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………..तो प्रियंका गांधी वाड्रा के आने से राहुल फ्लॉप हो गए

अजय कुमार

कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोकसभा चुनाव प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के 11 फरवरी को  प्रथम बार उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आगमन पर यहां की सड़कें काफी हद तक कांग्रेसमय दिखाईं दी। राहुल-प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीब 15 किलोमीटर लम्बे रोड शो के दौरान कांग्रेसियों का जो हुजूम सड़क पर दिखाई दिया, उससे कांग्रेस आलाकमान कितना संतुष्ट हुआ होगा यह तो वह ही जाने, लेकिन रोड शो में इतनी भी भीड़ नहीं दिखाई दी जिससे विपक्ष का मुंह बंद किया जा सकता था। फिर भी कांग्रेस खुश है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसा नजारा देखने के लिए लम्बे समय से कांग्रेस की आंखें तरस रही थीं। इस रोड शो में मीडिया से लेकर आम कांग्रेसियों तक ज्यादा फोकस प्रियंका गांधी वाड्रा पर ही रहा।

उधर, रोड शो के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिशों के क्रम में राफेल विमान के डमी को एक डंडे के सहारे उड़ाकर (लहराकर) मोदी के प्रति अपने इरादे साफ कर रहे थे। राहुल ने ‘राफेल’ दिखाया तो कांग्रेसियों ने ‘चौकीदार चोर है।’ के नारे लगाकर राहुल का उत्साहवर्धन किया। प्रियंका के रोड शो में बड़ी संख्या में युवाओं की उपस्थिति देखने को मिली, लेकिन यह उत्साह कब तक बरकरार रह पायेगा, यह कांग्रेस के सामने यक्ष प्रश्न रहेगा। इसके अलावा प्रियंका के सामने भाई राहुल गांधी और पति राबर्ट वाड्रा का ‘साया’ भी मंडराता रहेगा। प्रियंका के आते ही विपक्ष ने राहुल गांधी को फ्लाप साबित करने की मुहिम शुरू भी कर दी है। वहीं राबर्ट वाड्रा भी कांग्रेस के न चाहते हुए भी चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका की टीम से जो संकेत मिल रहे हैं उससे तो ऐसा ही लगता है कि प्रियंका यूपी में युवाओं और किसानों पर ज्यादा जोर देगीं। इसके पीछे की वजह उन किसानों और युवाओं का बड़ा वोट बैंक है। बात युवाओं की कि जाए तो कांग्रेस को ऐसा लगता है कि रोजगार या अच्छा कैरियर बनाने के लिए देश का युवा इधर-उधर भटक रहा हैं। प्रियंका युवाओं को मोदी के खिलाफ बड़ा हथियार बनाना चाहती है। मगर युवा प्रियंका पर भरोसा करें, इससे पहले युवाओं को गांधी परिवार से कुछ ऐसे सवालों का भी जवाब मिलना चाहिए जो भले ही मध्य प्रदेश और राजस्थान से जुड़े हो लेकिन उत्तर प्रदेश के संदर्भ में इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

बात बीते साल हुए विधान सभा चुनाव की है,जब चुनाव जीतने के बाद मध्य प्रदेश में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह बुजुर्ग कमलनाथ को और राजस्थान में युवा सचिन पायलट की जगह बुजुर्ग अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। कहा जाता है कि कमलनाथ और गहलोत को सीएम बनाए जाने में प्रियंका का बड़ा हाथ था। उन्हीं की सहमति के बाद सचिन और सिंधिया को डिप्टी सीएम की कुर्सी पर संतोष करना पड़ा था।

यह तब हुआ जबकि मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट ने कांग्रेस की सत्ता की वापसी के लिए पांच साल तक लगातार मेहनत की थी। इन्हीं युवा नेताओं की मेहनत के बल पर दोनों राज्यों में कांग्रेस की वापसी हो पाई थी। दोनों युवा नेता थे तेजतर्रार और राहुल गांधी के वफादार भी थे, लेकिन जब सीएम के नाम पर फैसले की बारी आई प्रियंका ने पासा पलट दिया। इसी वजह से युवा युवा नेता सिंधिया और सचिन पायलट हाथ मलते रह गए। कहने को तो दोनों को डिप्टी सीएम बना दिया गया लेकिन संवैधानिक रूप से इस पद की कोई मान्यता नहीं है।

