगी हराम कर देते।

इन आतंकवादियों ने यह क्यों नहीं सोचा कि आईएसआईएस का जो सरगना अफगानिस्तान में बैठकर उन्हें नाच नचा रहा है, उसका तो बाल भी बांका नहीं होगा लेकिन उनके कारनामों से वे भारत के मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन साबित होंगे। इन आतंकवादियों में कुछ पढ़े-लिखे नौजवान भी हैं, महिलाएं भी हैं, व्यापारी भी हैं। अमरोहा के मदरसे का एक मौलाना इस गिरोह का सरगना है। क्या उसने नहीं सोचा कि उसके पकड़े जाने से भारत के हर मदरसे पर उंगली उठने लगेगी ? क्या वह सारे मदरसों का दुश्मन सिद्ध नहीं हो रहा है। लोग कहेंगे कि जो मदरसे आतंकवादी पैदा करते हैं, उन्हें तुरंत बंद करो।

मदरसों को बंद करवाना याने कुरान-शरीफ की पढ़ाई के खिलाफ बगावत करवाना है। ऐसा आदमी अपने आप को मुसलमान कैसे कह सकता है? अपने आप को जिहादी कैसे कह सकता है ? बेकसूरों की हत्या करवाना कौनसा जिहाद है ? तशद्दुद (हिंसा) तो जिहादे-अकबर (बड़े जिहाद) के बिल्कुल खिलाफ है। ये आतंकवादी भारत के ही नहीं, इस्लाम और मुसलमानों के भी दुश्मन हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)