शैलेश चुर्वेदी
वो थक गए थे. वो ‘आउट ऑफ गैस’ थे. वही, जिन्होंने महज चार दिन पहले 35 गेंद में 68 रन की पारी खेली थी. वही, जिन्होंने महज छह दिन पहले 39 गेंद में 69 रन बनाए थे. वही, जिन्होंने अपने पिछले टेस्ट की एक पारी में 69 रन बनाए थे. वही एबी डिविलियर्स थक गए हैं! वही डिविलियर्स जिन्होंने आईपीएल में सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ एक कैच लिया था. उसे स्पाइडरमैन, सुपरमैन या जो मर्जी कह लीजिए. वो कैच इंसान जैसा तो नहीं हो सकता था. वही डिविलियर्स थक गए थे!
14 साल भारतीय नजरिए से बहुत बड़ा दौर है. 14 साल को वनवास के लिए जाना जाता है. लेकिन क्रिकेट या किसी भी खेल में यह इतना ज्यादा वक्त भी नहीं होता. आखिर सचिन तो करीब चौथाई सदी तक खेले थे. विराट कोहली को भी करीब एक दशक से खेल ही रहे हैं. कहां लगता है कि बहुत समय हो गया! या यूं कहें कि जब खिलाड़ी अपने शिखर पर होता है, तो वक्त का पता ही नहीं चलता. आप सिर्फ उस माहौल में बने रहना चाहते हैं. तभी जब अचानक घोषणा होती है कि मैं अब क्रिकेट नहीं खेलूंगा, तो झटका लगता है.
कुल 420 मैच. 20 हजार से ज्यादा रन. टेस्ट में पचास से ज्यादा औसत के साथ 8765 रन. वनडे में 53 से ज्यादा औसत के साथ करीब साढ़े नौ हजार रन. किसी करियर को इससे ज्यादा और क्या चाहिए. उसके साथ वो 360 डिग्री का कमाल, जो डिविलियर्स के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा. जिसे ईजाद करने का श्रेय डिविलियर्स को दिया जा सकता है. वो 360 डिग्री क्रिकेटर किसी दिन अचानक उठेगा और कहेगा कि बस, बहुत हो गया… तो झटका ही लगेगा.
डिविलियर्स कुछ भी हो सकते थे. उनके बारे में बड़े मिथ हैं कि वो रग्बी से लेकर बैडमिंटन और हॉकी से लेकर गॉल्फ, टेनिस, फुटबॉल सब खेलते थे. भले ही वो मिथ हों. इनमें से कई बातें गलत हैं. लेकिन अगर उनके बारे में किए गए गलत दावों को सही माना जाता रहा, तो भी उससे समझा जा सकता है कि उनसे लोगों को क्या उम्मीद थी. तमाम बातों को उन्होंने अपनी किताब में साफ किया है और बताया है कि वो बातें सच नहीं है. लेकिन यह जरूर सच लगता है कि वो कुछ भी हो सकते थे.
कितना आसान लगता है ना! याद कीजिए, एडम गिलक्रिस्ट ने एक कैच छोड़ा था. तभी उन्हें लगा कि अब वो क्रिकेट का वैसे मजा नहीं ले रहे हैं, जैसे पहले लिया करते थे. उन्होंने रिटायर होने का फैसला कर लिया. एबी डिविलियर्स को लगा कि अब वो ‘आउट ऑफ गैस’ हो गए थे. वो थक गए हैं, इसलिए रिटायर होने का फैसला कर लिया.
वाकई बहुत आसान लगता है. लेकिन क्या ये इतना ही आसान है? डिविलियर्स की याददाश्त जितना पीछे जाती हो, उन्हें क्रिकेट ही याद आता होगा. वो क्रिकेट से पीछे नहीं जा सकते. जितने भी क्रिकेटर या खिलाड़ी हैं, उन्हें बचपन की पहली यादों में एक अपने खेल से जुड़ी होती है. उन यादों के साथ जीते हैं. उस सपने के साथ बड़े होते हैं. उन्हें पूरा करते हैं. उस दौरान सिर्फ और सिर्फ खेल के साथ ही जिंदगी बीतती है. खेल, जिंदगी का हिस्सा हो जाता है और जिंदगी, खेल का. फिर एक दिन अचानक डिविलियर्स की तरह लगता है कि वो थक गए हैं.