मध्य प्रदेश और राजस्थान में जब प्रियंका वाड्रा युवाओं के खिलाफ खड़ी नजर आई तो यूपी में कैसे उम्मीद लगाई जा सकती है कि वह युवाओं का साथ देंगी। उनकी एमपी-राजस्थान में सीएम चयन करने की रणनीति के बाद जो इमेज बनी है,वह युवा विरोधी ही लगती है। सबसे बड़ी बात यह है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत के कामकाज पर भी सवाल उठने लगे हैं, जिस तरह से किसानों का कर्ज माफ करने के नाम पर मजाक उड़ाया गया वह छिपा नहीं है। इसी प्रकार गो तस्करों पर रासुका लगाए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नाराजगी की खबर आने के बाद राहुल का छद्म हिन्दुत्व भी बीजेपी के निशाने पर है। एमपी में अपराध की घटनाओं में भी लगातार इजाफा हो रहा है। बीजेपी के कई नेता मारे जा चुके हैं।

बात राजस्थान की कि जाए तो वहां तो सचिन पायलट के साथ कांग्रेस आलाकमान ने जो विश्वासघात किया उसके खिलाफ वहां के गुजरों में काफी नाराजगी है। वह आरक्षण को लेकर रेलवे ट्रेक पर बैठे हुए हैं तो सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाए जाने की नाराजगी भी उनके बयानों में सामने आ रही है।

खैर, बात यूपी की ही की जाए तो पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाई गईं प्रियंका को यहां की करीब दो दर्जन लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस की जमीन तो मजबूत करना ही होगी,इसके अलावा रायबरेली और अमेठी के नतीजे भी प्रियंका की सियासत की गहराई का नापेंगे। अमेठी में राहुल के लिए राह बहुज ज्यादा आसान नहीं है। वहां किसान भूमि अधिग्रहण का मुआवजा नहीं मिलने से नाराज हैं। अगर प्रियंका ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में हंड्रेड परसेंट रिजल्ट दे भी दिया तब भी अमेठी में राहुल की जीत फीकी रहती है तो सवाल तो थोड़े होंगे ही । इसी तरह रायबरेली भी प्रियंका की परीक्षा लेगा। दोनों ही जगह के लिए प्रियंका नई नहीं है। वह यहां पहले से प्रचार करती रही है। यह भी सच है प्रियंका का यहां विधान सभा चुनाव में जादू नहीं चला था। रायबरेली में तो दो विधान सभा सीटें कांग्रेस को मिल भी गईं,लेकिन अमेठी में तो कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। इसको आधार बना लिया जाए तो प्रियंका के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश की राह आसान नहीं लगती है।

बात यूपी में प्रियंका की दुश्वारियों की कि जाए तो यूपी में अपनी राजनैतिक पारी खेलने के लिए उतरी प्रियंका पहले ही दिन बैकफुट पर नजर आईं। उन्होंने कड़वा सच छुपाना पड़ गया। ‘कल’ की ही तो बात थी, जब दिल्ली में प्रियंका गांधी वाड्रा अपने पति राबर्ट वाड्रा को ईडी के दफ्तर तक छोड़ने गई थीं,जहां राबर्ट वाड्रा से उनकी बेनामी सम्पति के बारे में पूंछताछ होनी थी। तब कहा गया कि प्रियंका वाड्रा पत्नी होने का धर्म निभा रही हैं, वह निडर महिला हैं, लेकिन दिल्ली से लखनऊ की उड़ान भरने के बीच न जाने कहां प्रियंका का सर नेम वाड्रा हवा में उड़ गया। हजारों पोस्टरों में से किसी भी पोस्टर में प्रियंका गांधी वाड्रा नजर नहीं आईं। आई तो सिर्फ प्रियंका गांधी। शायद यहां वह बहन की जिम्मेदारी निभा रहीं थीं, इस लिए वाड्रा को उन्होंने यहां पीछे छोड़ दिया। इसे कहते हैं सहूलियत की राजनीति। पहली बार लखनऊ पहुंची प्रियंका ने राजनीति में प्रवेश करते ही झूठ का सहारा लेकर जनता को छलना शुरू कर दिया है। यही है कांग्रेस का असली चेहरा। कुल मिलाकार प्रियंका को समझने के लिए उनके अतीत को देखना और समझना ज्यादा जरूरी है। तभी उनकी सही पहचान बन पाएगी।

बात कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा रोड शो के दौरान डमी राफेल लहराने और ‘चौकीदार चोर है’ के नारों की कि जाए तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस के लिए ‘चौकीदार चोर है’ का नारा उस तरह घातक न सिद्ध हो जाए जैसा कि गुजरात में सोनिया गांधी का वह बयान साबित हुआ था जिसने में उन्होंने मोदी को ‘खून का सौदागर’ बताया था। इसका फायदा मोदी को मिला था।

लेखक लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.