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अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ नसीमुद्दीन सिद्धिकी

लखनऊ। वह तारीख थी 20 अप्रैल, 1990, जब बसपा के संस्थापक कांशीराम ने बांदा की एक जनसभा में वॉलीबाल के खिलाड़ी व रेलवे ठेकेदार नसीमुद्दीन सिद्दीकी को दल में शामिल करने का एलान किया। कुछ दिनों में वह मायावती के विश्वासपात्र हो गए। फिर एक के बाद सीढ़ियां चढ़ते गए।

27 साल बाद यानी 10 मई, 2017 को मायावती ने उन्हें व उनके पुत्र अफजल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बांदा के स्योढ़ा गांव में जन्मे नसीमुद्दीन सिद्दीकी वॉलीबाल के अच्छे खिलाड़ी थे। पहचान बनी तो बांदा नगर पालिका परिषद में ठेकेदारी करने लगे। कांग्रेस की राजनीति में दिलचस्पी दिखानी शुरू की। 1988 के नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस का समर्थन हासिल करने का प्रयास किया, मगर कामयाबी नहीं मिली। नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में वह हार गए।

1995 में मायावती मुख्यमंत्री बनी तो उन्होंने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मंडी परिषद का अध्यक्ष नियुक्त करते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। 1997 में वह पहली बार विधान परिषद में दाखिल हुए। 21 मार्च, 1997 को वे पहली बार मंत्री बने। बाद में वह मायावती की सरकार में प्रभावशाली मंत्री बनते रहे। वह एक बार विधान परिषद में नेता सदन और एक बार नेता प्रतिपक्ष भी रहे। 13 मई, 2007 से 7 मार्च, 2012 तक मायावती की पूर्णकालिक सरकार में वह 12 से अधिक महकमों के मंत्री रहे।

इस दौरान प्राधिकारी क्षेत्र के विधान परिषद चुनाव में बसपा ने उनकी प}ी हुस्ना सिद्दीकी को प्रत्याशी बनाया और वह विजयी रहीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उनके पुत्र अफजल सिद्दीकी को फतेहपुर संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया मगर वह चुनाव हार गए। नसीमुद्दीन मौजूदा समय में विधान परिषद के सदस्य हैं।फौरन बाद ही नसीमुद्दीन ने डीएस-4 से नजदीकी बढ़ाई। बुंदेलखंड में कांशीराम के दाहिने हाथ कहे जाने वाले व बसपा में प्रभावशाली दद्दू प्रसाद से मिलकर बसपा के लिए कार्य शुरू किया।

20 अप्रैल, 1990 को दद्दू प्रसाद ने बांदा में बसपा की रैली आयोजित की, जिसमें हिस्सा लेने पहुंचे कांशीराम ने डॉ.फहीम, बृजलाल कुशवाहा के साथ नसीमुद्दीन को बसपा में शामिल करने का एलान किया। 1991 के विधानसभा चुनाव में कांशीराम ने नसीमुद्दीन को बांदा सदर से प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व सांसद राम रतन शर्मा को पराजित कर सीट जीत ली मगर 1993 में भाजपा प्रत्याशी राजकुमार शिवहरे से वह 958 वोटों से चुनाव हार गए। बावजूद इसके मायावती का करीबी होने से उन्हें संगठन में बड़े ओहदे मिलना शुरू हो गए।

नसीमुद्दीन सिद्दीकी को निष्कासित करने के बाद बहुजन समाज पार्टी को विधानपरिषद में नए दलनेता की तलाश करनी होगी और सदन में बसपा का दबदबा भी कम होगा। सुनील कुमार चित्ताैड़ को नया दलनेता बनाए जाने की उम्मीद है। बता दें कि विधानपरिषद में बसपा के सदस्यों की संख्या 11 है। सिद्दीकी का निष्कासन के बाद बचे दस सदस्यों में अतर सिंह राव, जयवीर सिंह, दिनेश चंद्रा, सुरेश कुमार कश्यप, डॉ. विनय प्रकाश, सुनील कुमार चित्ताैड़, धर्मवीर सिंह अशोक, महमूद अली व बृजेश कुमार सिंह शामिल हैं।

सूत्र बताते है कि विधानपरिषद में दलनेता के चयन को लेकर बसपा सुप्रीमो काफी गंभीर है। जातीय समीकरण पर ध्यान देने से अधिक वफादार एवं समर्पित नेता को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। ऐसे में सदन में मुख्य सचेतक सुनील चित्ताैड़ को दलनेता बनाए जाने की संभावनाएं अधिक है।बसपा से निष्कासित करने के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर दलबदल कानून के तहत कार्रवाई की संभावना क्षीण हो गई है। सिद्दीकी की विधानपरिषद में सदस्यता 30 जनवरी, 2021 तक है।

बसपा से निष्कासित किये जाने के बाद एमएलसी और पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी चाहे जितने बड़े राजफाश की तैयारी में हों लेकिन, यह भी सच है कि उनकी मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं। सिद्दीकी कभी पंप घोटाले तो कभी चीनी मिल बिक्री के घोटाले से सुर्खियों में जरूर आए लेकिन, उन्होंने इन फैसलों को कैबिनेट का फैसला बताकर अपने लिए बचाव का रास्ता भी बनाया। अभी पिछली सरकार में ही आय से अधिक संपत्ति के मामले में सिद्दीकी को सरकार ने क्लीन चिट दे दी पर, 15 अरब रुपये के स्मारक घोटाले में सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 19 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज है।

इस मामले की जांच सतर्कता अधिष्ठान कर रहा है। करीब ढाई सौ लोगों के इसमें बयान दर्ज हो चुके हैं। सरकार ने संकेत दिए हैं कि स्मारक घोटाले के भ्रष्टाचार में वह कड़ी कार्रवाई करेगी। लाजिमी है कि सिद्दीकी पर भी शिकंजा कसेगा। यह जरूर है कि सिद्दीकी ने हमेशा यह दोहराया कि कोई भी फैसला उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर नहीं किया है।

बसपा के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी बुंदेलखंड से पार्टी के सबसे बड़े चेहरे रहे है। नसीमुद्दीन के पार्टी से बाहर होने के बाद कार्यकर्ताओं में मायूसी छाई है। बुंदेलखंड बसपा का मजबूत गढ़ रहा है। पार्टी के कई बड़े नेता बुंदेलखंड से ही जुड़े रहे हैं लेकिन, हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी में पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। यहां की सभी सीटें भाजपा के खाते में गईं।

चुनाव परिणाम के लगभग दो माह बाद बसपा ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी व उनके पुत्र अफजल को बाहर का रास्ता दिखाया है। इसकी खबर सुनते ही उनके समर्थक सन्न रह गए। मंत्री रहते उनके प्रयासों से बांदा को विकास की एक नई गति मिली जिसमें मेडिकल कॉलेज, कृषि विश्वविद्यालय, बाईपास, केन तटबंध जैसे कई बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं। वैसे तो बुंदेलखंड में बसपा के कई बड़े नाम हैं लेकिन, पार्टी में बांदा की खास पकड़ रही।