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सबा नकवी और ट्रिब्यून वालो, जब से तुम पैदा हुए हिन्दुओं का इतिहास तभी से शुरू नहीं होता

अनुपम कुमार सिंह

आजकल वे लोग भी राम और रामायण के विशेषज्ञ बन गए हैं, जिन्हें शायद इससे पहले राम के अस्तित्व पर ही विश्वास नहीं था। आज कुछ पत्रकार अपने वरिष्ठता के दौर में श्रीराम के बारे में गोस्वामी तुलसीदास से भी अधिक ज्ञान होने का दिखावा कर रहे हैं। इसी क्रम में ‘ट्रिब्यून इंडिया’ के लिए लिखे गए सबा नक़वी का एक लेख भी आया है जिसमें कहा गया है कि ‘जय श्री राम’ से मर्दवाद की बू आती है लेकिन ‘जय सिया राम’ एक अच्छा नारा था। नक़वी का मानना है कि ‘जय सिया राम’ से एक स्त्रीवाद की विनीत झलक आती थी, जो अच्छा था।

नक़वी ने इसके बाद ‘जय श्री राम’ का इतिहास समझाना शुरू किया है और उसे बड़ी चालाकी से लालकृष्ण आडवाणी के मंदिर आंदोलन से जोड़ कर बात की शुरुआत की है। सबा नक़वी के खोखले इतिहास-ज्ञान की बखिया उधेड़ते हुए हम आगे बढ़ेंगे लेकिन उससे पहले जरा उनके शब्द-ज्ञान पर बात करते हैं। असल में ‘जय श्री राम’ (जो कि नक़वी के अनुसार मर्दवादी है) और ‘जय सिया राम’ (जो नक़वी के अनुसार स्त्रीवादी है) के बीच बस एक शब्द का फ़र्क़ है। एक नारे में ‘श्री’ है तो दूसरे में उसकी जगह ‘सिया’ है। शायद नक़वी को पता नहीं है कि ये दोनों शब्द इंटरचेंजेबल हैं।

Saba Naqvi

@_sabanaqvi

My column on the transformation from Ram Ram and the feminine first Siya Ram to the masculine aggressive Jai SHRI RAM…. https://www.tribuneindia.com/news/columns/mocking-bird/794966.html 

From Siya Ram to Jai Shri Ram

Is “Jai Shri Ram” the emblematic slogan of New India? There is the old and very pleasant greeting in the Hindi heartland that goes “Ram-Ram” and there was a time when “Jai Siya Ram” was invoked in…

tribuneindia.com

Nupur J Sharma

@UnSubtleDesi

Jai Shree Ram, Khaala

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हिन्दू धर्म ग्रंथों में और संस्कृत में लक्ष्मी को वैभव, धन और समृद्धि की देवी माना गया है। जैसा कि रामचरितमानस में वर्णन है, सीता भी लक्ष्मी की ही रूप थीं और जिस तरह भगवान विष्णु ने राम के रूप में धरती पर अवतार लिया था, लक्ष्मी ने सीता के रूप में धरती पर क़दम रखा। लक्ष्मी के कई नामों से एक नाम श्री भी है। इसीलिए ‘जय श्री राम’ कहा जाए या फिर ‘जय सिया राम’- दोनों का अर्थ एक ही निकलता है। दोनों में ही सीता और राम की जय कही गई है। सीता को ‘सिया’ कहा जाए या फिर ‘श्री’- दोनों एक ही बात है।

भगवान विष्णु के कई नामों में से एक श्रीपति भी है। रामचरितमानस के बालकाण्ड में भगवान विष्णु के बारे में कहा गया है– “दूषन रहित सकल गुन रासी। श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी॥ ” जैसा कि आप देख सकते हैं, इस चौपाई में विष्णु को ‘श्रीपति’ कहा गया है, अर्थात श्री के पति। यहाँ श्री और लक्ष्मी पर्यायवाची हैं। ठीक इसी तरह, ‘जय श्री राम’ में भी राम से पहले श्री यानी सीता का नाम लिया गया है। स्त्री को सम्मान देते हुए सीता का नाम पहले रखा गया है और सबा नक़वी को इससे मर्दवाद की बू आ रही है। इन्होने असल में न तो कभी रामायण के पन्ने पलटे हैं, न भारत के इतिहास की जानकारी है लेकिन ज्ञान देने में ये सबसे आगे रहतीं हैं।

