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क्या राजस्थान को पहला जाट सीएम देकर इतिहास रचेगी बीजेपी, फैसला आज

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से तीन में जीत दर्ज करने वाली भाजपा ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तो मुख्यमंत्री के नाम का चयन कर लिया लेकिन राजस्थान में पेंच फंसा हुआ है। आज शाम राजस्थान भाजपा विधायक दल की बैठक में इस बात का फैसला किया जायेगा कि प्रदेश का नया मुखिया कौन होगा। चुनाव परिणाम आने के बाद से नामों को लेकर कई अटकलें चल रही हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक बार फिर दर्शा दिया है कि जरूरी नहीं कि जो नाम चर्चा में हों उसी में से किसी को पद मिले। मुख्यमंत्री के लिए जिस तरह छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय और मध्य प्रदेश में मोहन यादव का नाम आया उसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी। माना जा रहा है कि राजस्थान में भी ऐसा ही कोई नाम सामने आ सकता है। बताया जा रहा है कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को संभवतः यह बता दिया गया है कि इस बार सरकार की कमान उन्हें नहीं सौंपी जा रही है। बताया जा रहा है कि केंद्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह जयपुर पहुँचने के बाद पार्टी के आला नेताओं के साथ चर्चा के दौरान उन्हें केंद्रीय नेतृत्व के फैसले से अवगत करायेंगे। बताया जा रहा है कि विधायक दल के नये नेता का नाम वसुंधरा राजे ही प्रस्तावित करेंगी जिसका सभी लोग समर्थन करेंगे।

लेकिन सवाल यह है कि यह नया नाम कौन होगा? सवाल यह है कि क्या नया नाम दीया कुमारी, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, बाबा बालकनाथ, किरोड़ी लाल मीणा, सीपी जोशी, अश्विनी वैष्णव, ओम माथुर, अर्जुन राम मेघवाल या गजेन्द्र सिंह शेखावत में से कोई होगा या फिर कोई चौंकाने वाला नाम सामने आयेगा? सवाल यह है कि क्या नया नाम विधायक दल की बैठक में अग्रिम पंक्ति में बैठे किसी विधायक का होगा या पीछे की पंक्ति में बैठे विधायक का नाम सामने आयेगा? सवाल कई हैं और अटकलें कई हैं। लेकिन इन अटकलों में सबसे ताजा अटकल यह है कि राजस्थान को आज पहला जाट मुख्यमंत्री मिल सकता है। देखा जाये तो भाजपा ने छत्तीसगढ़ में आदिवासी और मध्य प्रदेश में ओबीसी के बाद राजस्थान में भी नेतृत्व ओबीसी को देने का बड़ा राजनीतिक निर्णय संभवतः कर लिया है। राजस्थान को यदि जाट मुख्यमंत्री मिलता है तो यह बड़ा राजनीतिक दांव भी होगा और इसका असर राजस्थान सहित, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली तक देखने को मिलेगा। हम आपको याद दिला दें कि किसान आंदोलन के समय जाटों का एक बड़ा वर्ग मोदी सरकार से नाराज हो गया था। भाजपा नेतृत्व ने हालांकि राजस्थान की धरती के पुत्र जगदीप धनखड़ को देश का उपराष्ट्रपति बनाकर जाटों की नाराजगी कुछ कम की थी और अब माना जा रहा है कि लोकसभा चुनावों की दृष्टि से राजस्थान सरकार का नेतृत्व भी किसी जाट नेता को सौंपा जा सकता है।

हम आपको बता दें कि क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के सबसे बड़े प्रांत राजस्थान की आठ करोड़ से ज्यादा की आबादी में जाटों की संख्या करीब 13 से 14 प्रतिशत मानी जाती है। राजस्थान की राजनीति में जाटों का दबदबा हमेशा से रहा है लेकिन आज तक इस समाज का मुख्यमंत्री नहीं बन सका है। राजस्थान में जाट समाज आजादी के बाद से ही कांग्रेस का सबसे बड़ा वोट बैंक रहा है लेकिन भाजपा अब इस वोट बैंक को पूरी तरह अपने पाले में लाना चाहती है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकारों के दौरान नाथूराम मिर्धा, चौधरी कुंभाराम आर्य, परसराम मदेरणा, कमला बेनीवाल, रामनिवास मिर्धा, रामदेव सिंह महरिया, दौलत राम सारण, सुमित्रा सिंह, रामनारायण चौधरी, शीशराम ओला, चौधरी नारायण सिंह, हेमाराम चौधरी, महादेव सिंह खंडेला, लालचंद कटारिया जैसे प्रभावशाली जाट नेता विभिन्न पदों पर रहे लेकिन इनमें से कोई भी नेता राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। राजस्थान के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो उल्लेख मिलता है कि 1998 के विधानसभा चुनाव में परसराम मदेरणा को चेहरा बनाकर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत  हासिल किया था लेकिन मुख्यमंत्री पद अशोक गहलोत को थमा दिया था। राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले जाट समाज के डॉक्टर सतीश पूनियां को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया था। बाद में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर विधानसभा में विपक्ष का उप नेता बनाया गया था। लेकिन इस बार वह आमेर विधानसभा सीट से अपना ही चुनाव हार गये। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान सतीश पूनियां ने भाजपा संगठन को सक्रिय रखा था और सरकार को विभिन्न मोर्चों पर सफलता के साथ घेरा था।

 

हम आपको यह भी बता दें कि राजस्थान से कभी बलराम जाखड़ और कुंवर नटवर सिंह मजबूत जाट नेता बन कर उभरे थे। मगर यह लोग केंद्र की राजनीति तक ही सीमित होकर रह गए थे। राजस्थान में 7 अप्रैल 1949 से लेकर अब तक 25 मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जिनमें आठ बार ब्राह्मण, पांच बार बनिया, पांच बार राजपूत, एक बार मुस्लिम, एक बार खटीक, एक बार कायस्थ और तीन बार माली मुख्यमंत्री बने हैं। इस सूची में जाट समाज के एक भी व्यक्ति का नाम नहीं है। जाट समाज की नेता कमला बेनीवाल को जरूर एक बार उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। इसलिए माना जा रहा है कि इस बार किसी जाट नेता का नंबर लग सकता है। हालांकि अभी यह सिर्फ अटकलें ही हैं। हम आपको बता दें कि भाजपा के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक आज शाम चार बजे होगी जिसमें आगामी मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला हो सकता है।  बैठक में पार्टी के पर्यवेक्षक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सह-पर्यवेक्षक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पाण्डेय और राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े भी मौजूद रहेंगे।