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गुलाम नबी आजाद : कांग्रेस के साथ.साथ यूपीए सरकार के संकटमोचक माने जाते थे, आज हाशिए पर है

गुलाम नबी आजाद ने एक बेहतरीन नेता के तौर पर अपनी अलग पहचान बनाई है। कभी गांधी परिवार के बेहद ही भरोसेमंद माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर से लेकर केंद्र की राजनीति में कई बड़ी जिम्मेदारियों को निभाया है। गुलाम नबी आजाद का जन्म 7 मार्च 1949 को जम्मू कश्मीर के डोडा जिले में हुआ था। गुलाम नबी आजाद की पहचान तेज तर्रार नेताओं में होती है जो कांग्रेस के साथ-साथ यूपीए सरकार के भी संकटमोचक माने जाते थे। शुरुआत से ही कांग्रेस में होने के बावजूद भी उनके रिश्ते दूसरे दलों के नेताओं से भी बेहद सम्माननीय रहे हैं।

गुलाम नबी आजाद जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से बेहद ही प्रभावित थे। उन्होंने 1973 में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। बाद में उन्हें जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था। जम्मू कश्मीर के रहने वाले गुलाम नबी आजाद को महाराष्ट्र की वाशिम लोकसभा सीट से 1980 में उतारा गया था। गुलाम नबी आजाद ने शानदार जीत हासिल की थी। 1982 में इंदिरा गांधी की सरकार में उन्हें कानून न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। बाद में उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी भी उप मंत्री के रूप में दी गई। 1985 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की थी। उन्हें 1986 में गृह राज्य मंत्री बनाया गया था। इसके अलावा वह केंद्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय में भी राज्य मंत्री रहे हैं।

गुलाम नबी आजाद संजय गांधी के साथ-साथ राजीव गांधी के भी बेहद करीबी रहे थे। उन्हें इंदिरा गांधी का भी समय प्राप्त था। 1990 में वह राज्यसभा के लिए चुने गए। 1991 में वह संसदीय कार्य मंत्री बने गुलाम नबी आजाद का कद भारतीय राजनीति में काफी बढ़ता जा रहा था। पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में नबी आजाद ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन और पर्यटन मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। वह 1996 से लेकर 2006 तक भी राज्यसभा के सदस्य रहे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह कई मंत्रालयों के कमेटी में भी शामिल रहे हैं। 2004 में जब मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो उन्हें संसदीय कार्य मंत्री और शहरी विकास मंत्री के रूप में चुना गया। हालांकि 2005 में जम्मू कश्मीर की राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए। उन्हें कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री बनाया गया। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कई बड़े फैसले भी लिए। गुलाम नबी आजाद 2 नवंबर 2005 से लेकर 11 जुलाई 2008 तक जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे।

बाद में एक बार फिर सेवा केंद्र की राजनीति में आ गए। उन्हें 2009 में मनमोहन सिंह की सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। गुलाम नबी आजाद पार्टी का बचाव हो या फिर सरकार का बचाव, मीडिया के समक्ष उनका चेहरा बार-बार दिखाई दे जाता था। 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। वह 8 जून 2014 से लेकर 15 फरवरी 2021 तक राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा से विदाई के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व भावनात्मक भाषण उनके राजनीतिक जीवन के महत्व को दर्शाता है। गुलाम नबी आजाद को भारत सरकार ने 2022 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया है।

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस के संगठन में भी कई महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। वर्तमान में वह पार्टी में हाशिए पर हैं। गुलाम नबी आजाद के समर्थकों का दावा है कि पार्टी में इतने योगदान के बावजूद भी उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए। वह अब नहीं मिल रहा है गुलाम नबी आजाद। उस जी-23 के भी सदस्य हैं जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए भी पार्टी के अंदर कई बड़े बदलाव को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखा था।