आख़िर जिस स्लोगन में स्त्री को सम्मान दिया गया है, उसे मर्दवाद का चेहरा बना कर पेश करने वाली नक़वी रामायण क्यों नहीं पढ़तीं? अगर पढ़तीं नहीं तो इसके बारे में लिखती ही क्यों हैं? ‘श्री’ के रूप में सीता आक्रामकता का प्रतीक हो जाती है, वही ‘सिया’ के रूप में वो अच्छी लगने लगती है। ये कैसी अजीब बात है? क्या अब सबा नक़वी और ट्रिब्यून इंडिया यह तय करेगा कि हिन्दू अपने धर्मग्रंथों में से कौन सी चीजों को आत्मसात करें, किन चीजों का प्रयोग करें और किन चीजों को नज़रअंदाज़ करें? सबा नक़वी अब बताएँगी कि शिव को ‘महादेव’ कहना है या फिर ‘भोलेनाथ’?

सबा नक़वी हिन्दुओं को (राम जिनके आराध्य हैं) और भारत को (जहाँ की धरती के कण-कण में राम हैं) को इस बात की सलाह दे रही है कि राम का नाम कैसे और किस रूप में लेना है? क्या अब हिन्दू ‘कुरान शरीफ’ पढ़ कर सीखेंगे कि सीता और राम को किन नामों से पुकारा जाए? इनके हिसाब से ‘जय श्री राम’ नया स्लोगन है और इसके नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। वहीं ‘अल्लाहु अकबर’ के नाम पर हिंसा जायज है क्योंकि वह डेढ़ हज़ार वर्ष पुराना स्लोगन है।

अब सबा नक़वी के इतिहास-ज्ञान की ओर बढ़ते हैं और उससे पहले आपको बता देते हैं कि उन्होंने ‘जय श्री राम’ के इतिहास के बारे में क्या लिखा है? वह बात बाबरी मस्जिद से शुरू करती हैं। 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के निर्माण की माँग करते हुए सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की थी। रास्ते में आडवाणी को तो गिरफ़्तार कर लिया गया लेकिन कार्यकर्ता आगे बढ़ते हुए अयोध्या पहुँचने में सफल रहे। सबा नक़वी लिखती हैं कि इसी आंदोलन के दौरान ‘जय श्री राम’ एक उत्तेजक और आक्रामक नारा बन कर उभरा। इसके बाद नक़वी ने 1998 के चुनाव प्रचार अभियान कवर करने की बात करते हुए ख़ुद की वरिष्ठता दिखाई है।

सबा नक़वी ने दावा किया है कि पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजेपयी ने सूरत में एक भाजपा कार्यकर्ता द्वारा ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के बाद उसे पलट कर कहा था- “बोलते रहो जय श्री राम, और करो मत कोई काम“। इसके बाद नक़वी ने यह भी दावा किया है कि वाजपेयी भाजपा के ‘हिन्दू फर्स्ट’ वाली नीति से ख़ुश नहीं थे। ये तो रही दावों की बात। ये वही सबा नक़वी हैं, जिन्होंने एक बार दावा किया था कि ‘प्राइवेट बातचीत के दौरान’ वाजपेयी राम मंदिर आंदोलन के दौरान अपनाए गए तरीकों पर आपत्ति जताते थे। लेकिन, सबा नक़वी को यह जानना चाहिए कि वाजपेयी राम मंदिर के सबसे बड़े पैरवीकारों में से एक थे। बाबरी विध्वंस से एक दिन पहले लखनऊ में दिए गए भाषण में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था:

“वहाँ नुकीले पत्थर निकले हैं। उन पर तो कोई नहीं बैठ सकता तो ज़मीन को समतल करना पड़ेगा, बैठने लायक करना पड़ेगा। यज्ञ का आयोजन होगा तो कुछ निर्माण भी होगा। कम से कम वेदी तो बनेगी। मैं नहीं जानता कल वहाँ क्या होगा?”

