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सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के सेक्सुअल एक्प्लाइटेटिव और अब्यूजिव मैटेरियल को लेकर बड़ा फैसला दिया, चाइल्ड पोर्न पर एक क्लिक में आपको पहुंचा सकता है जेल

सुप्रीम  कोर्ट ने बच्चों के सेक्सुअल एक्प्लाइटेटिव और अब्यूजिव मैटेरियल को लेकर बड़ा फैसला दिया। बच्चों के घटिया वीडियो को किस तरह बाजार में प्रसारित किया जा रहा है और एक समाज के तौर पर हम इस बुराई से कैसे डील कर सकते हैं, किस तरह की नीतियां बनाई जा सकती हैं। इन तमाम मुद्दों पर आज हम बात करेंगे। दरअसल, भारत में बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी पर 23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया।

5 प्वाइंट में पूरा फैसला समझें

बच्चों से जुड़ी अश्लील साम्रगी डाउनलोड करना, देखना और सर्कुलेट करना पोक्सो और आईटी एक्ट के तहत अपराध माना जाएगा।

अदालत ने कहा कि हमने ये फैसला बच्चों के उत्पीड़न और उनसे दुर्व्यवहार की बढ़ती घटनाओं के आधार पर दिया है।

अदालत ने संसद को सुझाव दिया कि पोक्सो एक्ट में बदलाव किया जाए। चाइल्ड पॉर्नोग्राफी शब्द की जगह चाइल्ड सेक्सुअल एक्प्लोटेटिव एंड अब्यूजिव  मैटेरियल (सीएसईएएस) का इस्तेमाल किया जाए।

अगर कोई व्यक्ति इंटरनेट पर इस तरह का कंटेंट देखता है और इसे डाउनलोड नहीं करता है तो भी उस पर पोक्सो की धारा 15 के तहत केस बनेगा। ये माना जाएगा कि उसने इस तरह की सामग्री को कंज्यूम किया है।

अगर इस तरह का कंटेंट देखने वाले का इसे आगे फॉरवर्ड करने का नहीं है या इससे वो कोई आर्थिक लाभ नहीं भी लेना चाहता है तो भी इसे अपराध माना जाएगा।

इरादतन ऐसा कंटेंट देखना पोक्सो के दायरे में आएगा

कुल मिलाकर कहें कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि कोई भी व्यक्ति सीएसईएएस कंटेंट भले ही डाउनलोड न करे, भले ही इसे आगे न फॉरवर्ड करे, कोई बिजनेल लाभ न ले, लेकिन वो इरादतन ऐसा कंटेंट देख भर रहा है तो वो भी पोक्सो के दायरे में आएगा। धारा 15 के तहत आने वाली उपधाराएं (1), (2) और (3) एक दूसरे से स्वतंत्र हैं। यानी कोई मामला अगर किसी एक उपधारा के दायरे में नहीं आता तो भी वह दूसरी उपधारा के अंतर्गत आ सकता है।

वॉच टाइम से तय होगा आरोप

उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझें सुरेश नाम का व्यक्ति महेश नाम के व्यक्ति को कोई लिंक भेजता है। महेश को पता नहीं है कि इस लिंक में क्या है। वो इस पर क्लिक कर देता है। अगर इस लिंक से एससीईएएम कॉन्टेंट खुलता है तो यहां 2 कंडीशन हैं। पहली स्थिति कि  ऐसा कॉन्टेंट खुलते ही महेश तुरंत इसे बंद कर देता है। इस सूरत में वो आरोपी नहीं होगा। दूसरी स्थिति कि महेश ने भले ही लिंक अनजाने में खोला लेकिन जब इस तरह का कॉन्टेंट खुला तो वो उसे देखने लगा। ठीक-ठाक समय तक उसने ये कॉन्टेंट कॉन्ज़्यूम किया। इस तरह में वो आरोपी होगा। क्योंकि वहां उसका वॉच-टाइम जुड़ गया है।