ये संसार भर की युवा अवस्था के दौर से गुजर रही लड़कियों का हकीकत है. चाहे वो हिंदुस्तान के सुदूर ग्रामीण इलाके में रहने वाली हों या फिर लंदन के आधुनिकतम इलाके में रहनी वाली लड़की हो.
भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमि से आने के बाद भी इन सबके बीच एक बात कॉमन होती है. युवावस्था में प्रवेश के दौरान इन युवतियों में यौन संबंधों को लेकर ये धारणा बनने लगती है कि सेक्स के दौरान दर्द होगा. ये बात कुछ तो यौन एजुकेशन से समझ पाती हैं व जहां ऐसी एजुकेशन की व्यवस्था नहीं है, वहां आस पड़ोस में रहने वाली दीदी, भाभी व मां के जरिए.
यौन संबंध के दौरान खून निकल सकता है. यह भी मन में भय बना रहता था कि सेक्शुअल ट्रांसमिशन इन्फेक्शन से भी दो चार होना पड़ सकता है. इतना ही नहीं, गर्भवती होने पर युवतियों को प्रसव पीड़ा से भी जूझना पड़ता है. हलांकि प्रसव के दौरान कई युवतियों के वीडियो हमने देखे हैं, जिनमें वो बिलकुल नहीं चीख रही होती हैं. लेकिन इन सबको लेकर आशंकाएं कम नहीं होती हैं.
दूसरी तरफ लड़कों के साथ सेक्स को लेकर ऐसी बातें नहीं होती हैं. वो उत्तेजना व ऑर्गेजम की बात करते हैं. वहीं लड़कियों के मन में यौन संबंधों को लेकर कई तरह के वहम व भय बैठ जाते हैं. इसी वजह से यौन संबंध एक पक्ष के लिए आशंकित करने वाला होता है. महिलाएं इस बात को मानकर चलती हैं कि दर्द होना ही है. ऐसा नहीं है कि इस दर्द का भय उन्हें केवल पहले सेक्स में होता है.
पीरियड के दौरान सेक्स सही या गलत?
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वर्ष की जेस कहती हैं कि उन्हें नहीं पता है कि सेक्स में पीड़ा और उदासी से कैसे बचा जाए
. उन्होंने कहा, ‘मैंने सेक्स के बारे में जो कुछ सुना था उससे
बहुत ज्यादा तनाव में थी
. मैं
बहुत ज्यादा सतर्क थी
. मैं ऑर्गेजम को लेकर कई तरह के मिथों से ग्रस्त थी
. मुझे जो कुछ भी
बोला गया था उनसे यौन संबंध के दौरान भी मुक्त नहीं हो पाई थी
. मुझसे
बोला गया था कि सेक्स के दौरान दर्द हो सकता है
वमुझे इसे न चाहते हुए भी स्वीकार करना पड़ा था
.‘
उन्होंने कहा, ‘मैंने एक सतर्क व शिष्ट पार्टनर को चुना. इसके साथ ही मैंने शारीरिक संबंधों को लेकर खुद ही कई चीजों की पड़ताल की. अगर आपका पार्टनर अच्छा है तो दर्द जैसी बात बिल्कुल झूठ होती है.‘
हनाह विटन यूट्यूब चैनल पर सेक्स से जुड़़ी सभी चीजों पर बात करती हैं. यौन विषय में दर्द को लेकर उनका कहना है, ‘कई स्त्रियों को सेक्स के दौरान दर्द का सामना इसलिए नहीं करना पड़ता है कि सेक्स में दर्द निहित है. बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें नहीं पता है कि अच्छा यौन संबंध कैसे बनता है.‘
जाहिर है सेक्स में कई स्थितियां दर्दनाक होती हैं. अगर शारीरिक संबंध के दौरान आपको दर्द का सामना करना पड़ता है तो यह गंभीर समस्या है. रॉयल कॉलेज ऑफ आब्स्टिट्रिशन एंड गाइनकॉलजिस्ट (आरसीओजी) की प्रवक्ता स्वाति झा कहती हैं, ‘वजाइना में दर्द खरोंच वएसटीआई के कारण हो सकता है. कई बार लेटेक्स कॉन्डम व साबुन के कारण भी जलन होती है.‘ स्वाति झा का कहना है कि दर्द हो तो सेक्शुअल हेल्थ क्लिनिक से संपर्क करना चाहिए.
हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लास्गो के सीनियर रिसर्च फेलो डॉ कृस्टिन मिशेल कहती हैं कि सेक्स में दर्द का संबंध पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक
व सामाजिक कारकों से है
. कृस्टिन ने 2017 में एक स्टडी की थी
व इसमें पाया कि ब्रिटेन में 16 से 24
वर्ष की
आयु वाली लड़कियों में से 10
प्रतिशत लड़कियों को सेक्स में दर्द का सामना करना पड़ता है
.
उन्होंने कहा, ‘अगर एक यंग महिला जैसा सेक्स चाहती है वैसा नहीं कर पाती है या फिर बेमन से करती है या फिर खुलकर बात नहीं कर पाती है कि वो कितना इंजॉय कर पा रही है तो ऐसी स्थिति में सेक्स दर्ददायक होता है. स्त्रियों में एक किस्म का पूर्वाग्रह होता है कि उन्हें सेक्स में इंजॉय का अधिकार बराबरी का नहीं है या कम है. कई महिलाएं तो इसे इस रूप में स्वीकार लेती हैं कि वो महिला है इसलिए सेक्स में दर्द होगा ही.‘
अमरीका में एक स्टडी हुई है व इस स्टडी के रिसर्चर सारा मैकलैंड ने स्त्रियों व पुरुषों से पूछा था कि उनके लिए सेक्स में कम संतुष्टि का मतलब क्या होता है. इस सवाल पर पुरुषों का जवाब था- पार्टनर की उदासीनता व स्त्रियों का जवाब था दर्द.
किम लोलिया को भी ऐसे ही अनुभवों का सामना करना पड़ा था. अब वो स्त्रियों के बीच इस भय वसमस्या को समाप्त करने पर कार्य कर रही हैं.
लोलिया लंदन स्थित सेक्स शिक्षा सर्विस की संस्थापक हैं. इसके साथ ही वो एक औनलाइनमैगजीन भी निकालती हैं. उनका मानना है कि असहज करने वाला सेक्स महत्वपूर्ण नहीं है कि वो शारीरिक समस्या से ही हो. संभव है कि वो चुप रहने के कारण हो.
किम कहती हैं, ‘जब महिलाएं दर्द महसूस करती हैं तो वो चुपचाप सह लेती हैं. वो बोलती नहीं हैं. जब इन्हें दर्द होता है तो लगता है कि इनमें ही कोई दिक्कत है. ये डरी रहती हैं कि कहीं उनका पार्टनर बुरा तो नहीं मान जाएगा. सेक्स के दौरान सब कुछ पारस्परिक, क्रमशः व एक दूसरे को सुनने व महसूस करने लायक बनाना चाहिए.‘