आज वाजपेयी को राम मंदिर के विरोधी बताने वाली सबा नक़वी कल को ये भी कह सकती हैं कि उन्हें भगवा रंग पसंद नहीं था। इसके बाद उन्हें वाजपेयी की कविता ‘गगन में लहरता है भगवा हमारा‘ सुनानी पड़ सकती हैं। माफ़ कीजिए, लेकिन दशकों तक भाजपा को काफ़ी नजदीक से कवर करने के बाद और कई लेख, कवर स्टोरी और पुस्तक लिखने के बाद भी अगर आप इस तरह की भ्रामक बातें करती हैं तो आपके इस मक्कारी भरे पत्रकारिता करियर को धिक्कार है। जहाँ सोशल मीडिया पर वाजपेयी के सार्वजनिक भाषण, कविताएँ और इंटरव्यू पड़े हों, वहाँ उनके ‘प्राइवेट कंवर्शेसन’ का ज़िक्र कर एक अलग तरह का नैरेटिव तैयार करना असहिष्णुता गिरोह के कुप्रयासों का हिस्सा है।

इसके बाद लेख में एक घुमाव आता है। यह घुमाव वहीं पहुँचता है, जहाँ इसके पहुँचने की आशंका थी। झारखण्ड में एक चोर की मॉब लिंचिंग की बात की जाती है, टैक्सी ड्राइवर को जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवाने की बात की जाती है और इस तरह की कुछ घटनाओं को गिना कर ‘जय श्री राम’ कितना उत्तेजक, आक्रामक और हिंसक है- इस पर प्रकाश डाला गया है। हालाँकि, सबा नक़वी ने कई ऐसी घटनाओं पर जानबूझ कर चुप्पी बनाए रखी है, जिनमें जबरन मुस्लिमों के ‘जय श्री राम’ बुलवाए जाने वाले कई आरोप ग़लत निकले। गुरुग्राम में यह आरोप ग़लत निकला। एक मौलवी का आरोप ग़लत निकला। एक अन्य मामले में तो एक मुस्लिम ने ही जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवाया।

चलिए, कुछ मिनट तक सबा नक़वी के इतिहास ज्ञान को दरकिनार कर यह मान ही लेते हैं कि ‘जय श्री राम’ का जन्म आज और इसी वक़्त हुआ है। लेकिन क्या अगर यह नया स्लोगन है तो ‘अल्लाहु अकबर’ कह कर कई जानें लेने वाले आतंकी सही साबित हो जाते हैं? 2-4 शरारती तत्व अगर किसी-किसी मामले में जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवा भी रहे हैं तो इस हिसाब से ‘अल्लाहु अकबर’ को तो प्रतिबंधित ही कर देना चाहिए क्योंकि कश्मीर से लेकर लंदन तक, इस नारे का आतंकियों द्वारा प्रयोग कर कई जानें ली गईं। ज्यादा पीछे नहीं जाते हैं, अगर ‘जय श्री राम’ आडवाणी की वजह से प्रचलित हुआ तो फिर 1987 में आई रामानंद सागर की ‘रामायण’में हनुमान बार-बार इसे दुहराते क्यों दिखते हैं?

क्या अब ये छद्म बुद्धिजीवी तय करेंगे कि हम सीता को किस नाम से पुकारें, राम का नाम कैसे भजें और वाजपेयी की ‘निजी बातचीत’ (जो सिर्फ़ सबा नक़वी ने देखी व सुनी है) के आधार पर उनकी कैसी इमेज बनाएँ? ‘अल्लाहु अकबर’ लाख बार मरने-कटने, ख़ून बहाने, मारने, आत्मघाती हमला करने और जिहाद छेड़ने के लिए प्रयोग किया जाए लेकिन फिर भी यह नारा पवित्र है लेकिन कुछेक शरारती तत्वों की वजह से ‘जय श्री राम’ उत्तेजक, आक्रामक, मर्दवादी और हिंसक हो जाता है? सबा नक़वी को रामायण पढ़ने की ज़रूरत है, रामकथा सुनने की ज़रूरत है और वाजपेयी की कविताएँ सुनने की ज़रूरत है।

अंत में, सबा नक़वी को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित राम की यह स्तुति पढ़नी चाहिए, जिसकी शुरुआत कुछ यूँ होती है- “श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।” यहाँ राम के नाम के आगे ‘श्री’ लगाया गया है, जिसका यह कतई अर्थ नहीं है कि तुलसीदास मर्दवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। ये आज से डेढ़ हज़ार वर्ष पूर्व लिखा गया था। लेकिन नहीं, ‘जय श्री राम’ तो 1990 में लोकप्रिय हुआ।

अनुपम कुमार सिंह

चम्पारण से. हमेशा राईट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.