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एक गठरी में दाल ,चावल ,आटा बांध और हौसलो के उड़ान……(इलाहाबाद का विद्यार्थी जीवन……..अपना अनुभव)

इक्कीस बाइस साल की छोटी सी उम्र में गाव की पगडंडियों से उठ कर ,एक गठरी में दाल ,चावल ,आटा बांध कर जब एक लड़का खड़खड़ाती हुई बस में अपने हौसलो के उड़ान के साथ बैठता है तब उसके दिमाक मे बत्तियां जलती है ओ बत्तियां लाल होती है ओ बत्तियां नीली होती है , और यही सोचते सोचते वह कब बलिया मऊ , आज़मगढ़ देवरिया , कुशीनगर से इलाहाबाद पहुच जाता है उसको पता ही नही चलता । फिर यहाँ से शुरू होती है जिंदगी में नौकरी की जद्दोजहद।
जब लड़का अपने कमरे में कदम रखता है उस दिन उसकी एक ऐसी साधना शुरू होती है जो कभी अकेला नही करता , जब वह फॉर्म डालता है तो उसकी माँ किसी देवी माँ की मनौती मान देती है, उसकी बहन मन ही मन खुश होती है ,उसके बाप दस लोगो से इसका जिक्र करते है और जब उसका परीक्षा जिस दिन रहता है उस दिन माँ ब्रत रहती है शाम को उबला आलू खा के सो जाती है इस कामना के साथ की उसका लड़का आने वाले अपने पूरे जीवन भर फाइव स्टार होटल में खायेगा ।
यहाँ लड़का कोचिंग करता है अपने सीनियर , अपने भाई आदि की सलाह भी लेता रहता है , वैसे यहाँ के सीनियर प्रतियोगी छात्रों की आदत है आप को बिना मांगे ही सलाह खूब देते है । अपने तैयारी में धार देता हुआ आगे बढ़ता है । कुकर की बजती सीटियों के बीच “विविध भारती “पर “लतामंगेशकर “की आवाज यहाँ का “राष्ट्र गान” है जो आप को लगभग हर कमरे में सुनाई देगा ,।
यहाँ का प्रतियोगी मैनेजमेंट भी बहुत अच्छा सीख लेता है दस बाई दस के कमरे में , सब कुछ बिल्कुल अपनी जगह रखा पाएंगे,। अलमारी किताबो से भरी , एक तरफ कुर्सी मेज एक तरफ लेटने के लिए चौकी , एक तरफ खाना बनाने के लिए एक मेज , दीवारों पर विश्व के मानचित्र और उसके बगल में लगे स्वामी विवेकानन्द और डॉ कलाम के पोस्टर ,और दरवाजे के पीछे लगे मुस्कुराती हुई मोनालिशा की बड़ा सा पोस्टर , और टॉड पर रखे रजाई कंबल , ये सब यहाँ के विद्यार्थी का मैनेजमेंट बताने के लिए पर्याप्त है ।
प्रतियोगी यहाँ अपने हर काम का टाइम टेबल बना के अपने स्टडी मेज के दीवाल के ऊपर चिपका के रखता है जिसमे यह तक जिक्र होता है कितने बजे अख़बार पढ़ना है और कितने बजे सब्जी लेने जाना है।
DBC यहाँ के छात्रों का मुख्य खाना है , DBC यानि दाल , भात ,चोखा ,। कुल मिलाकर यहाँ के प्रतियोगी की जिंदगी कमोबेश एक सिपाही जैसी होती है ।
इस तरह तैयारी करते करते 3–4 साल बीत जाते है कुछ साथी चयनित होकर अपने अनुजो का उत्साह बढ़ा के चले जाते है । यहाँ शाम को अल्लापुर ,बघाड़ा , गोबिन्दपुर , सलोरी कटरा हर जगह एक संगम लगता है , जहा यूपी के सभी जिलों के छात्रों के अलावा , दूसरे प्रदेशों के भी छात्र भी इस संगम में साथ बैठ कर चाय पीते पीते देश की दशा दिशा और और परीक्षाओं पर भी सार्थक बहस करते है ।
यहाँ का प्रतियोगी को जितना अमेरिका के लोगो को उसके भौगोलिक स्थिति के बारे में नही पता होगा उतना इसको पता होता है , राकी पर्वत के एक- एक विशेषता उसको पता होगा जब कि ये तय है वह राकी पर्वत पर कभी नही जायेगा । यही यहाँ के तैयारी करने वाले प्रतियोगियों का मज़ा है , आप बौद्धिकता से परिपूर्ण हो जाते है बेशक सफलता मिले न मिले ।।
यहाँ का प्रतियोगी जब अपने मेहनत के फावड़े से ,अपनी बंजर हो चुकी किस्मत पर फावड़ा चलाता है तो सफलता की जो धार फूटती है उसी धार से वह अपने परिवार को ,समाज को सींचता है । और इसी सफलता के लिए न जाने कितनी आँखे पथरा जाती है और प्यासी रह जाती है , लेकिन उस प्यास की सिद्दत इतनी बड़ी होती है कि एक अच्छा इंसान जरूर बना देती है ।
