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परिवार में तीसरा आतंकी था प्रोफेसर रफी, 90 के दशक में मारे गए थे दो भतीजे

शोपियां। रविवार की सुबह, अब्दुल रहीम भट को उनके बेटे मोहम्मद रफी भट ने फोन किया. उसने अपने पिता से कहा, “मैं फंस गया हूं. कृपया मेरी गलतियों के लिए माफ कर दें. मैं अल्लाह से मिलने जा रहा हूं.”

श्रीनगर स्थित कश्मीर यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र का सहायक प्रोफेसर भट पिछले दो सालों से यहां पढ़ा रहा था. रफी पिछले शुक्रवार की दोपहर को लापता हो गया था.

रविवार की सुबह, रफी अपने चार सहयोगियों के साथ, जिनमें सभी हिज्बुल मुजाहिदीन के टॉप कमांडर थे, दक्षिणी कश्मीर के शोपियां में एनकाउंटर में मारा गया. रफी केवल 36 घंटे ही आतंकी रह पाया.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक शुक्रवार की सुबह, रफी गंदरबल स्थित अपने घर से यूनिवर्सिटी के लिए निकला, वहां उसे लेक्चर देना था. जब वो उस दिन घर नहीं लौटा, तो अगले दिन उसके परिवार ने लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई. जैसे ही खबर फैली,  छात्रों ने गुमशुदगी को लेकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. चिंतित कश्मीर यूनिवर्सिटी ने राज्य के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (डीजीपी) एसपी वैद्य को पत्र लिखकर रफी का पता लगाने के लिए कहा.

लेकिन रविवार की सुबह ही, आखिरकार अपने पिता ने रफी के बारे में बताया- वो फोन पर था, बोला कि शोपियां में फंस गया है.

रफी को हाल ही में हैदराबाद यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए चुना गया था, जिन लोगों को इस पद के लिए चुना गया था, रफी उस लिस्ट में टॉपर था. उसके एक छात्र ने कहा, “शुक्रवार को, उन्होंने हमें बताया कि वे हैदराबाद के लिए रवाना होने वाले थे.”

गंदरबल में रफी के चुंडूना गांव में शोकसभा में शामिल होने आए छात्र ने कहा कि वे एक बेहतरीन शिक्षक थे, जाने से पहले उन्होंने हमें जमकर पढ़ाई करने की सलाह दी थी.

कश्मीर यूनिवर्सिटी से पिछले साल नवंबर में समाजशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले 32 वर्षीय रफी ने दो बार NET (नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट) की परीक्षा पास की थी और वो जूनियर रिसर्च फेलो भी था.

उसके एक शिक्षक ने कहा, “वो बहुत ही मेधावी छात्र और शिक्षक था. अपने विषय में उसने ज्यादातर परीक्षाएं पास की थीं. और 29 रिसर्च पेपर प्रकाशित कराए थे.”

रफी ने एक साल पहले कॉन्ट्रैक्चुअल लेवल पर बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कश्मीर यूनिवर्सिटी ज्वॉइन किया था. कश्मीर यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख पीरजादा अमीन ने कहा, ‘रफी बहुत ही सक्षम थे. उनकी मौत हमारे लिए एक गहरा सदमा है.’

चुंडूना गांव के लोग उसे बहुत ही नेकदिल और जमीन से जुड़े व्यक्ति के रूप में याद करते हैं. उसके पड़ोसी ने कहा, “सब लोग उन्हें प्यार करते थे. उन्होंने कभी किसी से ऊंची आवाज में बात नहीं की.”

रफी अपने परिवार में तीसरा व्यक्ति था, जिन्होंने आतंक का रास्ता चुना. उसके दो भतीजे भी 90 के दशक में आतंकी बन गए थे और मारे गए. इनमें एक भतीजा 1992 में मुठभेड़ में मारा गया, जबकि दूसरा हथियारों की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर जाने के लिए सीमा पार करते हुए मारा गया.