बिहार में जाति-आधारित सर्वेक्षण की रिपोर्ट आ गई है। इसको लेकर राजनीति भी जारी है। भाजपा इसका समर्थन को कर रही है लेकिन इस पर सवाल भी उठा रही है। बिहार जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट पर बोले बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि इसके पीछे क्या मकसद है ये तो नहीं पता लेकिन ये सच है कि बिहार देश का सबसे गरीब और बीमारू राज्य है। तो, यह जाति-आधारित सर्वेक्षण क्यों? जब पूरा बिहार गरीब और पिछड़ा है तो इसका फायदा क्या होगा? उन्होंने साफ तौर पर कहा कि जाति आधारित सर्वेक्षण कराने वालों ने 35 वर्षों तक बिहार पर शासन किया। तो मुझे लगता है ये एक बार फिर नए फ्रॉड की तैयारी है। बिहार की जनता इस जातीय उन्माद का एक बार फिर जवाब देगी।
सर्वे में क्या आया
जाति आधारित गणना के आंकडों के अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है। आंकड़ों के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है, जिसमें ईबीसी (36 प्रतिशत) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, इसके बाद ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ओबीसी समूह में शामिल यादव समुदाय जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा सुमदाय है, जो प्रदेश की कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत है। सर्वेक्षण के अनुसार, अनुसूचित जाति राज्य की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 22 लाख (1.68 प्रतिशत) है। ‘‘अनारक्षित’’ श्रेणी से संबंधित लोग प्रदेश की कुल आबादी का 15.52 प्रतिशत हैं, जो 1990 के दशक की मंडल लहर तक राजनीति पर हावी रहने वाली ‘‘उच्च जातियों’’ को दर्शाते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में हिंदू समुदाय कुल आबादी का 81.99 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम समुदाय 17.70 प्रतिशत है।