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येदियुरप्पा का सदन में सरेंडर, कुमारस्वामी के लिए भी आसान नहीं होगा फ्लोर टेस्ट

बेंगलुरु/नई दिल्ली। कर्नाटक में कांग्रेस ने जनता दल (सेक्युलर) के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी को सत्ता के शिखर तक पहुंचने से रोक दिया. विजयी रथ पर सवार बीजेपी ने हालांकि सबसे ज्यादा सीटें जीती, लेकिन बहुमत के फेर ने दक्षिण में कमल खिलाने के उसके सपने को ग्रहण लगा दिया. अब जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला है, लेकिन बहुमत के बवंडर से निकलना उनके लिए भी चुनौतीपूर्ण नजर आ रहा है.

दरअसल, 15 मई को नतीजे घोषित होने के बाद से कर्नाटक की जो सियासी सूरत देखने को मिली, वो कुमारस्वामी के लिए मुफीद नजर नहीं आती है. चार दिनों तक बहुमत साबित करने की जुगत में लगी रही बीजेपी से अपने विधायकों को बचाने के लिए कांग्रेस और जेडीएस को पहले बेंगलुरु के रिजॉर्ट का आसरा लेना पड़ा. इसके बाद जब हालात और नाजुक देखे तो विधायकों का जत्था हैदराबाद भेजना पड़ा.

लंच पर किसी को मिलने नहीं दिया

19 मई को बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा को विधानसभा में बहुमत साबित करना था, जिससे ठीक पहले विधानसभा सत्र में हिस्सा लेने के लिए दोनों पार्टियां अपने विधायक लेकर पहुंची. इस दौरान भी कांग्रेस के 78 में से दो विधायक घंटों तक गायब रहे, जो चर्चा का विषय बने. यहां तक कि विधानसभा की कार्यवाही स्थगित होने के बाद कांग्रेस-जेडीएस ने अपने विधायकों को लंच भी विधानसभा परिसर के अंदर ही कराया और किसी भी बीजेपी विधायक या नेता को उनसे मिलने नहीं दिया गया.

दूसरी तरफ बहुमत साबित करने में पिछड़ी बीजेपी सूत्रों ने आजतक को बताया कि कांग्रेस-जेडीएस विधायकों से विधानसभा में लंच के दौरान ही समर्थन के लिए बातचीत होनी थी, क्योंकि वह नतीजे आने के बाद से ही छुपाकर रखे गए थे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.

मंत्री पद पर नाराजगी की आशंका

कुमारस्वामी की मुसीबत का एक बड़ा सबब मंत्रिमंडल भी है. शनिवार (19 मई) शाम राज्यपाल से सरकार बनाने का आमंत्रण मिलने के बाद कांग्रेस और जेडीएस में सरकार का फॉर्मूला भी तय हो गया है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस के खेमे से 20 और जेडीएस के खाते से 13 मंत्री कुमारस्वामी कैबिनेट का हिस्सा होंगे.

कांग्रेस के कुल विधायक 78 हैं, जबकि जेडीएस के 37 और दो अन्यों के साथ एक निर्दलीय विधायक भी है. ऐसे में इस बात की आशंका है कि सदन में बहुमत साबित होने से पहले मंत्री पद को लेकर विधायकों में नाराजगी देखने को मिल सकती है. अगर ऐसा कुछ होता है तो बीजेपी ऐसे हर मौके को भुनाने की पूरी कोशिश कर सकती है और कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर ‘ऑपरेशन लोटस’ दोहराया जा सकता है.

23 मई को शपथग्रहण

हालांकि, अभी तक कैबिनेट को लेकर आधिकारिक तौर पर कोई ऐलान नहीं किया गया है. लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन में कम सीटों वाली जेडीएस को सीएम सीट ऑफर कर चुकी कांग्रेस और जेडीएस के विधायक कैबिनेट गठन के मुद्दे पर कुमारस्वामी का कितना साथ देते हैं. यह शायद दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व की चिंता ही है कि अब तक उन्होंने अपने विधायकों को होटल में रखा हुआ है. बताया जा रहा है कि 23 मई को होने वाले कुमारास्वामी के शपथ ग्रहण के बाद सदन में बहुमत साबित करने तक विधायकों को ‘आजाद’ नहीं किया जाएगा. उधर, कुमारस्वामी ने कहा है कि वह शपथग्रहण के 24 घंटे के अंदर बहुमत साबित कर देंगे.