डिविलियर्स कोई संजय मांजरेकर भी नहीं हैं, जिन्होंने अपनी किताब में क्रिकेट को फेम पाने का जरिया बताया. बताया कि वो सिर्फ फेम के लिए क्रिकेट से जुड़े. वो सचिन तेंदुलकर भी नहीं हैं, जिनके लिए रिटायरमेंट का अगला दिन फरवरी-मार्च की किसी अनमनी सी दोपहर जैसा था, जहां आप कुछ नहीं करना चाहते. वो अलग संस्कृति से हैं. वो दुनिया भारतीय मानसिकता से अलग है. लेकिन खेल को लेकर जुनून अलग कैसे हो सकता है.
जब डिविलियर्स तय कर रहे होंगे कि अब उन्हें क्रिकेट को अलविदा कहना है, तो क्या चल रहा होगा दिमाग में? क्या उन्हें 16 गेंद में अर्ध शतक की वो वनडे पारी याद आई होगी, जो वर्ल्ड रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज है? क्या 31 गेंद में टेस्ट शतक और 64 गेंद में 150 रन की पारी याद आई होगी? क्या उन्हें याद आया होगा कि महज तीन साल पहले उन्होंने लगातार दो बार क्रिकेटर ऑफ द ईयर अवॉर्ड लिया था?
यकीनन याद आया होगा. तभी उन्होंने कहा भी कि फैसला बहुत मुश्किल था. फैसले तक पहुंचना आसान नहीं था. लेकिन मैं रिटायर होना चाहता था, जब अच्छा खेल रहा हूं. याद होगा कि गावस्कर अक्सर विजय मर्चेंट के हवाले ये यह बात कहा करते हैं कि रिटायर तब हो, जब लोग पूछें क्यों. तब नहीं, जब लोग पूछें, क्यों नहीं. विजय मर्चेंट ने 1936 में पहले इंग्लैंड दौरे पर पैट्सी हेंड्रेन की बात को सामने रखा था. उन्होंने कहा था, ‘हेंड्रेन ने कहा था कि हर खिलाड़ी को तब रिटायर होना चाहिए, जब वह अच्छा खेल सकता हो. लोग पूछें कि अभी क्यों. ये न पूछें कि अभी क्यों नहीं.’
मर्चेंट ने इस बात का पालन किया. मर्चेंट की बात का पालन सुनील गावस्कर ने किया. इसी को डिविलियर्स ने अपनी जिंदगी में उतारा है. लेकिन जो खिलाड़ी नहीं हैं, वो समझ नहीं सकते कि फैसला कितना मुश्किल है. आखिर हर रोज पिछले दिन से बेहतर होने की कोशिश करने वाला खिलाड़ी कैसे तय करेगा कि यही दिन उसका बेस्ट था. इसके बाद और ऊपर जाने की गुंजाइश नहीं है. इसलिए रिटायर हो जाना चाहिए.
ऐसा नहीं किया जा सकता. इसलिए जब-जब कोई गावस्कर, कोई गिलक्रिस्ट, कोई डिविलियर्स रिटायर हों, तो समझना चाहिए कि वो वाकई सुपरमैन हैं. वो अपना खेल जीवन तय कर पाने की हालत में हैं. पौराणिक कथाओं की भाषा में कहा जाए तो वो भीष्म जैसे हैं, जिन्हें अपने खेल जीवन को तय करने का अधिकार मिला है.
यकीनन हमें डिविलियर्स जैसा खिलाड़ी अब कभी नहीं दिखेगा. यकीनन, वो शॉट्स नहीं दिखेंगे, वो कैच नहीं दिखेंगे, वो एनर्जी नहीं दिखेगी, जिसे देखकर सिर्फ अविश्वास ही किया जा सकता था. जिसे देखकर सिर्फ यही सोचा जा सकता था कि आंखें जो देख रही हैं, क्या वाकई वो सच है? वो अब कभी नहीं दिखेगा, क्योंकि सुपरमैन थक गया है. मिस्टर 360 डिग्री ने तय किया कि उनका 360 डिग्री का सफर पूरा हो गया है. थैंक्यू एबी… हमें वो मौका देने के लिए, जिसमें हमने क्रिकेट में बैटिंग का ए से जेड तक सब देखा… तुम्हारी बदौलत.. थैंक्यू.