सौ बार पढ़ी गई किताब को बार बार पढ़ा जाता है ,जब याद हो चुकी चीजो को सौ बार दुहराया जाता है , फिर भी परीक्षा हॉल में कंफ्यूजन हो जाया करता है उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी ।जब परीक्षा हॉल के अंतिम बचे कुछ मिनटों में बाथरूम एक सहारा होता है शायद वहा कोई एक दो सवाल बता दे उस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी । जब खाना बन के तैयार हो जाये तो उसी में दो और दोस्तों का टपक पड़ना , और फिर उसी में शेयर कर के खाना इस मनोस्थिति का नाम है यहाँ का विद्यार्थी ।
प्रतियोगी का संघर्ष का दौर चलता रहता है , कुछ निराश होने लगे प्रतियोगियों को तब कोई कन्धा सहारा बन के आ जाता है जब उसकी निराशा बढ़ने लगती है ,उस कंधे पर होता है रेशमी दुपट्टा । उसके बाद ओ उस रेशमी दुपट्टे के आंचल में ऐसा खोता है कि तब उसे आप कहते सुन लेगे वह इसके लिए IAS बन के दिखा देगा , इस तरह शुरू होता है मुहब्बत का दौर , घूमना टहलना , पढाई का एक से बढ़ कर एक ट्रिक अपनी gf को देना ये सब का ये एक दौर चलता है ।
मुह पर दुपट्टा बाधा जाता है , हेलमेट भी पहना जाता है ,फिर भी शाम को कोई मिल जायेगा और बोलेगा , “अमे यार आज तुमको हम भौजी के साथ नैनी ब्रीज पर देखे थे” और ये भी दौर खत्म हो जाता है लड़की के घर वाले उसके हाथ पीले कर देते है तब आप को ये चुटकुला सुनने को मिल जाता है ,जब मै बीएड का फॉर्म लेने दुकान पर गया था तो ओ अपने बच्चे को कलम दिला रही थी ।
यहाँ तैयारी का फेस भी बदलता रहता है शुरू में माँ बाप के लिए आईएएस बनना चाहता है , उसके बाद गर्ल फ्रेंड के लिए IAS बनना चाहता है और अंत में दुनिया को दिखाने के लिए । ओ कहता फिरता है कि मै दुनिया को दिखा दूंगा कैसे की जाती है तैयारी ias की । पर जब ओ असफल हो जाता है तो लोग उससे बात करना नही पसन्द करते ,क्यू पसंद करेंगे आखिर ओ असफल जो है , लेकिन यक़ीन मानिये असफल प्रतियोगी अपनी असफलता को बता सकता है , उसकी कमियों से सीखा जा सकता है ।
वैसे इस शहर में हमने भी पूरे वनवास काटे है ,हमारे लिए यहाँ की जमीन उपजाऊ ही रही उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन में नौकरि मिली ।पर 10 साल पहले वाला इलाहाबाद और आज के इलाहाबाद में अब फर्क दिखता है । अब टेक्निकल के लड़के सिविल में ज्यादा अच्छा रिजल्ट दे रहे है , अब छात्रों के कमरों में से मोनालिशा की तस्वीरों की जगह, आलिया भट्ट ने ले लिया है ,अब विविध भारती पर लताजी जगह हनीसिंह ने ले लिया है , रेडियो की जगह मोबाइल ले लिया है ।
अब यहाँ गुनाहों के देवता सुधा -चन्दर जैसी मुहब्बत नही देखने को मिलती है हर प्रेमी जोड़ा उससे बेहतर की तलाश में रहता है लेकिन इन सब के वाबजूद आज भी जब UPSC/UPPSC का रिजल्ट आता है तो यहाँ के मिठाई के दुकानों के सामने से गुजरते हुए व्यक्ति जरूर पूछ लेते है कोई रिजल्ट आया है क्या । अंत में बस यही कहूंगा ” कोई IAS ही हो गया तो हमारा क्या कर लेगा, और हम IAS नही बन पाए तो कौन सा देश का बहुत बड़ा नुकसान हो गया ।
मै जब कटरा में यादव गली में रहता था तो कभी कभी मेरे पास चाय के पैसे महीने के अंत में नही रहते पर मित्रो के द्वारा चाय की चुस्की मिल ही जाती थी मेरे एक मित्रो में आलम भाई के साथ शाम की चुस्की निश्चित होती थी कभी कभी उनके पास भी पैसा नही रहता तो हमलोग उधार लगा लिया करते थे लेकिन चाय अवश्य पीते थे एक और मित्र संदीप यादव भी आप के साथ चाय की चुस्की खूब ली अरुण पाण्डेय जी के साथ तो परिवारिक रिश्ते थे उनसे serius बातें होती थी वो भी बड़े भाई के तरह समझाते थे आज भी सभी के साथ अच्छे रिश्ते है बहुत मित्र ऐसे है और बड़े भाई है जिनका नाम नही लिख रहा हूँ लेकिन जब इलाहबाद की याद आती है तो आखो में आँसू आ जाता है मै अपने माता पिता जी के बाद किसी को याद करता हूँ तो वो है इलाहबाद के संघर्ष के दिन आज मैं इलाहाबाद के सभी लोगो को प्यार भरा प्रणाम करता हूँ
” तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, हमी हम है तो क्या हम है” इलाहाबाद मेरे दिल में बसता है थोड़ा बहुत उसकी यादे हमने कुरेदने का प्रयास किया।
✍️ राजन कुमार मिश्रा UPPCL (S.S.O.)