दिलीप सी मंडल
हर चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां घोषणापत्र जारी करती हैं. इसमें पार्टी बताती है कि अगर वह सत्ता में आई, तो क्या क्या करेगी. इसमें पार्टी के नीति सिद्धांतों के साथ ही कार्ययोजना का भी ब्योरा होता है. आम तौर पर ये घोषणापत्र एक बुकलेट की शक्ल में जारी किए जाते हैं और इसे विधिवत लॉन्च किया जाता है. उम्मीद की जाती है कि जीतने वाली पार्टी अपने नीति-सिद्धांतों पर चलेगी और उन चुनावी वादों को पूरा करेगी, जिनका जिक्र चुनाव घोषणापत्र में किया गया है. बीएसपी को छोड़कर देश की सभी बड़ी पार्टियां चुनाव घोषणापत्र जारी करती हैं.
2014 में बीजेपी ने एक व्यवस्थित चुनाव घोषणापत्र जारी किया था. इसमें देश के लिए पार्टी की परिकल्पनाओं के साथ ही पार्टी की नीतियों और कार्ययोजनाओं का जिक्र था. बीजेपी सरकार अपने कार्यकाल के चार साल पूरे करने वाली है. सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पेश किया जा चुका है. अगर अगले लोकसभा चुनाव तय समय पर हुए तो 2019 में बजट नहीं, बल्कि वोट ऑन डिमांड ही पेश होगा, ताकि सरकार का वित्तीय कामकाज चलता रहे. अगला बजट अगली नवगठित संसद में ही पेश होगा.
क्या यह उचित समय नहीं है, जब केंद्र सरकार के कामकाज की समीक्षा शुरू हो? कायदे से बीजेपी को चार साल का कार्यकाल पूरा होने पर एक विस्तृत दस्तावेज लाकर यह बताना चाहिए कि इस दौरान किन चुनावों वायदों पर अमल कर दिया गया, किन योजनाओं पर काम चल रहा है और जिन योजनाओं पर काम नहीं हो पाया, उसकी वजह क्या रही.
विपक्ष को पूछना चाहिए क्या हुआ घोषणापत्र का
सत्ताधारी दल के लिए अपने कामकाज की समीक्षा कोई आवश्यक राजनीतिक कार्य नहीं है. वह चाहे तो ऐसा कर सकती है या फिर ऐसा नहीं भी कर सकती है. अपना कार्य करते हुए सरकार के लिए जरूरी नहीं है कि अपने कार्यों का ब्यौरा भी दे. वह यह कह सकती है कि उसका काम बोल रहा है. उसका जिक्र अलग से क्यों करना?
लेकिन यह सुविधा विपक्ष के पास नहीं है. विपक्ष का यह अनिवार्य राजनीतिक कार्य है कि वह सरकार के कामकाज पर नजर रखे और बताए कि सरकार ने अपने किन चुनावी वादों को पूरा नहीं किया या किन वादों पर अब तक काम शुरू नहीं हुआ है.
अभी की स्थिति यह है कि सरकार चुनींदा तौर पर ऐसे दावे कर रही है कि उसने क्या क्या काम कर लिए हैं. सरकार अपनी उपलब्धियों की चर्चा कर रही है, जो उचित भी है. लेकिन प्रचार के इस सरकारी अभियान को अभी चुनाव घोषणापत्र से असंबद्ध दिखाया जा रहा है.
अभी तक बीजेपी या सरकार की तरफ से वह पहली प्रचार सामग्री नहीं आई है, जिसमें बिंदुवार यह बताया गया हो कि सरकार ने अब तक किन-किन चुनावी वादों पर अमल कर लिया है. हालांकि इस बात की चर्चा है कि सरकार ऐसा कोई दस्तावेज या प्रचार अभियान शुरू करने वाली है.
