कन्हैया भेलारी
आखिर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में ऐसी कौन सी बात है जो बिहार के सीएम नीतीश कुमार को दिखावा लगती है. 2015 में आज ही के दिन विश्व में करोड़ों लोगों ने पहली बार योग दिवस मनाया था. पटना के मोइनुल हक स्टेडियम में योग दिवस कार्यक्रम को बीजपी अध्यक्ष अमित शाह लीड कर रहे थे. तब सीएम नीतीश कुमार ने योग दिवस को दिखावा करार देते हुए उनपर तंज कसा था, ‘अपने बेहतर स्वास्थ्य के लिए अमित शाह को काफी पहले ही योगाभ्यास शुरू कर देना चाहिए था.’
टीका और टोपी को तराजू में बराबर तौलने का दावा करने वालेवाले नीतीश कुमार योग के प्रति ऐसा भाव क्यों रखते हैं? आखिर बिहार के सीएम खुलकर क्यों नहीं बताते कि योग दिवस मनाना किस कोण से दिखावा है? निश्चित तौर पर एनडीए का अंग होने के कारण योग दिवस के चौथे साल में नीतीश कुमार स्वयं कुछ नहीं बोले हैं पर जनता दल यूनाइटेड के राज्य अध्यक्ष एवं राज्यसभा के सदस्य वशिष्ठ नारायण सिंह का बयान आया है, ‘योग अच्छा है लेकिन इसका अभ्यास लोगों को अपने घर के अंदर करना चाहिए.’
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम का आयोजन बिहार में सरकार की तरफ किया गया था. युवा, खेल, संस्कृति एवं स्वास्थ्य विभाग ने मिलकर योग दिवस को उल्लासपूर्वक मनवाने की जिम्मेवारी ली थी. अखबारों में बड़े-बड़े सरकारी विज्ञापन देकर योग शिविर में शिरकत करने की लोगों से अपील की गई थी.
साफ है कि योग शिविर कार्यक्रम सरकारी था. फिर इस सरकारी कार्यक्रम का जेडीयू गुट के तमाम मंत्रियों ने क्यों बहिष्कार किया? वैसे बातचीत में एक मंत्री ने फ़र्स्टपोस्ट हिंदी को बताया, ‘हमलोगों ने बॉयकाट नहीं किया बल्कि अपने आप को आयोजन से अलग रखा.’ क्यों रखा? इस प्रश्न का उत्तर मंत्री महोदय टाल गए. तब तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ठीक ही कहते हैं कि आपलोग गुड़ खा रहे हैं पर गुलगुले से परहेज कर रहे हैं? इस सवाल पर मंत्री महोदय ठहाका मारकर हंसे पर जवाब नहीं दिए.
बिहार के सीएम इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में कहा था, ‘योग भारतीय प्रचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है. दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है. मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है. विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है.
स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है. यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति को खोज के विषय में है. हमारी बदलती जीवन शैली में चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है. तो आएं एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं.’
प्रधानमंत्री की इस तर्कसंगत स्पीच से प्रभावित होकर 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों ने 21 जून को योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को मंजुरी दी. नरेंद्र मोदी ने इस प्रस्ताव को 90 दिनों के अंदर पूर्ण बहुमत से पास करा लिया. कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है. विश्व में बहुसंख्य देश के नेताओं को योग दिवस मनाने में कोई खोट या भेदभाव नहीं दिखाई देता है.
सीएम नीतीश कुमार पूर्व में श्री श्री रविशंकर और बाबा रामदेव की योग क्रियाओं की सराहना कर चुके हैं. कई बार पत्रकारों को बताया भी है, ‘मैं श्री श्री रविशंकर की सुदर्शन क्रिया को नियमित रूप से करता हुं. लाभकारी है. तन व मन को स्वस्थ रखने में काफी सहायक है.’ अपनी सरकार के पहले कालखंड में एनडीए सरकार की मुखिया की हैसियत से नीतीश कुमार ने कुछ सालों के लिए बाबा रामदेव को बिहार का अम्बेस्डर इस नियत से नियुक्त किया था कि राज्य के नागरिक योग से रोग को भगाएं और प्रसन्न रहें.
जब वही योग नरेंद्र मोदी की पहल से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में आधिकार रूप से स्वीकार कर लिया गया तो देश के ‘सेकुलर’ मिजाज के राजनीतिज्ञों द्वारा ये घर के चाहरदीवारी के अंदर करने वाला बताने जाने लगा? कारण साफ है. गुजरात दंगों के बाद 16 साल गुजर चुके हैं और नरेंद्र मोदी सारे आरोपों से बाहर आ चुके हैं लेकिन उनकी छवि एक अल्पसंख्यक विरोधी नेता के तौर पर पेश की जाती है. इस समुदाय का वोटबैंक एकमुश्त माना जाता है. 2019 की चुनावी महाभारत नजदीक है. ऐसे समय में उस समुदाय को नाखुश करना नीतीश को अलाभकारी लगा.
बीजेपी के नेता और बिहार सरकार में डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार की सोच से टकराना नहीं चाहते हैं. पर उनकी पार्टी के कई नेता उचित अवसर की तलाश में हैं. एक केंद्रीय राज्य मंत्री ने बताया, ‘हम जनता को ये अवश्य बताएंगे कि रोजा इफ्तारी और नमाज अदा करने के लिए सार्वजनिक जगहों पर जाने में सीएम को कोई परहेज नहीं है लेकिन योग के लिये कदापि पटना के गांधी मैदान या पाटलिपुत्र कॉप्लेक्स नहीं जाएंगे.’
नीतीश कुमार का आंकलन है कि अगर वो योग दिवस के कार्यक्रम में शिरकत करते या उसके पक्ष में बयान देगें तो हो सकता है कि उनकी राजनीतिक सेहत पर खतरे में पड़ जाए.’ लेकिन अपने को योग शिविर से अलग रखकर और कार्यकताओं को अपने सांकेतिक मेसैज के माध्यम से शिरकत करने से वंचित कराकर नीतीश कुमार ने अपने पुराने वक्तव्य- ‘मैं समान भाव से टीका लगाता हुं और टोपी भी पहनता हुं’- को विश्वास और अविश्वास के बीच लाकर खड़ा कर दिया है.