नई दिल्ली। ‘ब्रांड गूगल’ की चमत्कारिक सफलता की कहानी कैलीफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के दो छात्रों के बीच दोस्ती के साथ शुरू हुई. शुरुआत में इन दोस्तों ने गूगल को एक कार गैराज से शुरू किया था, जो आज बहुत ही अधिक लोकप्रिय बन चुकी है. इंटरनेट सर्च मशीन से शुरू कर गूगल अब ई-मेल, फोटो और वीडियो, भूसर्वेक्षण नक्शों और मोबाइल फोन जैसी सेवाएं देने वाली ऑलराउंडर कंपनी बन गई है. सभी सेवाएं मुफ्त हैं. कमाई होती है व्यावसायिक कंपनियों से मिलने वाले विज्ञापनों से.
हम जिन सेवाओं को मुफ्त समझते हैं, गूगल को उन्हीं के बल पर कहीं और से कमाई होती है. अन्य कंपनियां हमारे बारे में जानकारियां गूगल से खरीदती हैं या उसे अपने विज्ञापनों के लिए पैसा देती हैं. विज्ञापन पर हर क्लिक के लिए गूगल चंद सेंट से लेकर सैकड़ों डॉलर तक वसूल करता है.
मान्यता- एक के पीछे 100 शून्य लगा दिए जाएं तो बनती है एक अनूठी संख्या ‘गोगोल’, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे एक 9 साल के बच्चे ने गढ़ा था. इसी शब्द के अपभ्रंश से बना है शब्द ‘गूगल’, जिसके बारे में कहा जाता है कि आज अगर वह न हो, तो दुनिया खाली-खाली सी लगेगी.
आपस में नहीं पटती थी दोनों की
सर्जि ब्रिन और लैरी पेज 22-23 साल के थे, जब 1995 में वे पहली बार मिले. उस समय दोनों के बीच बिल्कुल नहीं पटती थी. हर बात पर बहस हो जाया करती थी. दोनों के माता-पिता बेहद पढ़े-लिखे टैक्नोक्रेट्स थे.
मिलकर बनाई सर्च मशीन
लैरी और सर्जि को दोस्त बनाया एक समस्या ने, वह थी इंटरनेट जैसे सूचनाओं के महासागर में से किसी खा़स सूचना को कैसे ढूंढ़ा जाए? दोनों ने मिल कर एक सर्च-मशीन बनाई, एक ऐसा कंप्यूटर, जो कुछ निश्चित सिद्धांतों और नियमों के अनुसार किसी सूचना भंडार में से ठीक वह जानकारी ढूंढ़कर निकाले, जो हम चाहते हैं.
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में किया परीक्षण
बुनियादी सिद्धांत यह था कि हाइपर लिंक द्वारा किसी वेबसाइट की ओर जितना ही अधिक इशारा किया गया हो, उतनी ही महत्वपूर्ण वह वेबसाइट होनी चाहिए. हम जिस शब्द, सूचना या प्रश्न के उत्तर की खोज कर रहे हैं, उसकी दृष्टि से इंटरनेट में उपलब्ध उपयोगी वेबसाइटों को छान कर उन्हें एक तर्कसंगत अनुक्रम में पेश करना वह गुत्थी थी, जिसे लैरी और सर्जि ने मिलकर सुलझाया. दोनों ही प्रोफेशनल दोस्तों ने अपनी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में आरंभिक परीक्षण किए. इसके लिए 11 लाख डॉलर धन जुटाया.
कार-गैरेज में बनी गूगल इनकॉपरेरेटेड
दोनों ने 7 सितंबर 1998 को, गूगल इनकॉपरेरेटेड के नाम से मेनलो पार्क, कैलीफोर्निया के एक कार गैरेज में अपनी कंपनी बनाई और काम शुरू कर दिया. दो ही वषों में गूगल का नाम सबकी जुबान पर था. जर्मनी में कम्प्यूटर विज्ञान के प्रोफेसर डिर्क लेवान्दोस्की का मत है कि याहू जैसे अपने अन्य प्रतियोगियों की तुलना में गूगल शायद ही बेहतर है, लेकिन उसकी सार्वजनिक छवि कहीं अच्छी बन गई है.
सितंबर 2007 में गूगल ने पूरा किया अपना पहला दशक
यही उसकी चमत्कारिक सफलता का रहस्य है. इंटरनेट को दुनिया में आए दो दशक से ज्यादा समय हो गए हैं, जबकि गूगल ने सितंबर 2007 को अपना पहला दशक पूरा किया, तब भी दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं.
