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भारत-चीन सीमा विवाद: तिब्बत स्थित चुंबी घाटी क्यों है इतनी अहम

पेइचिंग। भारत और चीन सिक्किम सीमा पर एक-दूसरे से टकराव की स्थिति में हैं। आमने-सामने खड़ी दोनों देशों की सेनाओं के बीच पिछले कई दशकों से ऐसी स्थिति नहीं बनी थी। सिक्किम सीमा के पास जिस जगह पर चीन सड़क निर्माण करा रहा है, उसपर भारत ने आपत्ति जताई है। यह जगह सिक्किम-भूटान और तिब्बत के जंक्शन पॉइंट पर है। चुंबी घाटी नाम की इस जगह में चीन की बढ़ती सक्रियता भारतीय हितों के नजरिये से बेहद परेशान करने वाली मालूम होती है। भारत के सामरिक हितों के मद्देनजर यह घाटी बेहद संवेदनशील है। कटार का आकार लिए हुए यह घाटी तिब्बत में भारत, भूटान और चीन की सीमाओं पर स्थित है। चुंबी घाटी में निर्माणकार्य न केवल सीमाओं की सुरक्षा के लिहाज से, बल्कि भारत की आतंरिक सुरक्षा के मद्देनजर भी खतरे की घंटी साबित हो सकता है।

चुंबी घाटी के ठीक नीचे है शेष भारत को उत्तरपूर्व से जोड़ने वाला सिलीगुड़ी गलियारा
इस घाटी को आप इन तीनों देशों का चौराहा समझ सकती है। भारत और चीन के बीच के 2 अहम दर्रे, नाथू-ला और जेलप-ला यहां खुलते हैं। इस संकरी घाटी में सैन्य गतिविधियां बहुत मुश्किल हैं। सिलीगुड़ी गलियारे से यह जगह करीब 50 किलोमीटर दूर है। कुछ जगहों पर तो यह गलियारा केवल 17 किलोमीटर चौड़ा है। शायद इसके पतले आकार और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ही इस गलियारे को भारत का ‘चिकन्स नेक’ कहते हैं। पश्चिम बंगाल में स्थित यह गलियारा भारत की मुख्यभूमि को उसके उत्तरपूर्वी राज्यों से जोड़ता है। चुंबी घाटी ना केवल भारत के सामरिक हितों, बल्कि आतंरिक व्यवस्था के लिहाज से भी भारत के लिए बहुत ज्यादा अहमियत रखती है। सिलीगुड़ी गलियारा चुंबी घाटी के ठीक नीचे है। यही कारण है कि भारत ने यहां सड़क निर्माण पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि यहां सड़क बनाने की योजना पेइचिंग की सामरिक रणनीति का हिस्सा है।

भारत-चीन की सीमा के बीच बहुत अहम है भूटान की भूमिका

उधर, भूटान ने भी चीन द्वारा डोकलाम में सड़क बनाए जाने का विरोध किया है। चीन यहां निर्माणकार्य कर चुंबी घाटी का विस्तार करना चाहता है, ताकि वह उस हिस्से तक पहुंच सके जहां उसकी सीमा भारत और भूटान से मिलती है। हालांकि भारत और चीन के बीच सिक्किम सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं है, लेकिन चीन की भारतीय सीमा पर अपनी मौजूदगी और पहुंच बढ़ाने की कोशिश नई दिल्ली के हितों के लिए सही संकेत नहीं है। इसी कारण दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनातनी की स्थिति पैदा हो गई है। इस पूरे मामले में भूटान की भूमिका भी बहुत अहम है।

चीन से खतरों को देखते हुए भूटान भारत के लिए काफी संवेदनशील
दोनों देशों के बीच हिमालय में बसा भूटान भारत का पुराना दोस्त है। 2014 में जब PM मोदी ने कार्यभार संभाला, तब अपनी पहली विदेश यात्रा पर वह भूटान ही गए थे। भूटान ना केवल भौगोलिक तौर पर, बल्कि घरेलू जरूरतों के लिए भी भारत पर निर्भर है। भूटान का 75 फीसदी आयात भारत से होता है। उसका लगभग 85 फीसद निर्यात भी भारत में ही आता है। भूटान द्वारा पैदा की गई पनबिजली को भी भारत ही खरीदता है। सैन्य जरूरतों के लिए भूटान भारत पर निर्भर है। भारतीय सेना भूटान के सैनिकों और अधिकारियों को प्रशिक्षित करती है। सामरिक चुनौतियों और चीन से खतरे को देखते हुए भूटान भारत के लिए काफी संवेदनशील है। बीच में कुछ समय ऐसा लग रहा था कि भूटान चीन के साथ संबंध सामान्य करने की कोशिश कर रहा है। उसे चेतावनी देने के लिए 2013 में भारत ने भूटान को दी जाने वाली सब्सिडी खत्म कर दी थी।

भारत की मुख्यभूमि को उसके उत्तरपूर्वी राज्यों से जोड़ने वाला सिलीगुड़ी गलियारा इस चुंबी घाटी के ठीक…
भूटान और चीन के बीच भी है सीमा विवाद

एक ओर जहां भारत के साथ भूटान के बेहद करीबी रिश्तें हैं, वहीं यह चीन का इकलौता पड़ोसी है जिसके साथ उसका कोई कूटनीतिक संबंध तक नहीं है। दिल्ली में स्थित अपने दूतावास के माध्यम से भूटान चीन के साथ संपर्क करता है। भूटान और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद है और इसपर बातचीत के लिए कई बैठकें भी हो चुकी हैं। 1950 के दशक में तिब्बत में प्रवेश करने और सैन्य कार्रवाई के बाद वहां अपना अधिकार करने के बाद से ही नेपाल, भूटान और सिक्किम पर चीन नजर रख रहा है। भूटान के जिन हिस्सों पर चीन अपना दावा करता है, उन दावों का भूटान बार-बार विरोध कर चुका है। भूटान ने चीन के दावों को लगातार खारिज किया है। इन सबके बावजूद भूटान सीधे-सीधे चीन को नाराज भी नहीं करना चाहता। जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया था, तब बड़ी संख्या में तिब्बती नागरिक भागकर भूटान पहुंचे थे। भूटान ने उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने की जगह उनसे अपनी नागरिकता लेने को कहा। इसके बाद कई तिब्बती भारत चले आए।