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अंबेडकर को संविधान निर्माता कहना , संविधान के साथ छल और कपट है

दयानंद पांडेय

यह छुपी बात तो है नहीं कि मैं निजी तौर पर अंबेडकर के निंदकों में से हूं। सर्वदा से रहा हूं। ख़ास कर उन की जातीय नफरत के मद्दे नज़र। जैसा कि अंबेडकर कहते रहे हैं कि समाज में समता मार्क्स की हिंसा के बिना भी लाई जा सकती है , बुद्ध की तरह। इसी तरह अंबेडकर खुद भी जातीय नफरत के मुर्दे उखाड़े बिना भी भेदभाव खत्म करने की बात कर सकते थे। लेकिन उन्हों ने नफरत की नागफनी बोई। अपने कुछ ख़ास हितों के लिए। अपनी दुकान सजाने के लिए। इसी लिए मैं अंबेडकर का निंदक हूं। परम निंदक। खुल्ल्मखुल्ला।

लेकिन आप की तरह किसी गुलाम वैचारिकी का बंधुआ नहीं हूं , इस लिए अंबेडकर की योग्यता का प्रशंसक भी हूं। अंबेडकर का कानूनी ज्ञान गांधी , नेहरू , पटेल से भी बेहतर था। इस से कब इंकार है भला। आज़ादी के लिए लंदन में चार बार गोलमेज कांफ्रेंस हुई। जिन में गांधी दो बार गए। नेहरू एक बार। लेकिन अंबेडकर चारो बार गए। गांधी ने हर बार विशेष रूप से अंबेडकर को भेजा। यह अंबेडकर की योग्यता ही थी कि गांधी को उन्हें हर बार भेजना पड़ा। गांधी ने बहुत विरोध के बावजूद अंबेडकर को संविधान सभा में ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन बनवाया। गांधी ने ही अंबेडकर को नेहरू मंत्रिमंडल में क़ानून मंत्री बनवाया। जब कि नेहरू बिलकुल नहीं चाहते थे कि अंबेडकर संविधान सभा या मंत्रिमंडल में रहें। अंबेडकर की जातीय नफ़रत और जहर से वाकिफ थे नेहरू। पर गांधी के दबाव में नेहरू को झुकना पड़ा। एक तरह से अंबेडकर को पूरी राजनीतिक स्पेस गांधी ने दी। पर अंबेडकर ने क्या किया ? गांधी का निरंतर अपमान किया। जब-तब लांछित किया। तब जब कि लिख कर रख लीजिए कि गांधी न होते तो अंबेडकर भी नहीं होते। कोई जानता भी नहीं अंबेडकर को। अंबेडकर से भी बड़े-बड़े क़ानूनदां तब भी थे , अब भी हैं। एक से एक मदनमोहन मालवीय थे , एक से एक राजेंद्र प्रसाद थे। तब भी। जिन्हों ने एक से एक नायाब काम किए हैं। अंबेडकर इन का नाखून भी नहीं छू पाते। लेकिन यह गांधी थे जिन्हों ने अंबेडकर के रूप में दलित शक्ति को आगे किया। नहीं अंबेडकर तो अंगरेजों के पिट्ठू रहे थे। कभी जेल गए हों , लाठी खाई हो ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने में तो बताइएगा।

नेहरू नहीं चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनें। नेहरू सी राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनते देखना चाहते थे। लेकिन गांधी का दबाव यहां भी काम आया। संविधान सभा के अध्यक्ष थे राजेंद्र प्रसाद। तीन सौ से अधिक लोग थे इस संविधान सभा में। एक से एक प्रकांड विद्वान , एक से एक अनुभवी। राजेंद्र प्रसाद जैसे योग्यतम व्यक्ति अध्यक्ष। तो अकेले अंबेडकर कैसे संविधान निर्माता हो गए ? बाकी लोग क्या घास छील रहे थे। अगर अंबेडकर संविधान निर्माता थे ही तो तमाम हिंदू देवी , देवताओं की फ़ोटो कैसे आने दी उन्हों ने संविधान के पन्नों पर । मैं फिर जोर दे कर बड़ी जोर से कहना चाहता हूं कि अंबेडकर संविधान निर्माता नहीं हैं। अंबेडकर को संविधान निर्माता कहना , संविधान के साथ छल और कपट है। पाखंड है। चार सौ बीसी है। इस मामले में भी मैं अंबेडकर का परम निंदक हूं। लेकिन दलित वोट की गोलबंदी के लिए कांग्रेस ने यह छल किया और प्रपंच रचा कि अंबेडकर संविधान निर्माता। नरेंद्र मोदी और भाजपा ने भी अंबेडकर के संविधान निर्माता का प्रपंच और पाखंड अपने राजनीतिक हितों और व्यापक हिंदू गोलबंदी खातिर जारी रखा है। जब कि वामपंथियों , अंबेडकरवादियों और मुस्लिम समाज ने मिल कर जय भीम , जय मीम की नफरत और जहर भरी मुहिम अपने हितों खातिर चला रखी है। तो सब के अपने-अपने हित और अपने-अपने पाखंड हैं ,अपने-अपने अंबेडकर हैं। लेकिन मुझे इस पाखंड और इन पाखंडियों से क्या लेना-देना भला।

यह तो आप ने पूछा था कि अंबेडकर ने मार्क्स और बुद्ध के बारे में क्या कहा है , तो आप को बताया था। अब आप को , आप के वामपंथी पाखंड को , अंबेडकर की यह बात पसंद नहीं आई , रास नहीं आई तो इस के लिए मैं तो दोषी नहीं ही हूं। अच्छा , आप बार-बार क्यों भूल जाते हैं कि आप का विद्यार्थी नहीं हूं मैं। जो अपने डिक्टेशन में बांध-बांध लेना चाहते हैं आप। जानिए कि सिर्फ लेखक और पत्रकार ही नहीं , कई विश्वविद्यालयों का परीक्षक हूं। प्रश्नपत्र बनाता हूं , कापियां भी जांचता हूं। वाइबा लेता हूं। आप जैसे लोगों की नौकरियों के इंटरव्यू लेता हूं। आप जैसे बहुतेरे लोगों ने मेरे उपन्यासों पर पी एच डी की है। बहुत से लोग कर रहे हैं। बंद कुएं में नहीं रहता। वैचारिक गुलामी के खूंटे में बंध कर कुछ निश्चित शब्दावलियों को ताश की तरह फेंट कर विमर्श नहीं होता। अंबेडकर अब अगर कम्युनिस्ट पार्टी को बंच आफ ब्राह्मण ब्वायज कह गए हैं तो इस में मैं भला क्या कर सकता हूं। मार्क्स और उन के दास कैपिटल में अंबेडकर हिंसा और तानाशाही का तत्व खोज कर स्थापित कर गए हैं तो क्या गलत कर गए हैं , आप ही बता दीजिए। कहा न , अभी दूध-वूध पीजिए। फिर-फिर बात कर लेंगे , बुद्ध पर , मार्क्स पर , अंबेडकर पर। और भी विषयों पर बात करते रहेंगे।
(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)