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25 साल, 3 घोटालेबाज और एक ही फॉर्मूले से हुई बैंक लूट, धरी रह गई सिक्युरिटी

नई दिल्ली। जैसे-जैसे पंजाब नेशनल बैंक में घोटाले की परत खुल रही है एक बात से पर्दा उठ राह है कि देश में बैंकिंग व्यवस्था बीते दो-तीन दशकों के दौरान जस का तस बनी हुई है. देश के बैंकों में आज भी उन तरीकों से धोखाझड़ी की जा सकती है जिनका सहारा हर्षद मेहत और केतन पारिख जैसे घोटालेबाज ले चुके हैं. यदि बैंकिग व्यवस्था में इतनी आसानी के साथ सेंधमारी की जा सकती है तो क्यों बड़े-बड़े घोटालों के बावजूद बैंक अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं करते?

पीएनबी घोटाले में प्रमुख आरोपी नीरव मोदी ने एक बार फिर हर्षद मेहता और केतन पारिख जैसे घोटालेबाजों की कारस्तानी को देश के सामने रख दिया है. पहले से ही एनपीए की समस्या से जूझ रहे देश के सरकारी बैंकों में वित्तीय सुरक्षा के नाम पर क्या कदम उठाया गया है वह इस बात से साफ हो जाता है कि बीते दो-तीन दशकों के दौरान एक के बाद एक घोटालेबाज एक ही तरीके से बैंक के प्रमुख द्वार से अंदर आते हैं, बैंकिंग नियमों का सहारा लेते हैं और करोंड़ों की रकम का चूना लगा देते हैं.

दो दशक पहले केतन पारिख और हर्शद मेहता के लिए यह बेहद आसान जुगाड़ था कि अपने किसी बिजनेस डीलिंग में वह बैंक मैनेजर का सहारा लेकर बैंक के पैसे से बिजनेस पेमेंट कर ले. नीरव ने भी इसी तर्ज पर लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग, पे ऑर्डर, बायर क्रेडिट और लेटर ऑफ कंफर्ट जैसे बैंक इंस्ट्रूमेंट्स का सहारा लिया. बैंकिंग नियमों में इन तरीका का प्रावधान दो बैंकों के बीच सीमित समय में किसी ट्रांजैक्शन को प्रभावी करने के लिए है.

2001 में केतन पारिख ने माधवपुरा मर्केंटाइल कुऑपरेटिव बैंक (एमएमसीबी) के ऐसे ही इंटर बैंक पे ऑर्डर का इस्तेमाल बीएसई स्टॉक एक्सचेंज पर भुगतान करने के लिए किया था. पारिख ने भी इन पे ऑर्डर्स के लिए पर्याप्त सिक्योरिटी बैंक के पास नहीं रखी थी और अंत में बैंक को नुकसान उठाना पड़ा था. हालांकि बैंक ने पारीख के पे ऑर्डर को मुनाने से तब मना किया जब पेमेंट के लिए उसके पास पर्याप्त फंड मौजूद नहीं था.

इससे पहले 1992 में हर्षद मेहता ने भी ऐसे सीमित अवधि के बैंक इंस्ट्रूमेंट्स का सहारा लेते हुए शेयर बाजार में तेजी को अंजाम दिया था. मेहता ने अपने साथियों के मिलकर बैंक के इस क्रेडिट का सहारा लेते हुए शेयर्स की खरीद करने के लिए पेमेंट किए. लेकिन जब बैंकों के पास अपना फंड खत्म होने लगा तब उन्होंने मेहता और उसके साथियों से रकम वसूलने का कदम उठाया. हालांकि बैंक के कदम उठाने तक दोनों बैंक की बैंलेंसशीट और शेयर बाजार की चाल कमजोर पड़ गई.

सीबीआई द्वारा पीएनबी मामले में दर्ज एफआईआर के मुताबिक मौजूदा धोखेधड़ी में भी इसी फॉर्मूले का सहारा लिया गया है. नीरव मोदी की कंपनियों को जारी अंडरटेकिंग के लिए बैंक में मार्जिन मनी नहीं जमा कराई गई थी. लिहाजा मोदी द्वारा निकाला गया सारा पैसा सीधे बैंक के खाते में दर्ज हो गया. क्या एनपीए की समस्या से जूझ रहे बैंकों को पीएनबी घोटाले के बाद अपनी वित्तीय सुरक्षा को नए सिरे से मजबूत करने की जरूरत नहीं है या फिर उन्हें फिर किसी घोटालेबाज की इंतजार रहेगा जो सरकारी खजाने पर डाका डालने का काम करेगा.