इन वादों को पूरा किया कि नहीं
इस मामले में सरकार से भी ज्यादा निराश विपक्ष ने किया है. बीजेपी की सरकार वादों पर सवार होकर आई है. चुनाव से पहले बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने वादों और दावों की झड़ी लगा दी थी. इनमें से कुछ वादे इस तरह है. ये सभी वादे बीजेपी के 2014 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र से निकले हैं. कायदे से विपक्ष को पूछना चाहिए कि –
1. देश में 100 नए स्मार्ट शहर कब तक बसाए जाएंगे?
2. देश के सबसे पिछड़े 100 जिलों को विकसित जिलों में शामिल होना था, वह काम कब शुरू होगा.
3. राष्ट्रीय वाइ-फाई नेटवर्क बनना था. वह काम कब शुरू होगा?
4. बुलेट ट्रेन की हीरक चतुर्भुज योजना का काम कहां तक आगे बढ़ा है?
5. कृषि उत्पाद के लिए अलग रेल नेटवर्क कब तक बनेगा?
6. हर घर को नल द्वारा पानी की सप्लाई कब तक शुरू होगी?
7. जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के लिए विशेष न्यायालयों का गठन कब होगा?
8. बलात्कार पीड़ितों और एसिड अटैक से पीड़ित महिलाओं के लिए विशेष कोष कब तक बनेगा?
9. वरिष्ठ नागरिकों को आर्थिक सहायता देने के वादे का क्या हुआ?
10. किसानों को उनकी लागत का कम से कम 50% लाभ देने की व्यवस्था होने वाली थी. उसका क्या हुआ?
11. 50 टूरिस्ट सर्किट बनने वाले थे. कब बनेंगे?
12. अदालतों की संख्या दोगुनी करने के लक्ष्य का क्या हुआ?
13. न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या बढ़ाने की दिशा में पहला कदम कब उठाया जाएगा?
14. जजों की संख्या दोगुनी करने की दिशा में कितनी प्रगति हुई है?
15. फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को तीन हिस्सों में बांटने की योजना का क्या हुआ?
16. महिला आईटीआई की स्थापना कब होगी?
17. महिलाओं द्वारा संचालित बैंकों की स्थापना होनी थी. ऐसे कितने बैंक बने?
18. हर राज्य में एम्स जैसे संस्थानों की स्थापना होनी थी. कितने राज्यों में इनका काम शुरू हुआ है? बाकी राज्यों में कब काम शुरू होगा?
19. बैंकों के खराब कर्ज यानी एनपीए को कम करने की सरकार के पास क्या योजना है?
20. नदियों को साफ करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के काम में कितनी प्रगति हुई है?
चुनावी वादों को जनता की नजर में लाने का काम विपक्ष का
बीजेपी के घोषणापत्र में ऐसा बहुत कुछ है, जिस पर अब तक काम शुरू नहीं हुआ है. लेकिन आप पाएंगे कि विपक्ष ने अब तक घोषणापत्र के अध्ययन और वास्तविकता से साथ उसे मिला कर देखने का काम शुरू भी नहीं किया है. विपक्ष की गुणवत्ता सिर्फ इस बात से तय नहीं होती है कि विपक्ष में कितने सांसद हैं.
केंद्र में 1984 के बाद पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है और विपक्षी सांसदों की समस्या इतनी कम है कि वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष तक नहीं बना पाया. लेकिन संख्या ही सबकुछ नहीं है.
विपक्ष अपनी अर्थवत्ता साबित करने के लिए एक पहरेदार यानी वाचडॉग की भूमिका निभानी चाहिए. उसे सरकार के हर काम पर नजर रखनी चाहिए और जहां भी कोई कमी या गड़बड़ी दिखे, उसे चिन्हित करना चाहिए.
सरकार अगर अपने चुनावी वादे पूरा नहीं कर रही है, तो इसे जनता की नजर में लाने का काम विपक्ष का है. स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. लेकिन यह तभी है, जब वह अपनी भूमिका निभाए. अगर विपक्ष भी सत्ताधारी दल के चुनाव घोषणापत्र पर नजर नहीं रखेगा, तो यह काम कौन करेगा?