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मसूरीः स्थानीय व्यापारियों ने कश्मीरियों से कहा निकल जाएं

मसूरी। मसूरी व्यापार कर रहे कश्मीरी व्यापारियों के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है. स्थानीय व्यापारियों ने उन्हें बाहर जाने को कह दिया है. मसूरी ट्रेडर्स एंड वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि कश्मीरी व्यापारियों को 11 माह के अनुबंध पर किराए पर दुकान दिया गया था. यह 28 फरवरी को खत्म होने जा रहा है. अब उन्हें वापस जाना होगा.

अब तक एसोसिएशन ने कश्मीरियों को कोई लिखित नोटिस नहीं दिया है. केवल डेडलाइन के बारे में मौखिक रूप से उन्हें बताया है. एसोसिएशन के अध्यक्ष रजत अग्रवाल ने कहा कि मसूरी के स्थानीय व्यापारी चाहते हैं कि कश्मीरी व्यापारी ये जगह छोड़ दें. वह इशारों में सांप्रदायिक असंतोष की बात भी कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक इसके बाद कश्मीरी व्यापारियों ने स्थानीय बीजेपी एमएलए गणेश जोशी से मदद की गुहार लगाई है. रजत अग्रवाल ने बताया कि मसूरी जैसे छोटी जगह पर कश्मीर के 19 व्यापारियों को शॉल, कपड़े आदि बेचने की अनुमति दी थी. यह बहुत बड़ी संख्या है. इस विषय पर बात करने के लिए दोनों तरफ के व्यापारियों की 26 फरवरी को बैठक बुलाई गई है.

उनके मुताबिक मैसूर में पिछले पांच दशक के सात कश्मीरी परिवार यहां व्यापार कर रहे हैं. वह यहां के हिस्सा हो चुके हैं. उनसे किसी तरह के सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने की बात नहीं सोची जा सकती है. लेकिन इन व्यापारियों के आने से इसका खतरा है.

कश्मीरी व्यापारियों ने पूछा क्या वे इस देश के नागरिक नहीं हैं 

कश्मीरी व्यापारियों पर तनाव पिछले साल 18 जून से चल रहा है. उस वक्त चैंपियंस ट्रॉफी क्रिकेट फाइनल के बाद भारत पाकिस्तान से हार गया था. स्थानीय लोगों ने दावा किया कि ‘मुस्लिम युवाओं’ ने ‘पाकिस्तान जिंदबाद’ के नारे लगाए थे. उस वक्त भी इन कश्मीरी व्यापारियों के साथ बैठक की थी. इस संदर्भ में बात की थी.

हालांकि इस मामले में मैसूर की पुलिस अलग बात कर रही है. उसने कहा है कि जून में घटी इस घटना में स्थानीय कश्मीरी व्यारियों का हाथ नहीं था. यूपी सहारनपुर के रहनेवाले दो युवकों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था. उस वक्त जम्मू-कश्मीर की सरकार ने उत्तराखंड की सरकार से संपर्क साध कर मामले को सुलझाया था.

बीते 21 फरवरी को कश्मीरी व्यापारी फैयाज अहमद मलिक ने स्थानीय बीजेपी विधायक और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई थी. पत्र में कहा था कि क्या वे लोग इस देश के नागिरक नहीं हैं? अगर हैं तो क्यों हमें भगाया जा रहा है?