इस्तेमाल बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते चले गए शेयर के दाम
इंटरनेट का इस्तेमाल जितना बढ़ रहा है, गूगल के शेयर भी उतने ही चढ़ रहे हैं. अगस्त 2004 में गूगल ने जब पहली बार शेयर बाज़ार में पैर रखा, तब उसके शेयर 85 डॉलर में बिक रहे थे. तीन वर्ष बाद, नवंबर 2007 में इसके शेयर उछलकर 747 डॉलर पर पहुंच गए थे. वर्तमान में गूगल का हर शेयर करीब 1037 डॉलर में बिक रहा है. 22 से ज्यादा तरह की बहु-उपयोगी सर्चिंग सेवाओं के साथ गूगल ने इस बीच संसार भर में फैली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का रूप ले लिया है.
एंड्रॉइड खरीद से छाया स्मार्टफोन
आज एंड्रॉइड सॉफ्टवेयर का मालिक गूगल है, लेकिन इसकी खोज गूगल ने नहीं की थी. एंड्रॉइड इंक नामक कंपनी की स्थापना एंडी रूबिन ने कुछ लोगों के साथ मिल कर 2003 में की थी. बाद में कंपनी की माली हालत खराब हो गई, तभी गूगल की नजर इस कंपनी पर पड़ी जो स्मार्ट फोन्स के लिए एक नए तरह का सॉफ्टवेयर बनाने में जुटी थी. 2005 में गूगल ने इस कंपनी को खरीद लिया. एंड्रॉइड की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज स्मार्ट फोन के करीब 80 फीसदी बाजार पर इसी का कब्जा है, यानि हर पांच में से चार स्मार्ट फोन, एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम पर चल रहे हैं.
व्यावसायिक कंपनियों से होती है इसकी कमाई
हर दिन 15 लाख से ज्यादा लोग नया एंड्रॉएड डिवाइस खरीद रहे हैं. इसी साल एंड्रॅाइड, एक ऐसे आंकड़े को छू लेगा, जिसके आस-पास पहुंचना किसी भी कंपनी के लिए एक सपना होता है. एक अरब लोगों के हाथों में पहुंचने का सफर एंड्रॉइड ने सिर्फ छह सालों में पूरा कर लिया. इंटरनेट सर्च मशीन से शुरू कर गूगल अब ई-मेल, फोटो और वीडियो, भूसर्वेक्षण नक्शों और मोबाइल फोन जैसी सेवाएं देने वाली ऑलराउंडर कंपनी बन गई है. सभी सेवाएं मुफ्त हैं. कमाई होती है व्यावसायिक कंपनियों से मिलने वाले विज्ञापनों से.
मुफ़्त सेवा से सैंकड़ों डॉलर की कमाई
ऑस्ट्रिया के पत्रकार गेराल्ड राइशी ने गूगल की कार्यशैली पर जर्मन भाषा में किताब लिखी है. उनके अनुसार, जब भी हम गूगल की सेवाएं इस्तेमाल कर रहे होते हैं, गूगल हमारे बारे में ऐसी जानकारियां जमा कर रहा होता है, जिनकी हमें भनक तक नहीं होती. गूगल जैसी साइटों पर जब हम अपने शौक, प्रिय संगीत या जन्मस्थान के बारे में प्रश्नों के उत्तर दे रहे होते हैं, गूगल के कम्प्यूटर हमारे बारे में जानने में लगे होते हैं कि हम इंटरनेट की और किन साइटों पर गए, वहां हमने क्या खोजा या अपने क्या निशान छोड़े.
मुफ्त की सेवा से कमाता है करोंड़ों डॉलर
इस तरह गूगल चाहे तो हमारी निजी पसंद-नापसंद ही नहीं, हमारे सारे व्यक्तित्व का भी एक पूरा खाका तैयार कर सकता है. गूगल की यह एक सुविचारित युक्ति है कि व्यक्ति को ललचा-लुभा कर अपनी साइट पर लाया जाए, ताकि उसके बारे में ऐसी जानकारियां जमा की जा सकें, जिनका व्यापारिक लाभ उठाया जा सकता है. हम जिन सेवाओं को मुफ़्त समझते हैं, गूगल को उन्हीं के बल पर कहीं और से कमाई होती है. अन्य कंपनियां हमारे बारे में जानकारियां गूगल से ख़रीदती हैं या उसे अपने विज्ञापनों के लिए पैसा देती हैं. विज्ञापन पर हर क्लिक के लिए गूगल चंद सेंट से लेकर सैकड़ों डॉलर तक वसूल करता है.